परिक्रमा दिल्ली दरबार

भारतीय सम्प्रभुता पर आतंकवादी हमला

तेरह दिसम्बर २००१ को आत्मघाती आतंकवादियों ने विश्व के सबसे बडे लोकतान्त्रिक देश के मर्मस्थल संसद  भवन पर रमजान के पाक दिनो में हमला कर भारत सहित समूचे विश्व जगत को हतप्रभ कर दिया, जिसे भारतीय सुरक्षा कर्मियो ने अपने प्राणो की आहुति देकर तत्परता से विफल कर दिया। कदाचित आत्मघाती आतंकवादी इसमे सफल हो गये होते तो भारत के समूचे राजनैतिक नेतृत्व में जो शून्य उपस्थित हो जाता उसकी कल्पना ही भयावह है।

भारत  विगत १३वर्षो से सघन आतंकवादी गतिविधियों से जूझ रहा है  लेकिन आत्मघाती आतंकवादियों का यह हमला भारत की सम्प्रभुता पर सीधा–सीधा आक्रमण था।

काबिले गौर है कि भारतीय संसद भवन तक पहुँचने के लिये आतंकवादियो ने तीन चरणो की अभेद्य सुरक्षा व्यवस्था को पार करने मे जो सफलता प्राप्त की वह राष्ट्रीय सुरक्षा और साथ ही राष्ट्रीय प्रतिष्ठा की दृष्टि से एक गम्भीरतम घटना थी। यह ठीक है कि वे अपने नापाक मंसूबो को अन्जाम नही दे पाये न ही किसी सांसद या संसद भवन को क्षति पहुँचा सके किन्तु संसद भवन के मुख्य गेट तक पहुँच पाने मात्र से ही इन आतंकियों के हौसले जरूर बुलन्द हुए होंगे।

बम्बई मे गिरफ्तार हुये आतंकवादी के इकबालिए बयान के मुताबिक ११सितम्बर को ही अमेरिका के साथ–साथ भारत ब्रिटेन तथा आस्ट्रेलिया की संसद पर आतंकी हमला होना था। निश्चय ही यह आतंकवादियों की कुत्सित मंशा की कडी है और उन्हे संसद भवन तक पहुँचने मे जो सफलता प्राप्त हुयी वह भरतीय सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नवाचक चिन्ह है।

भारत पर हुये इस आतंकी हमले ने भारतीय सरकार की तन्द्रा को झकझोर कर रख दिया जिसके परिणाम स्वरूप सरकार ने त्वरित कार्यवाही कर इस साजिश को बेनकाब कर दिया ।अनेको लोगो की गिरफ्तारियों, उनके बयानो तथा उनसे मिले पुख्ता  सबूतों से यह सर्वविदित हो गया कि इन दुस्साहसिक एवं कुत्सित गतिविधियों के पीछे लश्करे तोइबा और जैश–ए–मोहम्मद आतंकवादी संगठन संलिप्त हैं जिसकी परवरिश पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था आई एस आई द्वारा की जा रही है।  

पाकिस्तानी दूतावास के कर्मचारी की गिरफ्तारी ने इस अन्देशा को पुख्ता कर दिया है कि संसद पर हुए मानव बमों के तार पाकिस्तानी उच्चायुक्त कार्यालय से भी जुडे हैं।

भारतीय सरकार  ने इस सम्बन्ध में एकत्रित किये गये सम्पूर्ण दस्तावेजी सबूतों को  सारी दुनिया को मुहैया करा दिया है विशेष रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति बुश  के समक्ष प्रस्तुत करके  आतंक विरोधी मुहिम में सक्रियता दिखाने का आग्रह किया है। लेकिन पाकिस्तानी  सरकार ने आज तक इन साक्ष्यों को गम्भीरता से नही लिया। पाकिस्तानी प्रवक्ता जनरल रशीद कुरैशी ने तो यहा तक कह डाला कि सशस्त्र आक्रमण की यह  कार्यवाही  भारतीयों की अपनी कारस्तानी थी जिसे भारत ने पाकिस्तान की छवि धूमिल करने के इरादे से अंजाम दिया। इस हास्यास्पद टिप्पणी में छिपे बेबुनियाद झूठ को आज विश्व जनमत अच्छी तरह समझ चुका है।

विश्व के बडे राष्ट्रो के अपने स्वार्थ है इसी काराण जिस अमेरिका ने आतंकवादियों के खिलाफ जंग का एलान करके 'जहाँ भी आतंकवादी होंगे उनके खिलाफ सशस्त्र कार्यवाही की जायेगी'  यह घोषणा की थी वह अब न केवल अपनी शब्दावलियों में उस तैश को भूल गया है अपितु परोक्ष रूप से पाकिस्तान  का सहयोग भी कर रहा है। जाहिर है कि उसका स्वार्थ ही उसे ऐसा करने के लिये बाध्य कर रहा है। पाकिस्तान की भी दोमुँही नीति है एक तरफ तो वह अमरीका के प्रति आतंकवाद को समाप्त करने के प्रति कृतसंकल्प है और दूसरी तरफ भारत के विरूद्ध आतंकवाद का सर्मथन कर रहा है।

आतंकवाद के विरूद्ध ऐसा विशाल और अनुकूल जनमत विश्व में इससे पूर्व कभी नही रहा अतः भारत के लिये मौका और दस्तूर दोनो की मांग के अनुसार आतंकवाद पर निर्णायक प्रहार से चूकना देश और जनता दोनो के प्रति  विश्वासघात होगा।

 

भारतीय सरकार को इस मुगालते मे नही रहना चाहिए कि उसकी अपनी आतंकी समस्या को समाप्त करने के लिए अमेरिका रूस या ब्रिटेन आगे आयेगे। केवल कोरी संवेदनाओं एव बयानबाजी से  राष्ट्र और जनता को सुरक्षा का विश्वास नही दिलाया जा सकता है इसलिए आपसी सहयोग और प्रतिबद्धता दिखानी होगी।  

निश्चित रूप से संसद पर फिदाइन हमले के बाद सरकार एवं विपक्षी दलों की एकता  का ऐताहासिक प्रर्दशन किसी भी लोकतान्त्रिक राष्ट्र के लिए गौरव की बात होगी। जहाँ पूर्व में विपक्षी दलो और सरकार के बीच आतंक विरोधी अधिनियम  के मुददे पर काफी जददो जहद थी वहीं अपनी सम्प्रभुता पर हुए आघात पर उन्होंने समवेत स्वर मे आतंकवादियो को पनाह देने वालो के प्रति कठोर कदम उठाने के प्रति सक्रियता दिखायी है।  

पाकिस्तान द्वारा परमाणु बम की धमकी से भारत कब तक आतंकवाद का आघात झेलता रहेगा,  इसी कारण भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेई का यह कहना कि हमे अपनी लडाई स्वयं लडनी होगी जमीनी धरातल पर हकीकत है। आज समूचा देश इस निर्णायक युद्ध में अपनी सरकार के साथ है।

१३दिसम्बर के फिदाइन हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान में उतरोतर तनाव बढता जा रहा है ।भारत ने अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया है एवं समझौता एक्सप्रेस तथा लाहौर बस को भी १जनवरी से बन्द करने की घोषणा को अन्जाम दे दिया है। भारतीय वायुक्षेत्र में पाकिस्तान की हवाई उडानो को भी प्रतिबन्धित कर दिया गया है। भारतीय सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ इस समय जो ताजा कदम उठायें है वह अत्यन्त ही सख्त लेकिन सुविचारित हैं। 

सेनाओं का जमावडा सीमाओ पर हो गया है । दोनो देश एक बार फिर खून और आग के दरिया में जाने की ओर अग्रसित हैं। एक छोटी सी घटना युद्ध में परिणित हो सकती है । सामारिक स्थिति में पाकिस्तान भारत के सामने कहीं नही ठहरता है किन्तु फिर भी दोनो देशो को युद्ध से परहेज करना चाहिए तथा पाकिस्तान को यह मान लेना चाहिए कि आतंकवाद समस्या का हल नही अपितु विनाश का कारण है। पाकिस्तान जहाँ एक ओर आतंकवाद के खिलाफ लड रहा है वही दूसरी ओर आतंकवादी गतिविधियों मे संलग्न संगठनो को सहयोग देकर अपनी दोमुँही नीति का खुला प्रर्दशन कर रहा है।

अफगानिस्तान में जिस आतंकी नीति के बल पर पाकिस्तान ने अपना साम्राज्य स्थापित किया था वह पूर्ण रूप से ध्वस्त हो चुका है तथा उसे वहाँ शर्मसार होना पडा है। अब कश्मीर में भी उसकी नीति उसी दिशा की ओर बढ रही है जो उसके अस्तित्व के लिए संकट पैदा कर सकती है। 

कश्मीर विधान सभा पर हुआ आतंकी हमला भारतीय सरकार के मुँह पर कालिख पोतने जैसा था। सीमा पर मिसाइलों की तैनाती दोनो देश के सरकारों की राजनैतिक कूटनीति का पर्दाफाश कर रही है। कब तक निरीह लोगों की बलि देकर ताजो तख्त को सुरक्षित रखा जायेगा। नेपाल में हुए सार्क शिखर सम्मेलन में भी आतंकवादी गतिविधियो की भर्तस्ना की गयी। जो भारत की कूटनीतिक सफलता मानी जा रही है। दोनो देश के प्रमुखो की मुलाकात से तनाव पूर्ण स्थिति में तो बदलाव आया है । जिससे युद्ध की सम्भावनाए तो क्षीण हो रही है किन्तु भारत को आतंकवाद के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे एवं अपनी आन्तरिक सुरक्षा व्यवस्था पर पैनी नजर रखनी होगी।

उचित यही होगा कि पाकिस्तानी शासक आतंकवाद से परहेज करे। पागलपन भरी हिंसा से पाकिस्तान का राजसिंहासन वे कबतक हथियाए रह सकते हैं। वे आतंकवादियो के विरूद्ध कार्यवाही करें और अपनी जमीन से किसी को भी आतंक फैलाने न दे यही वक्त का तकाजा है। भारतीय प्रधान मन्त्री की यह कविता आज के परिपेक्ष में अनुकरणीय है। 

हर पुरानी चल रही अदावत को छोड़ दो। 
राष्ट्रों की सीमाएँ कामरेडों तोड, दो। 

— बृजेश कुमार शुक्ल