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चिठ्ठा–पत्री चिठ्ठा पंडित ने बांची

मार्च के चिठ्ठे

राम राम यजमानों। लीजिये हम फिर आ गये आपके सामने चिट्ठा जगत की खबर ले कर। मार्च का महीना हिन्दी चिट्ठाकारों ने बडे ही धूमधाम से मनाया। महीना मनाया? हां साहब, होली जो थी। होली पर होली की मस्ती से ले कर जानकारी भरे कई लेख लिखे गये। इस महीने कुछ सुंदर कवितायें भी रची गयीं और कुछ तकनीकी लेख भी प्राकाशित हुये। आइये देखें मार्च के महीने में चिट्ठा जगत में क्या क्या हुआ। 

लाल्टू सिंह जाने माने लेखक हैं और अब चिट्ठाकारी भी कर रहे हैं। उनके कविता संकलन में से उन्होंने अपनी एक बहुत सुंदर और यथार्थवादी कविता अपने ब्लॉग पर प्रकाशित की। 
ये देखिये कुछ पंक्तियां:
शहर समुद्र तट से काफी ऊपर है।
अखबारों में आसपास के ऐतिहासिक स्थलों की तस्वीरों में थो़डा बहुत पहा़ड है।
जहां मैं हूं वहां छोटा सा जंगल है। इन सब के बीच स़डक बनाती औरत
गले में जमी दिन भर की धूल थूकती है।
औरत गीत गाती है।

गीत में माक्चू–पिक्चू की प्रतिध्वनि है।
चरवाहा है़ प्रेयसी है।
इन दिनों बारिश हर रोज होती है।
रात को कंबल लपेटे झींगुरों की झीरंझीं के साथ बांसुरी की आवाज सुनाई देती है।
पसीने भरे मर्द को संभालती नशे में
औरत गीत गाती है . . .
ऐसी कविताएं पसंद है तो पूरी कविता के लिए यहां जायें। 

हाल ही में जार्ज बुश भारत आये। उनका बडे जोर शोर से देशवासियों ने स्वागत किया़ वहीं कहीं कहीं उनके आने के विरोध में दंगे भी हुये। ब्लाग जगत ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं दी। संजय बेंगानी का ये कहना कि 
"बुश साहब आये और चले गये। पीछे छोड़ गये समीक्षाएं।अमेरिकी राष्ट्रपति का जहां स्वागत हुआ़ कुछ संगठनों ने विरोध भी किया। मैं इसका स्वागत करता हूं क्योंकि यह साबित करता हैं कि हमारा लोकतंत्र परिपक्व हैं और हम अपना विरोध दर्ज करना जानते हैं तथा करने के लिए स्वतंत्र भी हैं। लेकिन जो लखनऊ में हुआ वह दर्शाता है कि हम लोकतंत्र के लिए परिपक्व नहीं हुए हैं। यह कौन सा तरीका हुआ अपना विरोध प्रदर्शित करने का?
श्रीमान बुश का या अमेरिका के बाप का क्या गया? लोग मरे वो हमारे अपने थे। सम्पति जल कर खाक हुई वो भी हमारी अपनी थी। क्या हासिल हुआ इससे? "
इस तार्किक लेख को पढें संजय बेंगानी के ब्लाग जोगलिखी पर। 

संजय विद्रोही राजस्थान से लिखते हैं। वे वैसे तो प्राध्यापक हैं मगर अपने खाली वक्त में कहानी और कवितायें लिखते हैं। न स़िर्फ गंभीर रसायन शास्त्र की बल्कि भावुक ग़जलों व कहानियों की पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी नई ग़जल पढिये इस बार उनके ब्लाग पर
यूं तो सीधा खडा हुआ हूं
पर भीतर से डरा हुआ हूं। 
तुमको क्या बतलाऊं यारो़
जिन्दा हूं पर मरा हुआ हूं।

अब चलते हैं और होली के रंगों में एक बार फिर डूब जाते हैं। चिट्ठाजगत में होली की जबरदस्त हुडदंग मची। चिट्ठाकारों ने एक दूसरे पर लेखन के माध्यम से रंग डालने के अलावा सुंदर जानकारी भरे लेख भी प्रकाशित किये। 

अभिनव शुक्ल उदीयमान कवि हैं। देश विदेश के कवि सम्मेलनों में भग लेते हैं और अब चिट्ठा भी लिख रहे हैं। होली पर उन्होंने बडी ही अच्छी कविता रची और अपने ब्लाग पर भेजी। आपको भी अपने बचपन की होली याद दिला देगी ये कविता। कुछ पंक्ति्तयों पर ऩजर डालें:
रंग वंग खेल के जब बुद्धू लौट आते थे़
'भूत लगते हो पूरे' मां की डांट खाते थे़
ले के उबटन वहीं आंगन में बैठ जाते थे़
रंग गहरे ना थे फिर भी ना छूट पाते थे़
म़जा लीजिये इस कविता का अभिनव के ब्लाग निनाद गाथा पर।

कुमाउंनी होली के बारे में जानिये न्यू जर्सी से तरून के निठल्ला चिंतन नामक ब्लाग पर। 
" बैठकी और खड़ी होली में मन को लुभाने वाले बोलों से भरे गीत गाये जाते हैं। ये गीत मुख्यतः क्लासिकल राग पर आधारित होते हैं। बैठकी होली की शुरूआत किसी मंदिर के आंगन से होती है जहां हुलियार और काफी सारे लोग होली गाने को इकठ्ठे रहते हैं। होली से लगभग एक महीने पहले से़ उतरांचल की वादियों में होली के गीतों की आवाज़े सुनी जा सकती हैं। स्थानीय परंपराओं के अनुसाऱ होली से ठीक एक सप्ताह पहले शुरूआत होती है़ कुमांऊनी 'खड़ी होली' की। जिसमें लोग गाने के साथ–साथ हुलियारों और अपनी आवाज की धुन में थिरकते दिखायी देते हैं। यह सब रात के वक्त चीर (होलिका दहने के लिए लाया गया पे़ड़ जैसे क्रिसमस ट्री लगाया जाता है) के चारों ओर नाच गाकर मनाया जाता है।" इस सुंदर लेख को से अपने देश के रीति रिवाजों को और जान सकते हैं आप यहाँ


टोरांटो से समीर अपना ब्लाग लिख रहे हैं उडनतश्तरी। सभी प्रवासी भारतीय अपने देश को बहुत याद करते हैं खास कर किसी त्यौहार के मौके पर। समीर ने अपने इस दर्द को एक कविता की शक्ल दे दी। 
सुना है आज होली है
हम बेवतन–
आज फिर आंख अपनी हमने
आंसुओं से धो ली है।
उनके दर्द का अहसास करना है तो इस कविता के लिए चलें उनके ब्लाग उड़नतश्तरी पर। 

जीतेन्द्र चौधरी कुवैत से अपना ब्लाग लिखते हैं। वे एक वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं और अन्य चिट्ठाकारों को चिट्ठाकारी व तकनीकी कठिनाइयों में हमेशा मदद के लिये तैयार रहने के लिये मशहूर हैं। जीतेन्द्र जी ने होली के अवसर पर देश के विभिन्न भागों में तरह तरह से खेली जाने वाले होली की तस्वीरें दिखाईं। जहां बरसाना की लट्ठमार होली की बात की उन्होंने वहीं हरियाणा की धुलन्डी . महाराष्ट्र की रंग पंचमी . बंगाल का बसन्तोत्सव . पंजाब का होला मोहल्ला . कोंकण का शिमगो . तमिलनाडु की कमन पोडिगई .बिहार की फागु पूर्णिमा़ इन सभी प्रदेशों की होली पर जानकारी दी। छोटे–छोटे चित्रों से सजे उनके इस लेख के कुछ भाग यहां देखिये। 

जीतेन्द्र जी ने अपने ब्लाग पर एक नई श्रृंखला शुरू की है— 'साप्ताहिक जुगाड़'। जालस्थल पर मिलने वाले विभिन्न कामों में इस्तेमाल आने वाली कडियां आप उनके इस साप्ताहिक जुगाड के अंतर्गत पा सकते हैं। अगर आप भी अलग अलग सॉफ्टवेयर इस्तेमाल कर के अपनी कार्यक्षमता बढ़ाना चाहते हैं या कंप्यूटर के ज़रिये मनोरंजन की दुनिया का मज़ा लेना चाहते हैं तो ये लीजिये उनके इस बार के साप्ताहिक जुगाड. की कड़ी। 

होली का असली रंग जमाया .फुरसतिया जी ने। कानपुर के अनूप शुक्ल फुरसतिया नाम से ब्लागिंग करते हैं और चिट्ठाकारी की दुनिया में एक अलग पहचान बनाई है उन्होंने। इस बार उन्होंने होली की परंपरा का निर्वाह करते हुए चिट्ठाकार बंधुओं को टाइटल दे डाले। सभी ने उनके इन टाइटलों का खूब म़जा लिया। आप भी चिट्ठाकारों का दो पंक्तियों मे परिचय पाना चाहते हैं तो उनके इस लेख को यहां पढ़ें। उन्होंने टाइटल देने के क्रम को अपने एक दूसरे लेख में जारी रखा। उनकी रचनात्मकता के तो हम कायल हो गये यजमान। ये लीजिये आप भी मजा लीजिए

अनुभूति–हिन्दी नई हवा का याहू गुट बडे़ जोर–शोर से चलता है। इस गुट में कुछ वरिष्ठ कवियों के साथ–साथ ढेर से उदीयमान कवियों की रचनाएं पढने को मिलती हैं। इस रचनात्मक माहौल में सभी न स़िर्फ कवितायें रचते हैं और एक दूसरे से प्रतिक्रिया पाते हैं बल्कि हर सप्ताह एक शीर्षक दिया जाता है जिस पर कवि अपनी कवितायें भेजते हैं। इन्हीं शीर्षकों पर आयी कविताओं को इकट्ठा कर हर सप्ताह अनुभूति–हिन्दी की नई हवा नामक ब्लाग पर प्रकाशित करने का काम शुरू किया गया है। इस कदम को का़फी सराहना मिल रही है। इस तरह न स़िर्फ कवियों को प्रोत्साहन मिल रहा है बल्कि कविताओं का संकलन सा बन रहा है। पिछले कुछ सप्ताहों के शीर्षकों पर लिखी कविताओं का आनंद लीजिये अनूभूति हिन्दी के इस नये ब्लाग पर जा कर।

और आखिर में यजमानों आज हम दुखी मन से विदा ले रहें हैं । हिन्दी साहित्य जगत ने एक बहुत बडा नगीना खो दिया। मनोहर श्याम जोशी जी का देहांत बहुत बडी क्षति है हिन्दी साहित्य के लिये। चिट्ठाकारों ने भी भावभीनी श्रद्धांजली दी इस महान साहित्यकार को। कहकशां नामक ब्लाग के साथ साथ हिन्दिनी़ आदि ब्लाग पर भी उनके देहांत की दुखभरी खबर दी गयी। चिट्ठाकारों ने उन्हें टिप्पणियों के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। हम भी इन्हें पूरे चिट्ठा जगत और अभिव्यक्ति की तऱफ से नमन करते हैं। आज यहीं विदा लेते हैं यजमानों। अगले महीने फिर हाजिर होंगे नये चिट्ठों के साथ। तब तक के लिये राम राम।
9 अप्रैल 2006

 
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