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प्रकृति और पर्यावरण


आरोरा बोरियोलिसः आसमान में चित्रकारी
—प्रभात कुमार

रहस्यमयी ऑरोरा प्रकाश


मान लीजिए आपको एक ऐसे नृत्य–कार्यक्रम में चलने का आमंत्रण दूँ जो खुले आसमान में आयोजित हो, जहाँ सब कुछ इंद्रधनुषी हो और स्वयं प्रकृति ही नर्तकी हो, तो क्या आप विश्वास करेंगे? शायद आपको लगे कि मैं कोई कविता कर रहा हूँ या किसी स्वप्निल संसार मे चलने की बात कर रहा हूँ लेकिन यह सत्य भी हो सकता है अगर आप हिम–आच्छादित ध्रुवीय प्रदेश में धैर्य–पूर्वक बैठकर प्रकृति का अवलोकन करने को तैयार हों। पता नहीं, ‘रात का समां, झूमे चंद्रमा, तन मोरा नाचे रे जैसे बिजुरिया...’ जैसा गीत हसरत जयपुरी साहब ने किसी ध्रुवीय प्रदेश के आसमान में होने वाले रौशनियों की किसी कलाकृति को देखकर लिखा था या नहीं किंतु अक्टूबर से मार्च की रातों में यहाँ, हर–क्षण अपना रंग, ढंग, रूप और शृंगार बदलती प्रकाश–शिखाओं को देखकर आप अगर अपनी सुध–बुध न खो बैठें, तो शर्त रही!

वैज्ञानिक शब्दावली में ‘ऑरोरा बोरियोलिस’ या ‘ऑरोरा आस्ट्रेलिस’ के नाम से जाना जाने वाला यह प्रकाश–चुंबकीय घटना ज्यादातर ‘नार्दन लाइट्स’ के नाम से प्रचलित है। इसे हम यहाँ उत्तरीय प्रकाश कहेंगे। पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर दिखाई देनेवाली यह खगोलीय घटना हर जगह भिन्न–भिन्न समयों में तथा अलग–अलग तीव्रता के साथ दिखाई देती है। शीत ऋतु की साफ और अंधेरी रातों में मध्य–रात्रि का सूर्य कहा जाने वाले नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड, उत्तरी कनाडा, अलास्का और रूस के उत्तरी भागों में जहाँ उत्तरीय प्रकाश की रंगीनियाँ अक्सर दिखाई दे जाती है वहीं दक्षिणी हिस्सों में इसे दशक या शताब्दी में एक बार ही देखना संभव होता है। उत्तरी स्कॉटलैंड जैसी मध्य अक्षांशीय देशों में यह महीने में एक बार दिखाई देता है।

नामकरण एवं ऐतिहासिक विवरण-

वैज्ञानिक परंपरा के अनुसार उत्तरीय प्रकाश का पहला दृष्टांत ईसा पूर्व में ही अरस्तू की पुस्तक ‘मेटिरियोलॉजिका’ में मिलता है जिसमें इसका वर्णन प्रज्वलित गैसीय– लौ के रूप में किया गया है। लगभग १२३० ईस्वी में नार्वे में लिखी गयी ‘कांगेस्पिले’ नामक एक पुस्तक में इसे ‘नार्द–लिस’ कहा गया जो आज के प्रचलित नाम का आधार है। १६ वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में इटली के महान वैज्ञानिक गैलेलियो गैलिली ने लैटिन भाषा के शब्द ‘ऑरोरा बोरियोलिस’ अर्थात ‘उत्तर दिशा का रक्तिम प्रभात’ नाम दिया और तब से पूरे वैज्ञानिक जगत में यही नाम प्रचलित है।

जनश्रुति एवं दंतकथाएँ-

प्रत्यक्ष दिखाई वाली प्रकृति की घटनाओं ने मानव मन को हमेशा से उद्वेलित किया है और अपने वश के परे होने वाली ऐसी घटनाओं के प्रति अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए आदिम समाज ने लोककथाएँ रची हैं। उत्तरीय प्रकाश को लेकर अपने–अपने विश्वास के अनुसार रची गयी व्याख्याएँ भी आज जनश्रुति और लोककथाओं के रूप में जिंदा है। नार्वे में जहाँ इसे ‘नाचती आत्माएँ’ या ‘लड़ते हुए योद्धा की तलवार’ के रूप मे मान्यता मिली वहीं उत्तरी अमेरिका में इसे भूतों और बुरी आत्माओं के आह्वान का प्रतीक समझा गया। आसमान में तैरती प्रकाश की इन लहरों को उत्तरी स्कॉटलैंड (ब्रिटेन) में ‘मेरी डांसर’ की संज्ञा दी गयी। डेनमार्क की लोक–कथाओं में ‘ऑरोरा बोरियोलिस’ को यद्यपि उत्तर दिशा की ओर उड़ते हुए हंसों के झुंड के पंख के रूप में बताया गया है लेकिन अधिकांश लोककथाएँ इसे प्लेग जैसी बिमारियों के अशुभ संकेत या बदला लेने वाली बुरी शक्ति के रूप में बताती हैं।


दर्शन के परे विज्ञान-

किसी दृश्य को कहानियों में आप चाहे जैसे पिरो दीजिए किंतु हर प्राकृतिक घटना के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण भी तो होता ही है। १५वी शताब्दी में यूरोप में हुए पुर्न–जागरण ने लोगों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की ओर प्रेरित किया और हर तथ्य, जो अबतक लोककथाओं में सीमित था उसकी इस आधार पर व्याख्या करने की कोशिश की गयी। उत्तरीय प्रकाश जैसी घटना के पीछे भी जो वैज्ञानिक तथ्य छिपा है उसकी व्याख्या हमें न सिर्फ अंचभित करता है बल्कि पृथ्वी के प्रति हमारी कृतज्ञता को भी बढाता है।

पृथ्वी की सतह से आमतौर पर १०० से २०० किलोमीटर ऊपर उत्पन्न रंग–बिरंगी आभा या ऑरोरा के पीछे तीन अदृश्य कारक हैं – पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र, इसका वायुमंडल और सौर–पवन। हमारी पृथ्वी वास्तव में एक विशाल चुंबकीय छड़ के समान है जिसका चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र सैंकड़ो मील दूर तक फैला है। पृथ्वी का आयनमंडल यानी इसकी वायुमंडल का बाहरी हिस्सा, सूर्य के सतह पर उठने वाली आँधियों के फलस्वरूप उत्पन्न हानिकारक आयनीकृत प्लाज्मा कणों को रोककर हमारी रक्षा करता है। सूर्य वास्तव में एक गैसीय पिंड है जिसके केंद्र की तो पूछिए ही मत, सतह का तापमान ५८०० डिग्री केल्विन है। इस तापमान पर आयनीकृत प्लाज्मा या सौर–गैसें इसकी सतह को छोड़कर ३००–१००० किमी प्रति घंटा की रफ़्तार से बाहर की ओर अंतरिक्ष में निकलती है।

इस घटना को कॉरोनल मास इजेक्शन’ कहा जाता है। लगभग २–३ दिनों के बाद प्लाज्मा कणों के ये बादल पृथ्वी के चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में प्रवेश करते है और पृथ्वी के ध्रुवों की ओर आकर्षित होकर वायुमंडलीय गैस कणों से टकराते है। इस टक्कर के फलस्वरूप उत्पन्न प्रकाश कण (फोटॉन) हमें इंद्रधनुषी रंगों वाले ऑरोरा के रूप में दिखाई देती है। वास्तव में, नंगी आँखों से देखने के लिए कम से कम १० करोड़ फोटॉन की आवश्यकता है। सौर–कणों की मात्रा और पृथ्वी के वायुमंडल में उपलब्ध गैस पर ही ऑरोरा के प्रकाश का रंग और उसकी तीव्रता निर्भर करती है। सामान्यतया पीला, हरा, रक्तिम लाल या पीलापन लिए लाल रंग ऑरोरा में देखा जाता है किंतु काफी हद तक यह ऊँचाई पर भी निर्भर करता है।

 वायुमंडल के नीचले हिस्से में उत्पन्न उत्तरीय प्रकाश ज्यादातर लाल होता है जबकि १२०–१८० किमी पर हरा रंग उत्पन्न होता है। वायुमंडल की प्रत्येक गैस चूँकि एक अलग रंग के प्रकाश का उत्सर्जन करती हैं इसलिए ऑरोरा की प्रकाश संरचना को आप पृथ्वी के वायुमंडल का फिंगरप्रिंट समझ सकते हैं।

उत्तरीय प्रकाश से संबधित एक महत्वपूर्ण पहलू जो आपको चौंका सकता है, वह है ऑरोरा से उत्पन्न ध्वनि। क्या रोशनी की बदलती रेखाँए ध्वनि पैदा कर सकती है? ठोस तौर पर तो इसका उत्तर देना तो संभव नहीं पर कइयों ने इसे सुनने का दावा किया है। अभी तक कोई ऐसा माइक्रोफोन नहीं बना जिससे ऑरोरा की ध्वनि को सुना जा सके किंतु अप्रत्यक्ष विधि द्वारा मैग्नेटोमीटर का प्रयोग कर इसे सुना जा सकता है। अब आप अनुमान कर सकते हैं कि ओपन एयर थियटर में चलने वाला यह दृश्य–श्रव्य शो कितना आकर्षक होगा!


कब और कैसे देखें? एक कठिन प्रश्न है यह। आखिर आप ऐसी नर्तकी के पीछे भागने की बात कर रहे हैं जो सिर्फ प्रकृति के इशारे पर ही नाचती है। नृत्य की भाव–भंगिमाओं की तो छोड़िए, अगर आप उसके रूप की एक झलक पाने को भी लालायित हैं तो भी यह स्थान और आपके भाग्य पर निर्भर है। यदि आप उत्तरी स्कैंडनेविया के देश जैसे नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड, उत्तरी कनाडा, अलास्का या रूस के उत्तरी भाग में हैं, आसमान साफ है और आपके अंदर पर्याप्त धैर्य है तो देखने से आप ज्यादा दूर नहीं। ऑरोरा दर्शन की संभाव्यता बढाने के लिए आप नोआ (NOAA)  के ध्रुवीय उपग्रह की सहायता से तैयार किए गए नार्दन लाइट के वलय मानचित्र का सहारा ले सकते हैं। हर क्षण परिवर्धित हो रहे इस मानचित्र को आप नोआ (NOAA)  के जालघर http://sec.noaa.gov/pmap पर देख सकते हैं। लुका–छिपी के इस खेल में आप खूब सारे गर्म कपड़े रखना न भूल जाएँ क्योंकि आप का सामना जमाने वाली सर्दी से हो सकता है। तो, ब्रह्मांड के ऋर्षिमुनियों द्वारा प्रायोजित कवि सम्मेलन में भाग लेने के लिए आपको शुभकामनाएँ।

१६ फरवरी २००४

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