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फुलवारी

गोपी लौट आया
- दर्शन सिंह आशट


जब स्कूल से घर आकर गोपी ने अपना बैग फर्श पर फेंका तो उस में से कुछ फटी हुई कापियाँ और पुस्तकें बाहर निकल कर बिखर गई।

उसकी माताजी, जो पहले ही किसी कारण निराश-सी बैठी थीं, ने जब यह देखा तो उनका पारा चढ़ गया। उन्होंने एकदम उसके गाल पर थप्पड़ जड़ दिया और बोली, 'मॉडल स्कूल में पढते हो। वहाँ यही सब सिखाते हैं क्या? कितने दिन से देख रही हूँ। कभी बैग फेंक देते हो, कभी मोज़े और जूते निकालकर इधरउधर मारते हो। सुबह से शाम तक जी तोड़ कर काम करती हूँ। फिर कहीं जाकर मुश्किल से हजार रूपया महीना मिलता है। पता है, कैसे पढ़ा रही हूँ तुझे? देखो तो सही, क्या हालत बनाई हुई कॉपी-किताबों की। शर्म नहीं आती क्या?'

गोपी की ऐसी आदतों से उसकी माताजी बहुत परेशान थीं। गोपी के पिताजी की एक हादसे में मृत्यु हो गई थी। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था। उसकी माताजी को यह चिंता भी रहती थी कि गोपी पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं लेता।

उधर गोपी को अपनी माँ पर गुस्सा आ रहा था। पलंग पर पड़ा वह रोता रहा। कुछ सोच रहा था। अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा, 'क्यों न मैं पास वाले शहर में अपने दोस्त हैपी के पास चला जाऊँ। माताजी ढूँढेंगी तो परेशान तो होंगी।'

बस, फिर क्या था। वह माँ के घर से निकलने का इंतजार करने लगा और जैसे ही वे पड़ोस में किसी काम से गई, वह चुपके से घर से बाहर निकल लिया और बड़-बड़े कदम भरता हुआ चलने लगा। चलने से पहले उसने माँ के पर्स से बीस रूपये का एक नोट भी निकाल लिया।

कुछ देर बाद गोपी की माताजी घर आ गई। जब उन्हें गोपी कहीं नजर नहीं आया तो वे उसे ढंूढने लगीं। फिर उन्होंने सोचा कि वह अपने किसी दोस्त के पास गया होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा।

धीरे-धीरे अँधेरा घिरने लगा और रात हो गई। गोपी अभी तक नहीं लौटा था। उसकी माँ की चिंता बढ़ने लगी। वह इस बात से बिलकुल बेखबर थीं कि वह कभी दौड़ता, तो कभी किसी साइकिल या स्कूटर से लिफ्ट लेता हुआ दूसरे शहर पहुँच गया होगा। वह अपने दोस्त हैपी का घर तो जानता ही था। हैपी के माता-पिता को इस शहर में आए दो साल से ज्यादा समय हो गया था। हैपी के पिताजी की इस शहर में बदली हो गई थी। इसलिये वह गोपी का स्कूल छोड़ कर चला गया था।

गोपी अभी हैपी के घर वाली गली में दाखिल हुआ कि उसने देखा, एक लड़का खंभे की ट्यूब की रोशनी में पढ़ने में व्यस्त था। वह उसके पास गया और उसे एकटक देखता रहा। फिर उसने पूछा, 'क्या कर रहे हो भाई?'

उस लड़के ने नजर उठाई और बोला, 'पढ़ रहा हूँ।' यह कहकर वह फिर पढ़ने लगा। गोपी के दूसरे प्रश्न ने उसका ध्यान भंग कर दिया। गोपी का सवाल था,
'कौन सी कक्षा में पढ़ते हो?'
'दसवी कक्षा में।' उत्तर मिला।
'कौन से स्कूल में?' गोपी की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी।
'स्कूल में नहीं प्राइवेट ।'

वह लड़का कुछ और पढ़ना चाहता था, लेकिन गोपी के सवालों ने उसका मन उचाट कर दिया। वह अपनी पुस्तकें समेटने लगा। उसका हर रोज रात को साढ़े दस बजे तक पढ़ने का नियम था।

बातों-बातों में गोपी को यह पता चल गया कि उस लड़के के माता-पिता नहीं हैं और वह साइकिल की एक दुकान पर मरम्मत का काम करता है।

गोपी ने उससे और भी कई बातें कीं। इतने मेहनती लड़के की बातें सुनकर गोपी सन्न रह गया। उसे यह भी पता चला कि वह हर साल आधे मूल्य पर पुरानी किताबें खरीदकर पढ़ता है। गोपी ने उसकी पुस्तके देखीं तो मन ही मन उसे शर्म आई। वह सोचने लगा, उसकी माँ तो उसे नई किताबें खरीदकर देती हैं और वह उनका ऐसा हाल बना लेता है जैसे वे दो-तीन साल पुरानी हों।

गोपी के मन को एकदम झटका-सा लगा। अपनी पुस्तकों और शिक्षा के प्रति ऐसा स्नेह? इतनी मेहनत? उसे अपने से ग्लानि-सी होने लगी। वह उस लड़के को दूर तक जाते हुए देखता रहा। फिर वह सोचने लगा, उसने जो कुछ भी किया, अच्छा नहीं किया। उसने फैसला किया कि वह माँ को सारी असलियत बता देगा और माफी माँग लेगा। अब वह अपनी किताबें भी संभाल कर रखेगा। उसकी कोई भी चीज इधर-उधर नहीं बिखरेगी।

गोपी काफी देर तक यही सब सोचता रहा। हालांकि एकबारगी उसका मन हुआ भी कि वह सामने दिख रहे हैपी के घर की घंटी बजा दे, लेकिन न जाने क्या सोच कर उसने ऐसा नहीं किया।

अब उसके कदम तेजी से पीछे की तरफ लौट रहे थे अपने घर की तरफ।


१ जून २००२

  
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