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परिक्रमा

जैविक हथियार कितने ज़ालिम

आज जब युद्ध और आतंक अखबारों के विषय बने हुए हैं, जैविक हथियारों और उससे संक्रमित लोगों की ख़बरें भी आम जनता तक पहुँच रही हैं। आखिर ये जैविक हथियार हैं क्या? इनका निर्माण क्यों, कहाँ और कैसे किया जाता है? किन देशों के पास इनके ख़ज़ाने हैं और क्या पहले भी इनका इस्तेमाल हो चुका है?

आइये इन कुछ प्रश्नों के जवाब ढूँढने चलें— कुछ रसायनो और उनको अलग अलग ढंग से आपस में मिलाकर विभिन्न प्रकार की महामारी फैलाने वाले कीटाणुओं को विकसित करके संग्रहित करना ही जैव बम या बायो बम कहलाता है। 

माना जाता है कि विश्व के कुछ ही देशों के पास जैविक हथियारों को बनाने की दक्षता है। ऐसे देशों में ईरान, इराक, चीन, जापान, अमेरिका, लीबिया, सीरिया, रूस और भूतपूर्व सोवियत संघ के कुछ देश हैं।
 
१९७२ में ही इन हथियारों के विषय में विश्व को चिंता ने आ घेरा था और इस वर्ष के जैविक हथियार घोषणा पत्र पर १४३ देशों ने हस्ताक्षर करके इसे प्रतिबन्धित करने का आपसी समझौता किया था। किन्तु सम्भावना व्यक्त की जाती है कि इसके बाद भी कुछ देशो की प्रयोगशालाओ मे इन पर काम होता रहा और वहाँ आज भी इनके भंडार सुरक्षित है।

यह संदेह को उस समय उभर कर सामने आया जब १९ ७९  में रूस के स्वेयर्दलोअस की एक सैनिक प्रयोगशाला में एंथ्रेक्स जीवाणु हवा में फैल गए और काफी लोग इनसे संक्रमित हो कर मर गए। यह कोई आतंकी घटना नही थी केवल एक दुर्घटना थी किन्तु विश्व को इसकी जानकारी हो गयी कि उस समय तत्कालीन सोवियत संघ एन्थ्रेक्स के कीटाणुओं को विकसित कर चुका था।

आज विभिन्न प्रकार के वायरस युक्त जैविक बम प्रकाश में आ रहे हैं। जैसे बोटूलिज्म प्लेग स्माल पाक्स हाइड्रोजन सायनायड सरीन सलफर मस्टार्डस वीएक्स एवं सबसे प्रमुख एंथ्रेक्स है। इस प्रकार के लगभग ५ ०  जीवाणुओं को विश्व स्वास्थ संगठन ने प्रतिबन्धित किया था। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि इन बीजाणुओं को आतंकवादी संगठनो ने प्रयोगशालाओं से हासिल कर लिया है।

जैविक हथियार परमाणु बमों से भी कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो सकते है। कल तक जो दुनिया परमाणु बमों के आतंकी हाथों में होने से पसीने पसीने हो रही थी।आज जैविक हथियारों के आतंकी हाथो में जाने से दहशत के ऐसे क्षणो से गुजर रही है जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती।

ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि जैविक बम या हथियार आतंकवादियों के लिए आतंकी गतिविधियों को अन्जाम देने के ऐसे सुगम साधन बन गये है, जिन्हें बनाने के लिए बहुत ही कम लागत की जरूरत होगी । फार्मास्युटिकल और मेडिकल जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति जैव बम को आसानी से तैयार कर सकता है, बशर्ते इसकी तकनीक उन्हें पता हो।

विशेषज्ञों का मानना है कि किसी परमाणु हमले का असर देखने के लिए हजारो डालर की जरूरत पड़ेगी जबकि जैविक हथियारों का दुष्प्रभाव देखने के लिए मात्र कुछ डालरो की जरूरत होगी और इसको तैयार करने के ल्एि किसी विशिष्ट व जटिल प्रयोगशाला की भी आवश्यकता नही होती है।

  अभी अमेरिकी नागरिको के आँसू सूखे नही कि एक नयी विपदा एन्थ्रेक्स के रूप मे मुॅह बाये खडी हो गयी । यों तो अमेरिका के आतंकवाद विशेषज्ञों ने यह आशंका पहले ही व्यक्त की थी कि अमेरिका पर जैविक हथियारो से हमला हो सकता हैं। ऐसे में एन्थ्रेक्स द्वारा हुयी मौत और कई मरीजों की हो रही पहचान से समस्त अमेरिका मे खलबली मच गयी।देखते ही देखते पूरी मीडिया मे एन्थ्रेक्स की दहशत छा गयी।

उपराष्ट्रपति डिकी चेनी को कहना पडा कि इसमे आतंकवादियों का हाथ भी हो सकता है।एफ बी आई के हाथ लगे सबूत भी इसकी पुष्टि करने लगे। वरिष्ठ सीनेटर डैश्ले की डाक मे आए एन्थ्रेक्स के जीवाणुओं ने आतंकी दहशत को चरम पर पहॅुचा दिया तथा अमेरिका के हाउस आफ रिप्रेजेन्टेटिव को ५  दिनो के लिए बन्द करने की घोषणा करनी पडी।

अमेरिका ने ५०  के दशक में एन्थ्रेक्स के जीवाणुओं को वायुमन्डल मे फेंकने का तरीका इजाद किया था। जिसके जीवाणु काफी तापमान और मौसम की स्थिति में भी नष्ट नही होते है तथा इसके भयानक प्रहार से बचा भी नही जा सकता। इनकी गम्भीरता को समझते हुए अमेरिका की खुफिया एजेन्सियां इस समय पूर्ण रूप से कटिबद्ध है कि आतंकवादियों को जैविक हथियारो के उपकरण हाथ न लगने दिये जाय।

एन्थे्रक्स जैविक हथियार के साथ यह खतरा हेै कि इसके एक गा्रम का अरबवाँ हिस्सा सैकडो लोगो को मौत की नींद सुलाने मे सक्षम है। अन्य जैविक हथियार एन्थ्रेक्स की तुलना में ज्यादा प्रभावी नही हैं और न ही इनके जीवाणुओ को हवा द्वारा वायुमण्डल मे उछाला जा सकता है। जबकि एन्थ्रेक्स इस कसौटी पर खरा उतरा है।एन्थ्रे्रक्स से मौत भले ही बडे पैमाने पर न हो सके लेकिन फिर भी पूरे समाज को तितर बितर करने और खौफज़दा करने के लिये पर्याप्त है।

फुफ्फुस युक्त एन्थ्रेक्स मूलतः घोडे बकरी सुअर भेड आदि जानवरों मे तेजी से फैलने वाली बीमारी है । इसे आसानी से मनुष्य में फैलाया जा सकता है। शायद इसीलिए यह आतंकवादियों का एक मारक हथियार बन सकता है। क्योंकि फुफ्फुसीय एन्थ्रेक्स मानव फेफडों में बहुत तेजी से संक्रमित होता है।

विश्व के अनेको देशों में एन्थ्रेक्स भरे लिफाफों का पहुँचना जारी है। अमेरिका और केन्या में सफेद पाउडर के लिफाफे से लोगो की मौत की पुष्टि हुयी है। यद्यपि अमेरिका और केन्या को छोडकर कहीं एन्थ्रेक्स का मामला सीधे प्रकाश मे नही आया ल्ोकिन चीन ब्रिटेन ओर भारत में भी लिफाफे का आतंक उत्तरोत्तर फैलता जा रहा है।
लिफाफों द्वारा आतंक फैलाने वालो का एक व्यापक तन्त्र है। वे विशेष रूप से उन देशो को निशाना बनाने में लगे हैं जो आतकवाद की पुरजोर खिलाफत करते हैं। दहशत फैलाने का यह तरीका निश्चित रूप से एक खतरनाक साजिश का प्रारूप है। क्योकि यह हवाई सेवा द्वारा मीडिया डाक सेवाओं को बाधित करके समूची दुनिया को अलग थलग कर देने की कुत्सित मंशा है।
आज आवश्यकता है विश्व के सभी देशो को सामूहिक रूप से इस घृणित और अमानवीय कृत्य के पीछे छिपे हुए च्ोहरो को बेनकाब करने मे एक जुटता दिखाने की। विशेष रूप से उन देशो से जो अपनी सुरक्षा के नाम पर इस तरह के घातक जैविक हथियारो को चोरी छिपे अपनी प्रयोगशालाओं में विकसित करते रहे हैं।

तभी इस आसन्न खतरे की काली छाया से मानव सभ्यता और मानवता को निजात दिलाने के लिए पूरी दुनिया के साथ एक जुट होकर कार्य किया जा सकता है अन्यथा निरीह इसानो के खून के छीटे उनके दामन को कलुषित करते रहेगे और इतिहास के पन्नो पर उनकी छवि भी मानवी जिन्दगियों के हत्यारे को रूप में चिन्हित होती रहेगी।

— बृजेश कुमार शुक्ल

१ दिसंबर २००१  
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