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फुलवारी जंगल के पशु

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भेड़िया

भेड़िये की दो प्रमुख जातियाँ हैं। लकड़ी जैसे भूरे रंग वाले और लाल रंग वाले। उत्तर अमेरिका, उत्तर एशिया, भारत और यूरोप के जंगलों में भूरे काले रंग के भेड़ियों की कई किस्में मिलती हैं। लाल रंग का भेड़िया बहुत दुर्लभ है और अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी भागों में पाया जाता है। भेड़िया गाँवों की खुली जगहों या जंगलों में रहता हैं।

भूरा भेड़िया नाक से पूँछ की आखरी छोर तक १२० से २०० सें.मी. तक लंबा होता हैं। ७५ से ८० से.मी. ऊंचे भेड़िये का वज़न २० से ६० किलो तक होता है। खड़े ऊंचे कान, लम्बी नाक वाले भेड़िये की पूँछ पर घने बाल होते है। शिकार चबाने लिए उसके मज़बूत जबड़ों के भीतर नुकीले और तेज़ दाँत होते हैं।

भेड़िया होशियार और साहसी शिकारी होता है। वह अकेले शिकार कर सकता हैं लेकिन अधिकतर तीन से तीस का दल मिल कर शिकार करता है। इस दल का नेतृत्व नर व एक मादा का एक जोड़ा करता हैं। दल में साथ मिल कर शिकार करने के कारण वे हिरन जैसे बड़े पशु का शिकार भी कर लेते हैं। वे अच्छे तैराक होते हैं और ज़रूरत पड़ने पर पानी में घुसकर भी शिकार का पीछा करते हैं। शिकार के समय उनकी एकजुटता देखते बनती है। वे मिलकर ऐसे वार करते हैं जैसे वे एक बार भरपेट भोजन करलें तो कई दिनों तक बिना कुछ खाए रह सकते है।

भेड़िये एक बार जिसे साथी चुनते हैं उसका साथ जीवन भर निभाते हैं। मादा भेड़िया किसी झुरमुट या चट्टानों के बीच अपनी माँद का चुनाव करती है और उसकी ज़मीन पर पत्तियों व रेशों की एक सतह बना देती है। वह एक बार में ३ से ७ बच्चों को जन्म देती है और उनका बहुत ख्याल रखती है। ८ से ९ दिनों बाद बच्चों की आँखें खुलती हैं। ज़रूरत महसूस होने पर मादा बच्चों को मुँह मे दबा कर एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। शिकार करना सीखने के बाद भी काफी दिनों तक बच्चे समूह में ही रहते हैं।

जंगलों के पास बसे गाँवों में पालतू पशुओं को भेड़ियों का डर बना रहता है। इसके कारण गाँव वाले अक्सर उन्हें गोली मारकर या जहर खिलाकर मार देते हैं। कभी कभी भेड़िये की झबरीली दुम के लिए भी उनका शिकार किया जाता हैं जिसकी 'फ़र' फैशन की दुनिया में महँगी बिकती है।  

1 Agast 2004


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(यह लेखमाला श्रीचरण काला की पुस्तक भारतीय वन्य पशु पर आधारित है)
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