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कला दीर्घा

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गोंड कलाकृतियाँ

भारत की समृद्ध कला परंपरा में लोक कलाओं का गहरा रंग है। काश्मीर से कन्या कुमारी तक इस कला की अमरबेल फैली हुई है। कला दीर्घा के इस स्तंभ में हम आपको लोक कला के विभिन्न रूपों की जानकारी देते हैं। इस अंक में प्रस्तुत है गोंड कलाकृतियों के विषय में -


मध्यप्रदेश के मण्डल जिले की प्रसिद्ध जनजातियों में से एक 'गोंड' द्वारा बानायी गयी चित्र कला की विशिष्ट कलाशैली को गोंड चित्रकला के नाम से जाना जाता है। लम्बाई और चौड़ाई केवल इन दो आयामों वाली ये कलाकृतियाँ खुले हाथ बनायी जाती हैं जो इनका जीवन दर्शन प्रदर्शित करती हैं। गहराई, जो किसी भी चित्र का तीसरा आयाम मानी गयी है, हर लोककला शैली की तरह इसमें भी सदा लुप्त रहती है जो लोक कलाओं के कलाकारों की सादगी और सरलता की परिचायक है।

गोंड कलाकृतियाँ इस जनजाति के स्वभाव और रहन सहन की खुली किताब हैं। इनसे गोंड प्रजाति के रहन सहन और स्वभाव का अच्छा परिचय मिलता है। कभी तो ये कलाकृतियाँ यह बताती हैं कि कलाकारों की कल्पना कितनी रंगीन हो सकती है और कभी यह कि प्रकृति के सबसे फीके चित्रों को भी ये अपने रंगों से कितना जीवंत बना सकते हैं।

उदाहरण के लिये वे छिपकली या ऐसे ही अकलात्मक समझे जाने वाले जंतुओं को तीखे रंगों से रंग कर चित्रकला के सुंदर नमूनों में परिवर्तित कर देते हैं। यदि हम इसका दार्शनिक पक्ष देखें तो यह उनकी प्रकृति को भी रंग देने की उत्कट भावना को प्रदर्शित करता है।

उनके द्वारा बनाए गए चित्रों के आकार शायद ही कभी एक रंग के होते हैं । कभी उनमें धारियाँ डाली जाती हैं कभी उन्हें छोटी छोटी बिन्दियों से सजाया जाता है और कभी उन्हें किसी अन्य ज्यामितीय नमूने से भरा जाता है। ये कलाकृतियाँ हस्त निर्मित कागज़ पर पोस्टर रंगों से बनाई जाती हैं। चित्रों की विषयवस्तु प्राकृतिक प्रतिवेश से या उनके दैनिक जीवन की घटनाओं से ली जाती है। फसल, खेत या परिवारिक समारोह लगभग सभी कुछ उनके चित्रफलक पर अपना सौन्दर्य बिखेरता है। कागज़ पर चित्रकला के अतिरिक्त गोंड जनजाति स्वयं को भित्तिचित्रण और तल चित्रण में भी व्यस्त रखती है।

धर्मिक अनुष्ठानों का एक अंग यह चित्रकला न केवल आसपास के सौंदर्य में वृद्धि करती है अपितु उसकी पवित्रता एवं परंपरा भी बनाए रखती है। पिसे हुए चावल के लेप पीले गेरू और अन्य मटियाले रंगों में बनाई गयी ये कलाकृतियाँ परिवार की विशेष घटनाओं, ऋतुओं के बदलने, फसल के बोने, वर्षा के प्रारंभ, फसल के कटने या पारिवारिक समारोह जैसे जन्म, विवाह, गर्भावस्था और मृत्यु पर हर समय नये चित्र बनाए जाते हैं विशेषरूप से आँगन, प्रवेश द्वार और घर के अन्य स्थानों पर।

 
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