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					 तारा बिस्तर 
					में करवटें बदल रही थी। जैसे-जैसे रात गहरा रही थी वैसे-वैसे 
					तारा के मन की बेचैनी बढ़ रही थी। मौसम ठीक नहीं था, सर्दी के 
					मौसम में यहाँ बारिश भी हो जाती है और वैसे भी इस साल वेट 
					विंटर्स चल रहीं है। तीन चार दिन बरसात होती है और फिर खुली 
					धूप निकल आती है। इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में कोविड की दूसरी वेव 
					चल रही है। डेल्टा वैरिएँट के कुछ मामले सामने आए हैं और यह 
					ज़्यादा खतरनाक है। अब तक चार राज्यों में लॉक डाउन चल रहा है। 
					तारा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। ऐसी स्थिति में न भारत 
					वापस जाया जा सकता है, न सिडनी में ठीक से रहा जा सकता है। न 
					घर से बाहर निकलना संभव है और न घर में इस तरह बंद होके रहना 
					अच्छा लग रहा है। जब तक पढ़ रही थी तब तक मन लग रहा था और अब एम 
					फिल की पढ़ाई शुरू होने में अभी एक महीना बाकी था। इंतज़ार में 
					मन लगाना मुश्किल हो रहा है। 
 तारा को याद आ रहा है कि कैसे अम्मा और पापा के मना करने के 
					बाद भी उसने लड़ कर दो साल पहले ऑस्ट्रेलिया आने का निर्णय लिया 
					था। वैसे तो कानपुर उसने पहले ही छोड़ दिया था, और दिल्ली आकर 
					जे एन यू में इंटरनेशनल रिलेशन्स के पोस्ट ग्रेजुएशन में 
					एडमिशन ले लिया था। लिखने पढ़ने का शौक था, एक छोटा सा 
					जर्नलिज्म का कोर्स भी कर लिया था तो प्रूफ रीडिंग का काम भी 
					मिल जाता था। जेब खर्च निकल आता था। लोग उसके काम को पसंद कर 
					रहे थे।
 मज़ा आ रहा था, नया माहौल, नए लोग, नई बातें, सब कुछ कितना 
					प्रगतिवादी था। सीखने को कितना कुछ मिल रहा था। कानपुर के घर 
					की बंद चारदीवारी और अम्मा पापा के प्रोटेक्टेड माहौल को छोड़कर 
					पहली बार अपनी तरह से रहना बहुत एन्जॉय कर रही थी। साथ के साथ 
					उसकी प्रकाशन कंपनी भी उसके काम से खुश थी। लगता था कि स्काई 
					इज़ नो लिमिट, सितारों से आगे जहाँ और भी है।
 
 सब कुछ जैसे सपना लग रहा था, वक्त जैसे हवा की तरह उड़ रहा था। 
					२०१५ की बात है यूनिवर्सिटी में डॉ एडम बर्कमैन का लेक्चर था, 
					टॉपिक था 'जस्टिस इन लव', हॉल विद्यार्थियों से भरा पड़ा था। 
					तारा लेट हो गई थी, हबड़ दबड़ में सीट ढूँढती हुई एक नौजवान से 
					टकरा गई। 'एक्सक्यूज़ मी' कहती लगभग भागते हुए अपनी सीट पर बैठ 
					कर सेटल हुई थी कि देखा पाँच मिनट बाद वही नौजवान उसकी बगल 
					वाली कुर्सी पर आकर बैठ गया है।
 
 मुस्कुरा कर उसने देखा और बोला, 'थैंक गॉड लेक्चर शुरू नहीं 
					हुआ अभी। बाय द वे, आई एम जय
 कम्यूटर एन्ड सिस्टम्स साइंस में एम फिल कर रहा हूँ' कहते हुए 
					उसने हाथ बढ़ा दिया।
 तारा ने कहा, 'आई एम सॉरी, मैं भी लेक्चर मिस नहीं करना चाहती 
					थी। आई एम तारा, इंटरनेशनल रिलेशन्स में मास्टर्स की 
					स्टूडेंट।'
 कहते हुए तारा ने उसे मुस्कुरा कर देखा, जय लंबा, अच्छी कद 
					काठी का जवान। साँवला रंग और तीखे नाक-नक्श, कुल मिलकर उसे 
					हैंडसम मान सकते थे।
 जे एन यू में ही आई टी कोर्स कर रहा था, मुलाकात एक लेक्चर के 
					दौरान हुई थी। वो वहीं कम्यूटर एन्ड सिस्टम्स साइंस में एम फिल 
					कर रहा था।
 जय ने तारा को देखा तो उसकी बड़ी बड़ी बिल्ली आँखों पर नज़र अटकी 
					रह गई। दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े। लेक्चर खतम होने पर जय ने 
					उससे पूछ ही लिया, 'कॉफी?'
 तारा को भी कॉफी की तलब थी तो सोचा जय के साथ ही कॉफी पी जाए।
 थोड़ी बहुत गपशप हुई, लेक्चर पर डिस्कशन हुआ। तारा ने अम्मा और 
					पापा के बारे में बताया। जय ने इलाहाबाद में अपने परिवार की 
					बातें बताईं।
 कॉफी हॉउस से बाहर निकले तो फरवरी की शाम की धुंध में जलती हुई 
					कैम्पस की की पीली लाइटें एक रोमांटिक माहौल बना रहीं थी। जय 
					और तारा पार्किंग तक साथ चले। जय उसके साथ चल रहा था, तारा कुछ 
					नया-नया, अच्छा-अच्छा महसूस कर रही थी। पार्किंग के किनारे खड़े 
					बाय कर ही रहे थे कि जय झुका और क्यारी में खिले रजनीगंधा के 
					कुछ फूल तोड़े और उसे पकड़ा दिए। जय ज़ोर से हँस पड़ा – ‘तुम्हारे 
					लिए। जानती हो, उर्दू में इन्हें ‘गुल-ए-शब्बो' कहते हैं, 
					उम्मीद है कि फिर मिलेंगे।'
 इससे पहले कि तारा कुछ समझ पाती वो मुड़ कर अपनी मोटर साइकिल पर 
					बैठ चुका था।
 जय तो चला गया, और तारा रजनीगंधा की खूबसूरत जादुई गंध में 
					डूबने लगी थी । ये फूल बहुत सुन्दर हैं, नैसर्गिक। उसे कानपुर 
					में अपने घर की क्यारियाँ याद आ गईं।
 अम्मा कहतीं थीं - ‘तुम्हें पता भी है कि रजनीगंधा सुगंध का 
					राजा है। इन फूलों से दुनिया भर में इत्र बनाते हैं। देखो न, 
					कितने सुन्दर हैं’ कहते हुए कुछ फूल उसके बालों में खोंस 
					देतीं।
 तारा फूलों को हाथ में थामे जैसे ट्रांस में चल रही थी। हॉस्टल 
					के कमरे में पहुँची, फूलों को बिस्तर के किनारे रखा, तो उसका 
					छोटा सा कमरा महक उठा। यों ही मुस्कुरा उठी। सारी रात लगभग यों 
					ही ख्यालों में खोई रही। जय उसे अच्छा लगा था, उसे लगा शायद वो 
					भी जय को अच्छी लगी होगी।
 फिर ध्यान आया कि जल्दबाजी में जय का नंबर ही लेना भूल गई। अब 
					क्या होगा। फिर लगा कैम्पस तो एक ही है, और फिर मुझसे मिलना 
					चाहेगा तो मुझे ढूँढ ही लेगा।
 अगले दिन तैयार होकर निकली तो मन में नई तरंग थी। पूरे दिन 
					लेक्चर अटेंड किये, कैंटीन गई तो लगा शायद जय उसे ढूँढते 
					ढूँढते वहाँ आ जाएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
 सुबह से शाम हो गई और शाम से रात। उसे लगा बस एक लम्हा था, बीत 
					गया। मन से जय के ख्याल को निकला और असाइनमेंट करने में लग गई।
 दो दिन यों ही बीते। पर तीसरे दिन जैसे ही क्लास खतम करके 
					निकली, वहीं ठीक उसी जगह गेट के पास जय खड़ा था। हाथों में 
					रजनीगंधा के फूलों का बुके, उसी तरह वेल ड्रेस्ड।
 'तुम्हारे लिए, तारा!' कहते हुए उसने फूल बढ़ा दिए।
 'थैंक यू' कहते कहते तारा की आँखें जय से मिलीं, और शरमा के 
					नीचे झुक गईं।
 जय कहता जा रहा था, 'यु नो, बाद में ध्यान आया तुम्हारा मोबाइल 
					नंबर भी नहीं लिया था।'
 'और दो दिन?' तारा के मुँह से रोकते-रोकते निकल गया।
 'अरे क्या करता, दो असाइनमेंट जो करने थे। सोचा पहले उन्हें 
					निबटा लूँ' कहते हुए उसने शरारत से आँख मार दी, तारा को उसकी 
					यह हरकत जाने क्यों अच्छी लगी।
 तारा का हाथ थाम कर बोला - 'चलो आज बाहर खाने चलें। पास ही 
					ढाबा है, उसकी नान और सब्ज़ी खाओगी तो उँगलियाँ चाटती रह 
					जाओगी।'
 तारा मना न कर सकी, और मोटर साइकिल पर बैठ गई।
 खाते-पीते, बातें करते जाने कब तीन घंटे बीत गए। जाने किस किस 
					बात पर डिस्कशन हुआ। फिर लगा अब वापस जाना चाहिए। जय उसे 
					हॉस्टल तक छोड़ने आया, तो जाने के पहले उसका मोबाइल नंबर ले गया 
					।
 रात में काम कर ही रही थी कि उसका मेसेज आया, 'होप यू एँजोयेड 
					इट?'
 'यस, अ लौट' उसने लिखा
 'मुझे लगता है, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ। और तुम' जय ने 
					लिखा।
 'पता नहीं। पर मुझे लगता था, तुम ज़रूर दोबारा मिलने आओगे।'
 'तो क्या, मैं ठीक नहीं हूँ?' जय ने पूछा
 'ठीक न होते तो मैं तुम्हारा इंतज़ार क्यों करती? तारा ने लिखा
 'सच?' दूसरी तरफ से लव हार्ट आ गया।
 इस तरह बातों का सिलसिला चल निकला, दोनों खुश थे, अक्सर दोनों 
					मिलने लगे। बहुत सी चीजों में जय तारा की मदद भी करने लगा। 
					जाने कैसे पूरा साल बीत गया। उसे जय अच्छा लगने लगा था।
 कभी साथ-साथ कनॉट प्लेस जाते तो कभी कोई ड्रामा देखने निकल 
					जाते। कभी लाइब्रेरी में आस पास बैठकर अपना काम कर लेते। तारा 
					को याद है एक दिन कनॉट प्लेस पर बुक स्टाल में खड़ी पत्रिकाएँ 
					देख रही थी, जय बोला, 'वेट फॉर मी, अभी आया।'
 तारा ने कुछ पत्रिकाएँ खरीदीं, जय का इंतजार कर ही रही थी कि 
					देखा जय भागता हुआ आ रहा है। देखा वो हाथों में रजनीगंधा का 
					बुके थामे था, आते ही घुटनों पर बैठकर अब बड़े अंदाज में बोला- 
					'फॉर यू'
 अब तक जय को पता चल चुका था कि तारा को 'गुल-ए-शब्बो' बहुत 
					पसंद हैं। ऐसे-ऐसे सरप्राइज देना जय को अच्छा लगता था और तारा 
					तारा को उसकी यह अदाएँ बहुत पसंद थी। जय पर उसे कोई शक न था, 
					वो हेल्पिंग था, इंटेलीजेंट था और खुश मिजाज़ था। कभी कभी तो 
					उसके प्यार में जाने क्या क्या सपने देख लेती उसके साथ पूरा 
					जीवन बिताने के तो कभी संभल जाती कि शायद जय सीरियस न हो। तारा 
					अक्सर सोचती कि कोई किसी को इतना कैसे चाह सकता है। उसकी पसंद 
					नापसंद का इतना ख्याल कैसे रख सकता है।
 जब दुखी और परेशान होती तो उसके कंधे पर सर रख कर रो देती। और 
					उसके पास जैसे हर समस्या का सॉल्यूशन होता था जब खुश होती तो 
					सबसे पहले जय को सन्देश भेजती।
 देखते-देखते डेढ़ साल बीत गया। जय का एम फिल खत्म होने वाला था, 
					उसने फाइनल थीसिस जमा कर दी थी। नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा 
					था। एक दिन दोनों फिल्म देख रहे थे, इमोशनल सीन चल रहा था, 
					तारा का सिर जय के कंधे पर टिका था। जय के हाथ धीरे धीरे उसके 
					बाल सहला रहे थे। तारा के गालों पर ढुलके आँसुओं को अपने हाथों 
					से पोंछता हुआ जय बोला, 'तारा, ये तो फिल्म है, सच्चाई कैसे 
					झेल पाओगी।'
 तारा ने उसकी बाहों के घेरे में सिमटते हुए कहा -'तुम भी न, जब 
					तक तुम मेरे साथ हो मैं सब कुछ झेल जाऊँगी। '
 फिल्म देखकर जब बाहर निकले तो जय कुछ सीरियस लगा, 'तारा कुछ 
					बताना था तुम्हें।'
 तारा - ‘क्या जय?’
 जय - 'तुम्हें तो पता है कि मेरा कोर्स खत्म हो गया है। और मैं 
					नौकरी ढूँढ रहा हूँ।
 तारा - हाँ तो क्या? चिंता कर रहे हो, नौकरी तो मिल ही जाएगी।
 जय ने नजरें बचाते हुए कहा, ‘नहीं वह मुझे अमेरिका से नौकरी का 
					ऑफर मिल गया है। '
 'क्या …? इतनी बड़ी बात और मुझे बताया भी नहीं?’ तारा ने 
					शिकायती लहजे में कहा।
 फिर संभलते हुए बोली, ‘कोंग्रेचुलेशन्स जय!'
 'मुझे पता था तुम अपसेट हो जाओगी, इसलिए'
 'आई कैन नॉट बिलीव कि इतनी बड़ी खबर इतने दिन तक छिपा के रखी 
					तुमने?’ तारा को विश्वास नहीं हुआ। रोज मिलते हैं, इतनी बातें 
					करते हैं और इतनी बड़ी बात मुझसे छुपाए रखी? क्यों? यह बात 
					उसके गले से उतर नहीं रही थी।
 'मुझे अगले हफ्ते इलाहाबाद जाना होगा और उसके बाद दिल्ली होता 
					हुआ सैन फ्रांसिस्को निकल जाऊँगा। बहुत मिस करूँगा तुम्हें।'
 कहते हुए जय ने उसे बाहों में जकड़ लिया।
 'और मैं…? मेरा क्या…? कभी… कभी ये भी सोचा तुमने? कहते-कहते 
					तारा की आँखों से आँसू बहने लगे।
 'अरे अपनी पढ़ाई तो पूरी करो, फिर वहाँ आ जाना मेरे पास।' कहते 
					हुए जय ने उसके होंठों पर होंठ रख दिए ।
 तारा समझ नहीं पा रही थी कि जय ने आखिर ऐसा क्यों किया। अगले 
					हफ्ते के बाद उसे देख नहीं पाएगी, मिल नहीं पाएगी ये बात उसके 
					गले नहीं उतर रही थी।
 जय नार्मल साउंड करने की कोशिश कर रहा था, पर तारा का जैसे दिल 
					ही टूट गया था। अब दोनों के बीच एक अबोला-सा हो गया। 
					मोटरसाइकिल पर हॉस्टल के गेट के पास क्यारी में लगे रजनीगंधा 
					तोड़ कर जय ने उसके बालों में लगते हुए उसने कहा, 'तारा आई डिड 
					नॉट वांट टु हर्ट यू। आई लव यू तारा।'
 तारा ने भरे मन से अपना बैग उठाया और लगभग भागते हुए हॉस्टल 
					में घुस गई। बिस्तर में लेट कर सुबकते हुए कब सो गई उसे पता ही 
					नहीं चला।
 सुबह उठी तो जय की पांच मिस्ड कॉल्स थीं। मेसेज थे 'आर यू ओके 
					तारा?'
 ' डोंट वरी, आई ऍम ओके।' तारा ने लिखा।
 'कैन वी मीट? आज शाम को?'
 'नो जय। आई हैव अ क्लास। और फिर एक ग्रुप असाइनमेंट' तारा ने 
					जवाब दिया।
 इलाहबाद जाने के एक दिन पहले जय का मेसेज आया, 'कल जा रहा हूँ, 
					मिलोगी नहीं?'
 तारा ने उत्तर दिया, 'बहुत बिजी हूँ। मैं तो बस तुम्हारे लिए 
					टाइम पास थी । अब जा रहे हो तो गुड लक!'
 जय चला गया। जब दिल्ली होता हुआ सैन फ्रैन जा रहा था तो भी 
					उसका मेसेज आया, 'तारा अब भी नाराज़ हो? मिलोगी नहीं?'
 तारा ने मन कड़ा करके जवाब दिया 'नहीं, हैव अ सेफ फ्लाइट' मेसेज 
					भेजते-भेजते वो फफक-कर रो पड़ी। खुद को संभाल कर अकेले रहने की 
					आदत बना ली। इस बार छुट्टियाँ होते ही अम्मा के पास चली गई। घर 
					में माँ के खाने और पापा के लाड़ से उसके टूटे दिल के ज़ख्म भरने 
					लगे। इस बार जे एन यू वापस लौटी तो कुछ खालीपन था। अपने कैरियर 
					पर फोकस करने लगी।
 करीब तीन महीने बाद जय का मेसेज था, 'तारा, बहुत याद आती है 
					तुम्हारी, जब भी फ़ोन करना चाहो तो ये मेरा नंबर है।' तारा को 
					पता था अब इस प्रेम कहानी में कुछ नहीं बचा है। इंस्टाग्राम 
					में जय की फोटो देखती। बहुत खुश नज़र आता, वर्क कॉलीग्स के साथ। 
					नौ महीने बाद उसने फोटो डाली - 'माय फिऑन्सी' एक झटका-सा लगा, 
					ऐसा महसूस हुआ जैसे तारा के सीने पर किसी ने तीव्र प्रहार किया 
					हो। समझ नहीं पाई कि कैसे इतनी जल्दी जय मूव ओन हो गया। तो मैं 
					क्या उसके लिए वाकई टाइम पास थी? आँखों से आँसू बह निकले। 
					चिल्लाने का मन किया। भला किससे शिकायत करती? शायद उसने ही 
					ज़्यादा उम्मीदें लगा लीं थीं। उसने फ़ोन उठाया और जय का नंबर 
					ब्लॉक कर दिया। इंस्टाग्राम, फेसबुक और ट्विटर सबसे उसे निकल 
					दिया। कई दिन तक अपसेट रही, ऐसे में उसकी सहेलियों ने बहुत साथ 
					दिया। उसे आगे बढ़ना होगा, अपना भविष्य बनाना होगा।
 कुछ सालों दिल्ली में ही नौकरी करती रही, साथ-साथ रेडियो पर भी 
					कार्यक्रम देने लगी। पहले से कुछ बेहतर हो गया। यों तो बहुत सी 
					सहेलियाँ और दोस्त बने पर किसी को भी दिल के करीब न आने दिया। 
					जय को भी भूल ही गई थी, इसी में भलाई थी। तीन साल पहले 
					स्टूडेंट वीज़ा पर ऑस्ट्रेलिया आ गई। बहुत से लोगों से जान 
					पहचान हुई। साथ में बहुत सी नेशनेलिटी के लोग थे। मारिया,जूली, 
					स्टीवन, मार्क, जॉन और ट्रिस्टन। नया देश खूब भाया। साल अच्छा 
					बीता, ऑस्ट्रेलिया में लोग इज़ी गोइंग थे, सेन्स ऑफ़ ह्यूमर 
					अच्छा था, दिल के साफ थे। अक्सर मिल के बातें करते, खाना खाने 
					साथ चले जाते। जॉन जोक्स करता रहता, जूली अपने बॉय फ्रेंड के 
					किस्से सुनाती, स्टीवन मस्त रहता, मार्क को फुटी का शौक था। 
					सबसे संजीदा रहता ट्रिस्टन, पार्ट टाइम काम करता और बाकी समय 
					पढ़ाई। पिछले साल से कोविड आ गया, तो सब कुछ ऑन लाइन हो गया। 
					बीच में स्थिति सुधरी, लगा सब कुछ नार्मल हो जाएगा। मगर इस साल 
					फिर कोविड की सेकंड वेव आ गई और लॉक डाउन हो गया। उसका 
					स्टूडेंट वीज़ा समाप्त हो रहा है और जब तक वीज़ा रिन्यू
  न 
					हो, विजिटर वीज़ा पर ही रहना होगा। तब तक पार्ट टाइम नौकरी भी 
					नहीं कर सकती। मन कुछ उदास सा हो गया। तारा ने उठ कर खिड़की बंद 
					की, तभी दरवाज़े की घंटी बजी। 'इस वक़्त, बारिश में कौन हो सकता है…? सोचते हुए दरवाज़ा खोला, 
					दरवाज़े के सामने फूलों का बुके रखा था। आश्चर्य से झुक कर बुके 
					उठाया, वही रजनी गंधा के फूल, यानि ऑस्ट्रेलिया के खूबसूरत 
					'ट्यूब रोज़' फूल अंदर लाकर टेबल पर रखे, बुके में लगा कार्ड 
					निकाला।
 कार्ड में मेसेज था, 'फॉर यू - लव ट्रिस्टन'
 तारा के बंद कमरे में रजनीगंधा की महक फैल गई, और परदेस में 
					अचानक जैसे मौसम बदल गया।
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