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कला दीर्घा

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यमुनाघाट चित्रकला

भारत की समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोककला के विभिन्न रूपों की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है यमुनाघाट चित्रकला  के विषय में -


यमुना नदी के दोनों किनारों पर बसा वृंदावन, मथुरा जिले में एक छोटा सा रमणीक नगर है। महाभारत महाकाव्य के नायक श्रीकृष्ण की लीला स्थली यह नगर तीर्थों में प्रमुख है। चम्पक वनों में विहार करते, माखन चुराते और बृजबालाओं से रास रचाते श्रीकृष्ण की अनेक कथाओं और वर्णनों में आने वाला यह नगर कृष्ण के अनेक भक्त कवियों और कलाकारों की कार्यस्थली है। साथ ही यह नगर अपनी कला परंपरा के लिये भी विश्व विख्यात है।

मंदिरों की दीवारों पर बनाई गयी चित्रकला और पत्थरों पर उत्कीर्ण कलाकारी हजारों वर्षों पुरानी है। अनेक राजा आए और गये लेकिन यह लोक कला आज भी कलाकारों के बीच परंपरागत रूप में यमुनाघाट चित्रकला के रूप में जीवित है। समय के साथ मुगल काल में कुछ चित्रकारों ने इसे लघुचित्र शैली में विकसित किया और १९ वीं शती में अमूर्त के युग में इसने भी आधुनिकता का जामा पहना लेकिन लोक कला के प्रेमियों और कलाकारों के बीच इसका मूल स्वरूप सदा जीवित रहा।

यमुनाघाट कलाकृतियों का प्रमुख विषय श्रीकृष्ण की लीलाएँ हैं। बाल लीलाएँ, माखन चोरी, राधाकृष्ण की प्रेम लीलाएँ, गोपियों के साथ महारास, राक्षस वध, गीता का उपदेश आदि महाकाव्य की अनेक प्रमुख घटनाओं को इस लोक कला में स्थान मिला है फिर भी अधिकता नदी और उसके आसपास के दृष्यों तथा बाललीलाओं की ही है। इसका कारण यह है कि कृष्ण का बचपन यहाँ व्यतीत हुआ था।

इन चित्रों की मुद्राएँ अत्यंत लुभावनी और आकर्षक होती हैं। बड़ी बड़ी बोलती हुई आँखें और मोहन की मनोहर मुस्कान बरबस आपको अपनी ओर आकर्षित करती है। पुरुष और स्त्री दोनों के ही शारीरिक गठन और अनुपात का सुन्दर ध्यान रखा जाता है। साथ ही वस्त्रों और आभूषणों को बारीकी से चित्रित करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

कागज के कपड़े और दीवार पर बनाई जाने वाली इस कला ने मुगल काल में जब मिनियेचर शैली को अपनाया तो कलाकृतियों में रंग के साथ सोने का काम भी होने लगा। वृंदावन के कन्हाई चित्रकार ने इस शैली को और अधिक विकसित किया और इसमे सच्चे रत्न आभूषणों को टाँकने का काम प्रारंभ कर के इस लोक कला को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुँचा दिया। उन्हें इस प्राचीन लोक कला में नवीन प्रयोग के लिये पद्मश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

वृंदावन लोक कला के चित्र और नमूने वृंदावन और मथुरा में किसी भी पर्यटन केन्द्र से हर आकार और मूल्य में खरीदे जा सकते हैं। लेकिन जो लोग चालीस या पचास हज़ार यू एस डालर खर्च करना चाहते हैं उनको निश्चय ही वृंदावन के कन्हाई चित्रकार की वातानुकूलित कलादीर्घा तक जाना होगा जो अपने आप में एक दर्शनीय स्थल हैं।

 
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