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वनमानुष

गोरिल्ला, चिम्पैन्ज़ी, बबून और गिब्बन वनमानुष जाति के बंदर हैं। इनकी दुम नहीं होती है और वे मनुष्य की तरह दो पैरों पर शरीर को साध कर चल सकते हैं। इसी कारण इस जाति के बंदरों को वनमानुष कहा जाता है।

भारत में पाए जाने वाले वनमानुष को हुक्कू बंदर कहते हैं। यह असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम से लेकर बंगला देश, म्यांमार और दक्षिण चीन के सदा-हरित वनों में पाया जाता है। भारत के लगभग हर चिड़ियाघर में इसको देखा जा सकता है। इनका का रंग काला होता है लेकिन वयस्क होने पर मादा हुक्कू के शरीर के बालों का रंग भूरा हो जाता है। इनकी बांहें लंबी और मज़बूत होती हैं जिनकी सहायता से यह पेड़ों पर झूलते हुए लंबी लंबी दूरियाँ तय करते हैं। अपने दल से बात करने या उनका ध्यान आकर्षित करने के लिए यह हुक्कू-हुक्कू की ज़ोरदार आवाज़ करता है। इसीलिए इसका नाम हुक्कू बंदर रखा गया है। हर बंदर की तरह इसका प्रमुख भोजन फल है लेकिन यह पत्तियाँ, कंदमूल, अंडे और मकड़ियों को भी शौक से खाते हैं। इनकी ऊँचाई लगभग तीन फुट और वज़न छह से आठ किलो तक होता है।

चिंपैंज़ी जाति के वनमानुष सबसे बुद्धिमान समझे जाते हैं। वे अपने भोजन के लिए कीड़े मकोड़े तलाश करने के लिए पत्थर या लकड़ी को औज़ार की तरह इस्तेमाल करते है। बबून जाति की मादा खतरे का आभास होते ही छोटे बच्चों को लेकर पेड़ों व सुरक्षित स्थान पर जा बैठती है जबकि नर खतरे का सामना करते हैं। सभी जातियों के वनमानुष एकदूसरे के बदन से गन्दगी को हटाकर बालों की सफाई करने में एकदूसरे की मदद करते हैं जिसे वे प्यार जताना भी समझते हैं। वे दो से पाँच तक के दल में रहते हैं, सांकेतिक भाषा बोलते हैं और अपने खास संकेतों से वे परिवार में एक दूसरे के साथ संपर्क बनाए रखते हैं।
१ जुलाई २००४


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(यह लेखमाला श्रीचरण काला की पुस्तक भारतीय वन्य पशु पर आधारित है)
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