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कला और कलाकार

बी प्रभा

बी प्रभा का जन्म महाराष्ट्र में नागपुर के समीप बेला नामक स्थान पर हुआ। नागपुर स्कूल आफ आर्ट में कला की शिक्षा प्रारंभ करने के बाद उन्होंने मुंबई के जे जे स्कूल आफ आर्ट से स्नातक की उपाधि प्राप्त की, देश विदेश में ५० से अधिक प्रदर्शनियों में अपने चित्रों को प्रदर्शित किया और अनेक पुरस्कारों से सम्मानित होने का अवसर प्राप्त किया। उन्होंने जिस समय कला की दुनिया में प्रवेश किया उस समय बहुत ही कम महिलाएँ इस क्षेत्र में थीं। वे स्वयं को अपनी पूर्ववर्ती कलाकार अमृता शेरगिल से प्रभावित मानती थीं। जब वे विद्यार्थी ही थीं, एक प्रदर्शनी में वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा ने उनके तीन चित्रों को खरीदकर उनके सफल चित्रकार होने की राह के प्रशस्त किया।

ग्रामीण भारतीय महिलाओं का चित्रांकन करने में उनका जवाब नहीं। सुन्दर लंबे आकारों वाली महिलाएँ बी प्रभा के चित्र सौंदर्य की अनुपम पहचान हैं। वे कहती हैं कि नारी का दुख दर्द चित्रित करना उनकी कला का उद्देश्य है। उनके बनाए गए ये शांत भारतीय चेहरे बिन बोले ही बहुत कुछ कह जाते हैं। उनके बहुरंगे चटक परिधान और केशराशि को वे कुशलता से कलात्मक रूप देती हैं। उनकी यही विशेषता हस्ताक्षर की तरह उनके हर चित्र में झलकती है।

मुंबई की मछुवारी महिलाएँ उनकी चित्रकला का सबसे प्रिय विषय है। इन महिलाओं की श्याम सुगठित देह को वे लंबे हाथों पैरों और लंबी लंबी उँगलियों के साथ चित्रित करती हैं तो इनका सौंदर्य देखते ही बनता है। उनकी दूसरी विशेषता भारतीय परिधान साड़ी के चित्रण में दिखाई देती है। आमतौर पर विरोधी रंग की पतली किनारी वाली रंगबिरंगी सूती साड़ियों की पर्तों को वे विभिन्न छवियों में तरल रेखाओं में इतनी सहजता से उतारती हैं कि वह बेजान परिधान भी जानदार हो उठता है। बाँस बल्लियाँ और टोकरियों के टेक्सचर और रूपाकार में उनकी कला कविता जैसी लय रचती है।

बी प्रभा ने अनेक माध्यमों, विषयों और शैलियों में काम किया है। सूखा, भूख और बेघर जैसे गंभीर विषयों भी उन्होंने अपनी तूलिका उठाई, लेकिन तैल रंगों में बसई उनकी महिलाओं का लोकरंजक पारंपरिक संसार उनकी विशेषता है।

बी प्रभा के प्रारंभिक चित्र आधुनिक चित्रकला से प्रभावित अमूर्त शैली के थे। अपने सहयोगी कलाकार मूर्तिकार बी विठ्ठल से १९५६ में विवाह के पश्चात उनकी स्वतंत्र शैली का विकास हुआ और आधुनिक अमूर्त से अलंकारिक जलरंगों तक प्रयोग यात्रा का प्रारंभ भी। इसी वर्ष उन्होंने अपने पति के साथ पहली चित्र प्रदर्शनी की। दो साल बाद जब बाम्बे स्टेट आर्ट प्रदर्शनी में उनके चित्र प्रदर्शित हुए तो इस प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त कर वे कला संसार मे अपना स्थान बना चुकी थीं।

उनका देहावसान सितंबर २००१ में हुआ।

१ जुलाई २००२

 
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