काँटों में खिलता सौंदर्य्र
-गुरमीत बेदी
काँटा
चुभने की कल्पना मात्र से ही चेहरे पर पीड़ा की परछाई उग
आती है लेकिन ये काँटे अगर कैक्टस के हों तो डरते-डरते भी
इन्हें छू लेने को जी चाहता है। और सिऱ्फ छूने को ही नहीं
अपितु इन्हें हथेलियों पर उठा कर घर ले जाने की इच्छा भी
सहसा ही पंख फड़फड़ाने लगती है। इन कैक्टसों का रूप, आकार
और अदाएँ देखते हुए यह मानना पड़ता है कि इस दुनिया में
कुदरत से बड़ा कलाकार
कोई दूसरा नहीं है।
हिमाचल प्रदेश में हमीरपुर से १६ किलोमीटर दूर एक छोटा-सा
कस्बा है - भोटा। यह कस्बा राधास्वामियों के डेरे के रूप
में भी विख्यात है और क्षेत्रीय औद्योगिकी एवं बागवानी
अनुसंधान केंद्र ने भी इसे ख्याति दिलाई है। इस केंद्र में
ढेरों प्रजातियों के कैक्टस खिले हैं जो प्रकृति प्रेमियों
के लिए आकर्षण का केंद्र भी हैं और कौतुहल का विषय भी। इन
कैक्टसों में ज़िंदगी के कई चेहरे, कई संवेदनाएँ और मनोभाव
आकार लेते दिखते हैं। प्रकृति के तमाम रंग इन कैक्टसों में
बड़ी शि त से झांकते हैं। कठिन परिस्थितियों में किस तरह
ज़िंदा रहा जाता है और काँटों से घिर कर कैसे अपना सौंदर्य
अक्षुण्ण रखा जाता है, यह कोई कैक्टस से सीखे।
ज़मीन बंजर हो या सीलनयुक्त, पहाड़ की तलहटी हो या शिखर,
रेतीले मरूस्थल हों या बालुआ चट्टानें, कैक्टस हर जगह पूरी
शान से सिर उठाए दिखेगा। कहते हैं कि कैक्टस की उत्पति
दक्षिणी अमेरिका के रेगिस्तान में हुई थी और बाद में
प्रकृति प्रेमी मुसाफ़िर इसे दुनिया के कोने-कोने में ले
गए। आज दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुल्क होगा, जहाँ
कैक्टस न खिलते हों। कैक्टस की दुनिया भर में अढ़ाई हज़ार
के करीब प्रजातियाँ हैं। कुछ कैक्टस रात को खिलते हैं और
कुछ हवाओं में खुशबू बिखेरते हैं। कुछ कैक्टस सुबह ताज़ा,
दोपहर को थकान में और रात को नींद उतारते नज़र आते हैं तो
कुछ हर पल सदाबहार रहते हैं। कुछ कैक्टस ऐसे भी हैं जो दिन
को सूरज की तपिश झेल कर पत्थर की तरह सख्त हो जाते हैं और
रात को जब इन पर ओस पड़ती है तो ये किसी कमसिन बाला की तरह
नाजुक हो जाते हैं। इन्हें सहलाते हुए लगता है मानो हमारी
उंगलियाँ मोम पर फिसल रही हैं। कुछ ऐसे भी कैक्टस हैं
जिन्हें रात के अंधेरे में देखते हुए यह लगता है जैसे
इनमें रोशनी फूट रही हो। कुछ कैक्टसों के काँटे ज़रा सा
दबाव पड़ते ही एकदम मुड़ जाते हैं तो कुछ
हमारी उँगलियों के आर-पार हो
जाने को बेताब दिखते हैं।
कैक्टस बड़े काम की चीज़ है और इसके औषधीय गुण भी हैं।
वैज्ञानिकों ने अब एक ख़ास प्रजाति के कैक्टस से निकाले गए
रस के ज़रिए शराब का नशा करने वालों के लिए 'हैंगओवर'
उतारने का नुस्खा भी खोज निकाला है। इस रस को थोड़ी मात्रा
में लेते ही हैंगओवर ख़त्म हो जाता है। न्यू ओरलैंड स्थित
तूलानी यूनिवर्सिटी द्वारा करवाए गए एक शोध के दौरान
कैक्टस का रस लेने के बाद शराब पीने वालों को अगली सुबह
बहुत मामूली हैंगओवर देखा गया। शोध में २१ से ३५ साल तक के
५५ वयस्कों को डिनर से पहले कैक्टस का रस थोड़ी मात्रा में
दिया गया। उन लोगों ने दूसरे दिन सुबह
उठने पर खुद को हैंगओवर से
मुक्त पाया।
अध्ययन के दौरान पुरुषों को औसतन ५ से ६ पैग और महिलाओं को
३ से ५ पैग शराब दी गई। हर किसी को उनकी पसंद के मुताबिक
जिन, रम, बरबन, स्कॉच या टेक्विला दी गई। यह अध्ययन
कैलिफोर्निया स्थित एक्सट्रैक्ट प्लस इंक के आर्थिक सहयोग
से कराया गया था। यह कंपनी 'हैंगओवर प्रिवेंशन फारमूला'
नाम से कैक्टस के रस से बना उत्पाद तैयार करती है। इस
संस्था के निदेशक गेराल्ड स्टेफैंको के अनुसार कुछ लोग
शराब पीकर सोने के बाद सुबह उठने पर सिर दर्द या खुमारी
बने रहने की शिकायत करते हैं। डाक्टर जेफ वाइज के मुताबिक
ज़्यादा शराब पीने पर लीवर से सी-रिएक्टिव प्रोटीन का
उत्पादन शुरू हो जाता है। लिवर पर ज़ोर पड़ने की वजह से
हैंगओवर होता है। कैक्टस से तैयार रस
लिवर में सी-रिएक्टिव की
मात्रा को नियंत्रित करता है।
कैक्टस को नागफनी भी कहा जाता है और इस शब्द का प्रयोग
बहुत से कवियों और कहानीकारों ने विभिन्न प्रतीकों के रूप
में अपनी रचनाओं में किया हैं। कैक्टस को कभी अपशकुन का
पर्याय माना जाता था लेकिन आज लोग घरों में कैक्टस सजाना
शान समझते हैं। कई लोग तो इनका आदान-प्रदान उपहार के रूप
में भी करते हैं, जैसे दुनिया के नायाब कलाकृतियाँ तोहफ़े
में दे रहे हों। कैक्टसों की कई प्रजातियाँ जहाँ लुप्त
होने के कगार पर हैं तो कई प्रजातियाँ सहज सुलभ हैं।
दुनिया भर में आज कैक्टस पर शोध हो रहे हैं। इज़रायल तो इस
मामले में सबसे आगे है।
भारत में भी अब कैक्टसों के प्रति फूल प्रेमियों का क्रेज़
निरंतर बढ़ रहा है। यहाँ कैक्टस के कई गार्डन हैं जिनमें
मध्यप्रदेश में सैलाना, पश्चिमी बंगाल में कालिंगपांग,
कर्नाटक में बंगलूर और चंडीगढ़ के निकट पंचकूला में स्थित
कैक्टस गार्डनों में सैलानियों को कैक्टसों की दुनिया में
झांकते देखा जा सकता हैं। हिमाचल प्रदेश के निचले ज़िलों -
हमीरपुर, काँगड़ा तथा ऊना में भी कैक्टसों की खेती की अपार
संभावनाएँ हैं क्योंकि कैक्टसों को ज़िंदा रहने और
फलने-फूलने के लिए जिस तरह की मिट्टी और जलवायु चाहिए,
वैसी सुविधाएँ यहाँ मौजूद हैं। आने वाले दिनों में यहाँ
कैक्टस के गार्डन यहाँ लहलहाते दिखें तो कोई अजूबा नहीं
होगा। भोटा के क्षेत्रीय औद्योगिक एवं वानिकी अनुसंधान
केंद्र के वैज्ञानिक जिन्होंने यहाँ दुर्लभ प्रजातियों के
कैक्टस उगाने में सफलता हासिल की है, तो इस बारे में पूरी
तरह आशावान हैं। उनका कहना है कि अगर भोटा में दुर्लभ
जातियों के कैक्टस खिल सकते हैं तो निचले हिमाचल में भी
कैक्टसों की बहार आ सकती है।
१ मई २००६ |