गैंडा
गैंडा प्रकृति का वीर
योद्धा है। उसकी विशेषता उसके नाक पर सींघ का होना है। नाक
पर लम्बे-लम्बे और अति मोटे बाल एक लसदार पदार्थ से चिपक
कर सींघ का रूप धारण कर लेते हैं। सींघ का नाक की हड्डी से
कोई सम्बन्ध नहीं होता। शत्रु पर वह सींघ से प्रबल प्रहार
करता है।
प्राचीन काल में गेंडे की
खाल से ढाल बनाए जाते थे। तलवार के वार का उस पर कोई असर
नहीं होता। किंतु यह विचार ग़लत है कि गोली का उस पर असर
नहीं होता।
गेंडा शाकाहारी जन्तु है।
उसका प्रधान भोजन लम्बी घास है, किन्तु वह सींघ से जड़ें
खोद कर भी खाता है। गेंडा उन जंगलों में रहता है, जहाँ
लम्बी घास होती है। दिन के समय वह घंटों कीचड़ में पड़ा
रहता है। दलदल या छिछले तालाबों के सूख जाने पर, वह स्थान
बदल लेता है। घास के घने जंगलों में गेंडे अपने मार्ग बना
लेते हैं। इन संकरे रास्तों से वे प्रतिदिन गुजरते हैं, जो
लम्बी घास के झुकने के कारण सुरंग की भांति बन जाते हैं।
गेंडा इन खुफिया रास्तों से लम्बी-लम्बी दूरियाँ बिना देखे
तय कर लेता है।
अन्य भारी पशुओं से भारी
गेंडा भी आलसी तथा आराम तलब स्वभाव का होता है। पेट भरने
के बाद चुपचाप एकांत में जाकर लेटता है। उसकी खाल की परतों
में बड़ी संख्या में कीड़े रहते हैं। इन्हें खाने के लिए
प्रत्येक गेंडे के साथ कई पक्षी रहते हैं। वे गेंडे को
कीड़ों से ही छुटकारा नहीं देते, बल्कि उसे सचेत भी करते
हैं। इनकी संकेत ध्वनि को गेंडा खूब समझता है, पक्षियों की
खतरे की सूचना पाते ही भाग खड़ा होता है।
गेंडा शान्त स्वभाव का
पशु है। वह कभी झगड़े में नहीं पड़ता है। खतरे के समय वह
जान बचाकर भाग निकलना ही श्रेयकर समझता है। किन्तु घायल
होने पर किसी भी प्राणी से नहीं डरता और बेधड़क होकर
आक्रमण करता है। गेंडा मंद बुद्धि पशु है। अकस्मात खतरे का
सामना होने पर वह सोचता ही रह जाता है कि क्या करना चाहिए,
और यह सोच-विचार उसके लिए घातक सिद्ध होता है। मनुष्य के
अतिरिक्त गेंडे को किसी पशु का डर नहीं रहता है। शेर और
हाथी तक उससे दूर ही रहते हैं।
गेंडे की आँखें छोटी होती
हैं, और दृष्टि निर्बल होती है लेकिन उसकी सूँघने की शक्ति
बहुत प्रबल होती है। भारी शरीर के होते हुए भी गेंडा ख़तरे
के समय कई किलोमीटर तक तेज़ी से भाग लेता है।
चीन और भारत में गेंडे के
सींघ की औषधि में विशेष महत्ता मानी गई है। इस कारण सदियों
से गेंडे का अनियंत्रित वध होता चला आ रहा है। वर्तमान समय
में भारत और अफ्रीका में ये पशु इतने कम रह गए हैं कि उनके
पूर्ण विनाश की सम्भावना है, इसलिए इन पशुओं का वध सरकार
ने निषेध कर दिया है।
१
अप्रैल २००३ |