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पर्यटन

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कुमाऊँ का काशी- जागेश्वर
- मधु चाँदना


पर्वत के ऊँचे शिखरों, देवदार की वादियों तथा कलकल करती नदी के तट परम पवित्र देवभूमि ‘जागेश्वर’ का अपना ही अलौकिक सौंदर्य है। अल्मोड़ा (उत्तरांचल प्रदेश) से ३४ कि.मी. की दूरी पर बसी, फूलों, तितलियों और देवदार के साये में पली ये वादी अपनी अद्वितीय सुंदरता का साक्षात प्रमाण है।

हजारों घंटियों वाला मंदिर-

अल्मोड़ा से इस खूबसूरत वादी में पहुँचने के लिए बसें, जीपें, टैक्सियाँ आदि वाहन उपलब्ध होते हैं। अल्मोड़ा से जागेश्वर पहुँचते समय मार्ग में ‘तेंदुआ वन विहार’ में सुंदर वन्य प्राणियों के देखे बिना सफर अधूरा प्रतीत होता है। इसके बाद थोड़ा-सा आगे जाने पर कुमाऊँ का प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर ‘चित्तई मंदिर’ आता है। गोल्ल देव के इस मंदिर में हजारों घंटियाँ लगी हुई हैं। कहा जाता है कि मनौती पूरी होने पर श्रद्धालुगण यहाँ घंटियाँ चढ़ाते हैं। पूजा के समय मंदिर में बजती हजारों घंटियों की मधुर ध्वनि वादियों में प्रतिध्वनित होती रहती है, जो कि कानों को अत्यंत ही प्रिय लगती है। रास्ते के दिलकश नजारों को देखकर तो मनुष्य बरबस ही आकर्षित हो जाता है। चारों ओर हरे-भरे देवदार के जंगल तथा पहाड़ों की उन्नत चोटियों को देखकर मन मंत्र-मुग्ध हो जाता है। समुद्रतल से १८७० मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस घाटी के हरे-भरे जंगलों में जब तेज हवाएँ चलती हैं, तो ऐसा लगता है कि जैसे दूर कहीं झरने गिर रहे हों। नदी की कलकल की ध्वनि संपूर्ण वातावरण को संगीतमय बना देती है।

आठवाँ ज्योतिर्लिंग

जागेश्वर कुमाऊँ अंचल के परम पवित्र तीर्थों में से एक माना जाता है। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ये बारह लिंग इस प्रकार हैं- पहला- काठियावाड़ में श्री सोमनाथ, दूसरा- मद्रास में कृष्णा नदी के तट पर श्री मल्लिकार्जुन, तीसरा- उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट पर श्री महाकालेश्वर, चौथा: मालवा प्रांत के नर्मदा नदी के तट पर ऊँकारेश्वर, पाँचवाँ- हैदराबाद के निकट श्री वैद्यनाथ, छठा- नासिक से १२० मील दूर भीमा नदी के तट पर श्री भीम शंकर, सातवाँ- मद्रास में श्री रामेश्वरम्, आठवाँ- अल्मोड़ा में स्थित जागेश्वर (३४ कि.मी. की दूरी पर) जटा गंगा के तट पर (श्री नागेश), नौवाँ- काशी में श्री काशी विश्वनाथजी, दसवाँ- नासिक में गोदावरी के तट पर श्री आंबकेश्वर, ग्यारहवाँ- बद्रीनाथ के समीप श्री केदारनाथ, बारहवाँ- दौलताबाद के निकट श्री वेरुल धूश्मेश्वर, इन बारह ज्योतिर्लिंगों में से जागेश्वर का आठवाँ स्थान है। जागेश्वर को कई नामों से पुकारा जाता है, जैसे- यागेश, जागेश, नागेश, बाल जगन्नाथ आदि। इस मंदिर की स्थापना के संबंध में बहुत से मत हैं पर मुख्य रूप से इसे ८ वीं सदी से १४ वीं सदी के बीच माना जाता है, जो कि पूर्व कत्यूरी काल, उत्तर कत्यूरी काल तथा चंद्रकाल का समय था।

शिव-पार्वती लिंग रूप में

कहा जाता है कि भगवान शंकर एक समय जागेश्वर आये। उन्हें यह स्थल अति सुंदर लगा और उन्होंने अपनी समाधि यहीं पर लगा ली। भगवान शंकर की खोज में जगतजननी माँ पार्वती यहाँ आयीं। जब उन्होंने भगवान को समाधि लगाये देखा, तो वह भी उन्हीं के समीप आँखें मूँदकर समाधि में लीन हो गयीं। इस प्रकार काफी समय बीत गया, न तो भगवान शंकर की समाधि छूटी और न ही माँ पार्वती की। कुछ समय बाद तैंतीस करोड़ देवता यहाँ आये। पुष्टिदेवी, बालेश्वर के मंदिर तथा कई अन्य छोटे-छोटे मंदिर बनाये गये। इस मंदिर में भगवान मृत्युंजय का सबसे बड़ा लिंग निर्मित किया गया है। पुराने समय से ही इस मंदिर के प्रति यह मान्यता रही है कि जो मनुष्य जिस वस्तु की कामना करता था, वह उसे इस मंदिर में प्रत्यक्ष प्राप्त हो जाती थी।

छोटा केदारनाथ मंदिर

इस विशाल मंदिर के दक्षिण-पूर्व में श्री केदारनाथ का मंदिर है जो कि ११ वें ज्योतिर्लिंग केदारनाथ से छोटे केदारनाथ के नाम से जाने जाते हैं। इनका लिंग भी ११ वें केदारनाथ के ज्योतिर्लिंग के समान ही दिखायी देता है। इसके दक्षिण-पश्चिम भाग में नवदुर्गा की एवं अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जिनकी पूजा अन्य मूर्तियों की तरह ही की जाती है। जागेश्वर (जगन्नाथ मंदिर) के सामने पूर्व दिशा में जटा गंगा के शिखर पर कुबेरजी की एक मूर्ति लिंग रूप में विद्यमान है। कुबेर विश्रवा के पुत्र थे, जिन्होंने हजारों वर्षों की कठिन तपस्या कर भगवान शंकर के दर्शन प्राप्त किये। जागेश्वर से ३ कि.मी. की दूरी पर उत्तर की ओर श्री वृद्ध जगन्नाथ का मंदिर है, जो कि अत्यंत प्राचीन है। जागेश्वर से अधिक पुराना होने के कारण इसे वृद्ध जगन्नाथ के नाम से जाना जाता है।

इस सुंदर नगरी में रहने के लिए उत्तरांचल प्रदेश कुमाऊँ विकास मंडल निगम का एक यात्री निवास उपलब्ध है। यहाँ पर सादा वैष्णवी भोजन मिलता है। आसपास कुछ छोटे-छोटे रेस्टोरेंट भी हैं। एकांत में बसा यह यात्री निवास शहरी लोगों के लिए अत्यंत मनोरम स्थान है। देवदार के जंगलों में बसा यह स्थान पर्यटकों के लिए शांतिदायक तथा स्फूर्तिदायक है। जहाँ एक ओर प्रकृति प्रेमी इसकी प्राकृतिक छटा का आनंद उठा सकते हैं, तो दूसरी ओर श्रद्धालुगण इस देवभूमि पर ईश्वर के दर्शन कर गद्गद् हो जाते हैं। यह स्थल सभी तरह के प्रकृति तथा ईश्वर प्रेमियों के लिए अनूठा मिलन स्थल है। प्रकृति के ईश्वरीय सौंदर्य से संपन्न इस देवभूमि को ‘कुमाऊँ की काशी’ के नाम से जाना जाता है।

 

 १० नवंबर २०१४

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