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परिक्रमा कनाडा कमान

कैनेडा पर छाया इन्द्रधनुष
सुमन कुमार घेई

 कार्निवाल का एक दृश्य 

पिछले शनिवार को अरूणा भटनागर जी (हिन्दी साहित्य सभा की अध्यक्षा) का फोन आया था, "सुमन जी कल मैं एक छोटी सी कवि गोष्ठी का आयोजन कर रही हूँ अपने घर पर, क्या आप आ सकेंगे।" मैंने झट से हाँ कह दी़ क्योंकि कोई भी कवि छोटा या बड़ा कभी भी अपनी कविता सुनाने का अवसर नहीं गँवाता। उन्होंने अपना पता बताया, बिल्कुल शहर के मध्य में रहती हैं।जिधर से भी जाऊँ, भीड़ में से तो गुज़रना ही पड़ेगा।

कार को ड्राईव–वे से निकालते ही रेडियो पर ट्रैफिक रिपोर्ट आ रही है कि "डैनफ़ोर्थ एवन्यु जोन्स से ब्रॉडव्यू रोड तक केवल पैदल लोगों के लिए खुला है, बाकी सब के लिए बन्द है।" आजकल 'ग्रीक फेस्टीवल' चल रहा है वहाँ पर।कल के समाचार पत्र में पढ़ रहा था कि 'सपेडाईना एवन्यू पर ड्रैगन परेड का आयोजन किया गया है'। पिछले सप्ताह शुक्रवार से लेकर रविवार तक 'वेस्ट इंडियनज़' का कार्निवाल चल रहा था। बहुत ही बड़ा आयोजन होता है उसका। 

महीनों पहले तैयारी शुरू होती है तो जाकर परेड में चलने वाले लोगों की पोशाकें तैयार होती हैं। लगभग दस लाख लोग देखने के लिए जाते हैं, जिसमें से लगभग दो लाख यू एस ए से आते हैं।उससे कुछ सप्ताह पूर्व रथयात्रा थी। एप्रल के महीने में वैसाखी का जलूस था सिख समुदाय की तरफ से, खालसे के जन्म का उत्सव मनाने के लिए।१९९९ के वर्ष में खालसे के जन्म के तीन सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में कैनेडा सरकार ने एक डाक टिकट भी निकाली थी। जून के तीसरे सप्ताह में ड्रैगन बोट रेस थी, जो कि कुछ वर्ष पूर्व ही आरम्भ हुई है। जो लोग हांग–कांग से आये हैं, यह 'रेस' उन्हीं की देन है। पिछले कुछ वर्षों से दिवाली का जलूस भी निकलने लगा है। और भी न जाने क्या क्या होता रहता है इस महानगर टोरोंटो में।

सोचता हूँ कि हम लोग जो इस महानगर टोरोंटो में रहते हैं कि कितने भाग्यशाली हैं। यहाँ रहते हुए, दुनिया के हर देश की संस्कृति, सभ्यता और खाने आदि का पूरा आनन्द आसानी से उठा सकते हैं। दुनिया भर की सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व है इस शहर में। और विशेष बात यह है कि यह सभ्यताएँ जीवित हैं, समय के साथ थोड़ी धूमिल चाहे हो गयी हों परन्तु जीवित हैं। स्थान और आसपास के वातावरण के कारण थोडा़ पतिवर्तन तो स्वाभाविक ही है। विभिन्न सभ्यताओं ने इस 'बहुसांस्कृतिक' समाज में अपना स्थान सुरक्षित कर रखा है। इसी कारण यहाँ का समाज एक बहुरंगी इन्द्रधनुष की तरह रोचक है।

कैनेडा वैसे तो शुरू से ही प्रवासियों का देश रहा है। जैसे कि सबसे पहले यहाँ पर बसने के लिए फ्रैंच लोग आए, फिर इंग्लिश। आयरलैंड में जब 'आलूओं का आकाल' पड़ा तो आयरिश लोग यहाँ आ बसे। जब यहाँ पर रेलवे बनने लगी तो चीन से लोगों को लाया गया। उन्नसवीं सदी के अन्त में भारत (पंजाब) से लोग आए। दोनों महायुद्धों के बाद यूरोप के अन्य देशों के लोगों की बाढ़ सी आ गयी। हाल ही में पहले हांग–कांग से फिर सोवियत यूनियन के विखण्डन से विभिन्न पूर्वी यूरोप देशों के लोग यहाँ पर आ बसे। सो जिस समाज ने इतनी संस्कृतियों को अपने में समा लिया हो, अगर उसका रंग इन्द्रधनुषी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं है।

इस समाज में जब इतनी विभिन्न सभ्यताओं, संस्कृतियों और वर्ग के लोग जब मिल–जुल कर रहें, तो इसका श्रेय, मैं समझता हूँ, कैनेडा सरकार की 'बहुसांस्कृतिक' नीति को जाता है। दूसरे महायुद्ध के बाद तक यहाँ का समाज सजातीय था। सभी एक ही वर्ण, एक ही धर्म के लोग। खान–पीना, रहना–सहना सभी कुछ एक सा था। हाँ थोड़ा बहुत अन्तर तो था परन्तु मूल रूप से श्वेतावर्ण और ईसाई समाज था। अगर कोई दूसरा था तो वह समाजिक कोनों में अपना जीवन जीता था। मुख्यधारा का अंग नहीं बन पाता था। दूसरे विश्वयुद्ध के अन्त तक लगभग पूरा यूरोप नष्ट हो चुका था, सो वहाँ के लोग एक नया जीवन शुरू करने के लिए उत्तरी अमेरीका चले आए। बहुत से लोगों ने फिर से बसने के लिए कैनेडा को अपनाया। परन्तु जैसे जैसे यूरोप को पुनःनिर्माण होता गया, प्रवासियों की संख्या भी कम होती गई। कैनेडा को एक देश के रूप में जीवित रहने के लिए सदा ही ऐसे प्रवासियों की अवश्यकता रही है जो कि यहाँ पर हमेशा के लिए बस सकें। पिछली सदी के छठे दशक के अन्त के आसपास कैनेडा की सरकार ने प्रवास की नीतियों में सुधार किया ताकि एशिया से भी लोग यहाँ आ सकें। इसके दो कारण थे। एक तो मानवीय अधिकारों के प्रति जागरूकता, और दूसरा यूरोप से आने वाले प्रवासियों की संख्या में कमी। इस नयी नीति के अन्तर्गत ऐसी संस्कृति और सभ्यताओं के लोग यहाँ पर आने शुरू हुए जोकि यहाँ के समाज के अनुसार सजातीय न थे। जैसे कि दक्षिण एशिया, अफ्रीका और पूर्वी एशिया के लोग। जब इन लोगों कि संख्या यहाँ पर बढ़ने लगी तो, जैसा कि सधारणतया होता है, समाजिक टकराव भी आरम्भ हो गया। परन्तु कैनेडा के शासन ने समय रहते समस्या को पहचाना और 'बहुसांस्कृतिक' नीति को अपनाया। 

इसी नीति के अन्तर्गत विभिन्न संस्कृतियों को औपचारिक रूप से मान्यता दी जाती है, उसको पनपने के लिए सहायता, चाहे वह आर्थिक हो या आनुशासिक, दी जाती है। ऐसी नीतियों का परिणाम होता है एक सभ्य और स्वस्थ समाज। केन्द्रिय सरकार का मानना है कि कैनेडा 'विभिन्न समाजों का समाज है'। पूरे समाज की उन्नति के लिए प्रत्येक समाज का पूर्ण रूप से विकसित होना अनिवार्य है। कैनेडा में सदा से एक प्रश्न उठता रहा है कि कैनेडा की अपनी संस्कृति क्या है? 

दिवाली मेले का एक दृष्य

एक बात तो निश्चित है कि कैनेडियन समाज किसी भी रूप में अपनी संस्कृति को यू एस ए की संस्कृति में विलीन नहीं होने देना चाहता। यू एस ए की भगौलिक समीपता और समभाषी होने के कारण, निरन्तर टी वी, सिनेमा और अन्य माध्यमों के प्रसार के कारण, कैनेडा की संस्कृति की अपनी पहचान बना पाना बहुत ही कठिन है। अब एक अन्तर पैदा होता जा रहा है जो कि मेरे विचार से भविष्य में कैनेडियन समाज की अलग पहचान बनाने में सहायक होगा। यू एस ए की सांस्कृतिक नीति है "मेल्टिंग पॉट" । यानी कि समय पाकर सभी लोग अपनी अलग पहचान खोकर समाज के बहुमत में विलीन हो जायें, जिससे समाज में समता रहे। जबकि कैनेडा की नीति बिल्कुल इसके विपरीत "बहुसांस्कृतिक समाज" है। यही नीति समाज में रोचक विभिन्नता पैदा करेगा। विभिन्न धर्मों के, संस्कृतियों के त्योहार या अन्य उत्सव समाज को एक इन्द्रधनुष की तरह रंग दे रहे हैं।

हां, कवि गोष्ठी का तो भूल ही गया। बहुत ही अच्छी रही। अरूणा जी ने बताया कि डा. भारतेन्दु जी के साथ सुरेन्द्रनाथ तिवारी जी भी आ रहे हैं। नाम कुछ जाना पहचाना लगा। मिलने पर मालूम हुआ कि यू एस ए से हैं और कुछ कविताएं "अनुभूति" में भी छपीं हैं। कवि गोष्ठी के अन्त में उनसे कुछ सुनाने के लिए कहा गया। बहुत ही उच्च कोटि के कवि हैं और उनके काव्य पाठ की शैली पूरे शरीर में एक रोमांच पैदा कर देती है। एक के बाद एक कविता पढ़ते जाते और श्रोताओं की और भी सुनने की इच्छा प्रबल होती जाती। अन्त में समय की कमी के कारण कवि गोष्ठी समाप्त करनी पड़ी। अरूणा जी को एक ही खेद रहा कि अगर यही गोष्ठी रविवार की बजाय शनिवार को होती तो घर लौटने की किसी को जल्दी न होती तो शायद और देर तक चलती। फिर भी पांच घंटे तो चली ही। घर लौटते हुए सोच रहा था कि देश से इतनी दूर रहते हुए भी कुछ भी अनजाना नहीं लगता। वही समाज, वही संस्कृति और वही साहित्य। मन ही मन इस इन्द्रधनुषी समाज पर गौरव करने को जी चाह रहा था।

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