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परिक्रमा कनाडा कमान

इस बरस गरमी में
सुमन कुमार घई

गरमी से झुलसे हुए गुलाब के फूल देख रहा हूँ। कार से निकलते ही दृष्टि इन गुलाबों पर जाती है जो कि ड्राईवे के सामने के क्यारी में लगा रखे हैं। एक लाल, एक पीला और एक सफेद। 

इस वर्ष तो बला की गरमी है। ग्रीष्म ऋतु का आरम्भ औपचारिक रूप से जून के तीसरे सप्ताह से माना जाता है। इस वर्ष तो हुआ भी कुछ ऐसा कि मानो भगवान भी कलैन्डर ही देख रहा था। ग्रीष्म ऋतु के पहले दिन से ही गरमी पूरे जोर शोर से शुरू हो गई। 

कैनेडा में साधारणतया गरमी लगातार कभी पड़ती नहीं है। कुछ दिन अगर तापमान थोड़ ऊँचा रहा तो तुरन्त वर्षा हो जाती है और तापमान फिर नीचे हो जाता है। टोरोंटो में, जहाँ मैं रहता हूँ, इस बार जो गरमी आरम्भ हुई तो कुछ सप्ताह तो तापमान ने साँस ही नहीं ली। रोज तीस से लेकर चौंतीस डिग्री सेन्टीग्रेड के बीच में जाता रहा। माना कि बहुत से पाठकों के लिए यह तापमान कुछ भी नहीं है परन्तु हम लोगों के लिए जो कैनेडा में बरसों से रह रहे हैं, लगभग जानलेवा है। उच्च तापमान के साथ उमस होने के कारण चौंतीस डिग्री भी कभी–कभी चवालीस डिग्री अनुभव होता है। ऊपर से प्रदूषण की समस्या। 

यहाँ पर वैसे तो हमेशा ही वायु बहती रहती है परन्तु ऐसे दिनों में, जब उच्च तापमान होता है, कई बार वायु थम जाती है। उमस और प्रदूषण का पता उसी दिन चलता है। पूरे टोरोंटो के ऊपर एक धुएँ का आवरण दिखाई देता है और इसी के कारण तापमान और भी ऊँचा हो जाता है। रोज रेडियो और टी वी पर मौसम का हाल बताने वाले बार–बार चेतावनी देते हैं कि जिनको श्वास की कोई भी कठिनाई हो वे ऐसे में अन्दर ही रहें, बाहर न निकलें। बाहर तो हवा भी भारी महसूस होती है।

आज से लगभग तीस बरस पहले जब मैं कैनेडा में आया था तो ऐसा नहीं था। वायुमंडल स्वच्छ और ओन्टेरिया झील, जिसके किनारे टोरोंटो बसा है, का पानी साफ और नीला था। हर सप्ताहान्त पर झील के सारे रेतीले तट लोगों से भर जाते थे। कोई तैरने के लिए निकल जाता और कोई ऐसे ही जलक्रीड़ा में मस्त हो जाता। बच्चे भाग कर पानी में जाते और ठंडा पानी पाँव में लगते ही खिलखिलाते हुए वापिस लौट आते। कोई फिशिंग करता तो कोई बोटिंग। अब तो दृष्य ही बदल गया है इन तीस सालों में। झील का पानी मटमैला हो चुका है। यद्यपि यह झील ताज़े पानी झील है यानि कि इसका पानी रूका हुआ नहीं बल्कि बह रहा है। 

एक तरफ से कई नदियाँ इसमें आकर गिरती हैं तो दूसरी तरफ से सेन्ट लॉरेन्स नदी से पानी समुद्र की तरफ बह जाता है। फिर भी कैनेडा और अमेरिका दोनों तरफ से कारखानों का रसायन युक्त पानी, आसपास के शहरों के गन्दे नाले आदि इसी में गिरते हैं। यह प्रदूषण अब इतना बढ़ चुका है कि हर गरमी में लोग पिकनिक मनाने झील के किनारे पर तो जाते हैं परन्तु झील में जलक्रीड़ा या तैरने के लिए कोई नहीं जाता। जगह जगह चेतावनी के बोर्ड लगे हैं कि झील में जीवाणुओं की अधिकता के कारण तैरना मना है। झील में से पकड़ी हुई मछलियाँ भी खाने के लिए चेतावनी है। प्रदूषण से भरी पड़ीं हैं। यह जलप्रदूषण की समस्या तब भी थी परन्तु कम स्तर पर थी।

बहते झील के पानी के साथ सब कुछ बह जाता था और झील फिर साफ की साफ। अब एक तो जलप्रदूषण बढ़ गया दूसरा वायुमंडल का तापमान बढ़ने के कारण झील के पानी का तापमान भी अधिक हो गया। यह बढ़ा हुआ तापमान जीवाणुओं के लिए वरदान सिद्ध हुआ और हर ग्रीष्म ऋतु में ओन्टेरियो झील उन्हीं की हो जाती है, लोग तो मात्र दर्शक रह गए हैं। केवल सन टैनिंग कर के लौट आते हैं। चेतावनी तो उसके लिए भी है। कहते हैं कि प्रदूषण के कारण वायुमंडल में ओज़ोन लेयर कहीं कहीं फट चुकी है। इसी कारण अल्ट्रा वॉयल्ट किरणें हानिकारक स्तर तक धरती पर पहुंच जाती हैं और चमड़ी पर कैंसर का कारण बन सकती हैं। पर लोग मानते कब हैं। वह भी क्या करें, शीत ऋतु में घरों के अन्दर कैद काटने पश्चात ग्रीष्म ऋतु का भरपूर आनन्द लेने की इच्छा हावी हो जाती बुद्धि पर। ऐसे में चेतावनी कौन सुनता है।

बस चार सप्ताह और रह गए हैं गरमी के। अगस्त के तीसरे सप्ताह से ठंडी हवा चलने लगेगी। और सितम्बर के अन्त और अक्तूबर में पतझड़।कैनेडा का पतझड़ भी बहुत सुन्दर है। नरम सी धूप, शरीर को सालती हुई हवा, एक उदास सी ऋतु परन्तु रंगों की भरमार। पेड़ों के पते गिरने से पहले कई रंग बदलते हैं। कोई पीला है तो कोई लाल। कोई सन्तरी हो जाता है तो कोई गहरा भूरा। बीच बीच में ऐसे पेड़ भी होते हैं जो कि सदा हरे ही रहते हैं। सारे पड़ों के झुन्ड एक गुलदस्ते की तरह लगते हैं। कुछ सप्ताह के बाद हवा चलते ही रातों रात सब समाप्त हो जाता है। सुबह उठो तो जो पेड़ कल रात तक रंगों से भरे पड़े थे, उदास अपनी नंगी शाखाएँ फैलाए, लगता है कि मानो आकाश की तरफ अपने हाथ फैलाए वसन्त के आने की दुआ कर रहे हैं। 

नवम्बर के तीसरे सप्ताह से हिमपात शुरू होता है जो कि मार्च तक चलता है। पिछले कुछ बरसों से हिमपात कम हो गया है। फिर भी एक दो तूफान आ जाना तो साधारण है। इस ऋतु का भी अपना ही रंग है। हर दिशा में सफेदी ही सफेदी। बर्फ के गिरते ही एक नया जोश आ जाता है लोगों में। शरीर पर सर्दी के कपड़े लादे बाहर निकल आते हैं। कोई स्कीइंग के लिए निकल जाता है तो कोई स्केटिंग के लिए। पार्क में भी बच्चों की भीड़ रहती है। यहां का धरातल सपाट न हो कर थोड़ा ऊँचा नीचा है जैसे कि छोटे छोटे टीले। यही बर्फ के टीले बच्चों को आकर्षित करते हैं 'डाऊन हिल सेलेइन्ग' के लिए। 

हाँफते हुए बच्चों की भीड़, अपने अपने फिसलने के फट्टे लिए टीले की चोटी पर चढ़ती है और प्रसन्नता से चीखती हुई और खिलखिलाती हुई कुछ ही क्षणों में फिसलती हुई नीचे पहुंच जाती है। फिर ऊपर चढ़ने का सिलसिला आरम्भ होता है।बाज़ारों में क्रिसमस की साज सज्जा और लोगों में त्योहार का जोश एक अलग ही वातावरण उत्पन्न कर देता है। जनवरी और फरवरी बहुत ही उदास महीने हैं। एक तो लोग क्रिसमस पर अपनी जेबें खाली कर चुके होते हैं तो बाज़ार बिल्कुल सूने हो जाते हैं और दूसरा तूफान और तापमान का गिर जाना। बहुत ठंड होती है इन दिनों। कोई ही साहसी मानव इन दिनों बाहर निकलता है जब तक आवश्यक न हो। मार्च का आरम्भ ठंडा और अन्त तक थोड़ा मौसम खुल जाता है। कहा जाता है कि मार्च शेर की दहाड़ता आता है और एक मेमने की तरह मिमियाता हुआ जाता है। 

अप्रैल में वर्षा ऋतु आरम्भ होती है। बहुत ही गीला मौसम रहता है और ऊपर से शीत ऋतु की भी पूरी विदाई नहीं होती। कभी कभी तो अप्रैल में भी बर्फीला तूफान आ जाता है। इन महीनों में लोग साधारणतया खिड़कियों से बाहर झाँकते हुए पाए जाते हैं। राह देखते हैं मई में खिलने वाले फूलों की। घास हरी होने लगती है। लम्बी सर्दी के पश्चात पेड़ों की शाखाओं पर कोंपले फूटने लगतीं हैं। लगता है कि प्रकृति शीतनिद्रा से जाग उठी है। प्रवासी पक्षी फिर से लौट आते हैं। कुछ ही दिनों में हरियाली इस तरह से छा जाती है, मानो कि कभी शीत ऋतु आई ही न थी। नीला आकाश, हरी आभा लिए धरती और वन और लोगों में उमंग नवजीवन पाने जैसी। और लगता है कि अभी मोड़ से वसन्त ऋतु अपने रंग बिखराते आ रही है।

फिर आती है ग्रीष्म ऋतु। और इस बरस मैं गरमी से झुलसे हुए गुलाब देख रहा हूँ।

 
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