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पर्यटन

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अमृतसर- जहाँ अमृत बरसता है
-गुरमीत बेदी


अमृतसर को सिखों का महान तीर्थ स्थल भी कहा जाता है और अमृत बरसाने वाला शहर भी। अमृतसर जिंदादिल लोगों का बसेरा भी है और पंजाबियत की जीती-जागती मिसाल भी। अमृतसर ने इतिहास के अनेक थपेड़े भी सहे हैं और उतार-चढ़ावों से भरपूर अनेक दौर भी देखे हैं। अमृतसर के लोगों की जिंदादिली की एक झलक चंद्र धर शर्मा गुलेरी की कालजयी कहानी ‘उसने कहा था’ के कुछ प्रसंगों में भी मिलती है और पंजाब के लोक गीतों में भी। अमृतसर सांप्रदायिक सद्भाव की जीती-जागती मिसाल भी है और लजीज पंजाबी व्यंजनों की नगरी भी।

अमृतसर की स्थापना

सिख धर्म के सबसे प्रमुख और पवित्र तीर्थ अमृतसर की स्थापना गुरु अमरदासजी ने की थी। इसके प्राकृतिक और पवित्र सौंदर्य से अभिभूत होकर उन्होंने इसका चयन किया। कई सिख विद्वानों के अनुसार इस स्थल के चयन के बाद गुरु अमरदासजी स्वयं चतुर्थ गुरु रामदासजी, बाबा बुड्डाजी और अन्य सिख संतों को साथ लेकर यहाँ पहुँचे। आसपास के हजारों ग्रामीण भी वहाँ एकत्रित हुए और एक नगर बसाने के लिए अरदास की गयी। गुरु अमरदासजी ने अपने हाथों से पहला नींव का पत्थर रखा। ‘रिपोर्ट श्री हरमंदिर साहिब’ में इस नगर का नींव पत्थर रखने की तिथि १५६४ ई. बतायी गयी है। लेकिन इस तिथि के बारे में सिख विद्वानों के विभिन्न मत हैं। जिस स्थल पर शहर का पहला नींव पत्थर रखा गया था, वहाँ पहले ‘गुरु का महल’ बना। यह पावन स्थल गुरु रामदासजी, गुरु अर्जुन देवजी और गुरु हरगोविंदजी महाराज का निवास स्थान बना और गुरु तेगबहादुर का जन्म भी यहीं हुआ।

अमरसर से अमृतसर

शहर का नामकरण अमृतसर कैसे हुआ इस बारे में भी विद्वानों के विभिन्न मत हैं। गुरप्रताप सूरज के अनुसार, नगर का नींव पत्थर रखने के उपरांत गुरु रामदास ने गुरु अमरदास के आदेशानुसार बाबा बुड्डाजी को साथ लेकर ‘टाहली’ के वृक्ष के नजदीक पवित्र सरोवर का ठिकाना ढूँढा। मिष्ठान्न मँगवाकर बाबा बुड्डजी द्वारा अरदास करने के बाद गुरु रामदासजी ने पहला फावड़ा चलाकर सरोवर की खुदाई आरंभ की। फिर इस काम में श्रद्धालु भी जुटे।

यह सरोवर अभी अधूरा था कि गुरु रामदास, बाबा बुड्डजी और अन्य सिख संतों को गुरु अमरदासजी ने बोईदवाल बुला लिया। दूसरी बार गुरु रामदासजी वापस आये तो तीसरे गुरु के आदेशानुसार अमृतसर सरोवर की कार सेवा आरंभ की गयी और नगर निर्माण भी चलता रहा। गुरु रामदास के समय यह सरोवर अधूरा ही रहा। फिर गुरु अर्जुन देव ने नये सिरे से सीढ़ियाँ और परिक्रमा पथ को पक्का बनवाया। इस सरोवर का नाम रखा गया-संतोखसर। बाद में शहर में विभिन्न स्थानों पर तीन अन्य सरोवर बनाये गये।

श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर)

श्री हरमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के वर्तमान विशाल सरोवर की गुरु रामदास द्वारा आरंभ करवायी गयी खुदाई १५८९ में संपूर्ण हुई। पंचम गुरु अर्जुन देवजी ने गुरु गद्दी पर विराजमान होने के बाद यह अनुभव किया कि अमृत सरोवर के बीच एक ऐसे सुंदर हरिमंदिर का निर्माण करवाया जाए, जिसकी भव्यता अनुपम हो, स्थापत्य कला की दृष्टि में संसार में जिसका कोई सानी न हो और सबसे बढ़कर जिसमें प्रभु के किसी भी प्यारे बंदे के साथ धर्म, जाति, नस्ल के आधार पर कोई भेदभाव न हो, जो धर्मों-समुदायों के मानने वालों के लिए साझा तीर्थ हो।

‘तवारीख अमृतसर’ में लिखा है कि गुरु रामदास ने अपने गुरु अमरदास के नाम पर इस सरोवर का नाम ‘अमरसर’ रखा था जो कि ‘अमृतसर’ हो गया। इसी सरोवर के नाम पर फिर नगर का नाम ही अमृतसर पड़ गया। यह अमृत सरोवर ५०० फुट लंबा, ४९० फुट चौड़ा और १८ फुट गहरा है। कई विद्वानों ने तो अमृत सरोवर की तुलना मानसरोवर के साथ की है। समय-समय पर इस पवित्र सरोवर की सफाई ‘कार सेवा’ से की जाती रही। अब तक ऐसी दस ‘कार सेवाएँ’ हो चुकी हैं।

सर्वधर्म समभाव का प्रतीक

सिखों के सर्वोच्च धार्मिक स्थान हरिमंदिर साहिब जिसे हरमंदिर साहिब, स्वर्ण मंदिर और दरबार साहिब के नाम से भी जाना जाता है, की नींव संवत १६४० विक्रमी में गुरु अर्जुन देव ने एक मुसलमान पीर साई मियां मीर से रखवा कर सर्वधर्म समभाव और धर्मनिरपेक्षता का एक नया आदर्श प्रस्तुत किया था। आज यह पावन स्थल सिख गुरुओं की अमर यादगार है।

 

 २२ सितंबर २०१४

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