| याक तिब्बत 
                        के ठंडे तथा वीरान पठार, नेपाल और भारत के कुछ उत्तरी 
                        इलाकों में याक आठ-दस हज़ार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है। 
                        यह काला, भूरा, सफ़ेद या धब्बेदार हो सकता है। याक का 
                        शरीर घने, लम्बे और खुरदरे बालों से ढका रहता है। जाड़े के 
                        मौसम में ये बाल और अधिक घने तथा लम्बे हो जाते हैं, इस 
                        कारण वह तिब्बत के विषम जाड़े में, शून्य से चालीस डिग्री 
                        से भी कम तापमान में, आराम के साथ बाहर रह जाता है। वयस्क 
                        याक ६ फुट तक ऊँचा होता है और उसका वज़न एक टन तक हो सकता 
                        है।  याक उस 
                        घास पर जीवित रहता हैं, और बड़े चाव से खाते हैं, जिसे 
                        अन्य पशु देखना तक नहीं चाहते हैं। जब पहाड़ी ढ़ाल पर घनी 
                        बर्फ़ जमी होती है, तो वह अपने नुकीले सींगों से दबी घास 
                        के ऊपर की बर्फ़ को हटाकर घास खोज लेता है। और जाड़े के 
                        मौसम में जब पानी जम जाता है तो वह बर्फ़ खाकर अपनी प्यास 
                        बुझाता है। इस प्रकार कठिन परिस्थितियों में भी वह मज़े से 
                        जीवन निर्वाह करता है। याक 
                        तिब्बत निवासियों का मुख्य धन है। उसकी खाल से वे अपने लिए 
                        ऊनी वस्त्र बनाते हैं। याक के बाल से स्त्रियाँ तम्बुओं के 
                        लिए कपड़े तैयार करती हैं। उसके बाल की रस्सियाँ बहुत 
                        मज़बूत होती है। बोझा ढोने के अतिरिक्त याक तिब्बत वासियों 
                        को दूध, मक्खन, पनीर, शिकार, चमड़ा, ऊन तथा गोबर देता है 
                        जिनका उपयोग आग तापने व भोजन बनाने में किया जाता हैं। प्रकृति 
                        ने उसे यह जानने की शक्ति दी है कि किसी बर्फ़ की जमी हुई 
                        सतह उसके भार को सहन कर सकेगी या नहीं। शंकित यात्री ऐसे 
                        स्थल के विषय में निश्चिंत होने के लिए याक को अपने आगे ही 
                        रखते हैं। घोड़े के समान याक भी कभी रास्ता नहीं भूलता है, 
                        उसे उत्तम दिशा का ज्ञान होता है। 
                        देवस्थलों में पूजा के समय मूर्तियों के सम्मुख हिलाया 
                        जाने वाला चँवर याक की ही दुम के बालों से बनाए जाते है, 
                        याक को उत्तराखंड में 'चँवरी गाय' कहते हैं। सफेद चंवर 
                        सर्वोत्तम माना जाता है। इस पर हिन्दू सोने या चाँदी का 
                        मुठ्ठा चढ़ा देते हैं, जो देवस्थल तथा उत्सवों की शोभा 
                        बढ़ाने के लिए हिलाया-डुलाया जाता है।  
                        १ जून २००४
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