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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
यू.के. से कादंबरी मेहरा की कहानी- टैटू


लन्दन की सुप्रसिद्ध हार्ले स्ट्रीट का एक लेज़र क्लीनिक। त्वचा के दाग धब्बे मिटाने का केंद्र। स्त्रियों के लिए वरदान।
इसी के मालिक विख्यात डॉक्टर अनिल गर्ग। पाँच फुट सात इंच कद। सात्विक सही आहार के परिणाम से बेहद सूती हुई काया। गोरा गुलाबीपन लिए हुआ रंग। आँखों पर मोटा चश्मा और गंजा सिर। भाषा सुथरी अंग्रेजी, मीठा स्वर और शाश्वत मुस्कान। पर इन सबसे ज्यादा उनकी कर्मठता के कारण उन्हीं की माँग रहती मरीजों को।
उनकी सेक्रेटरी शीला हो या उनकी अनुभवी नर्स जॉयस, वर्षों से उनको छोड़कर कहीं नहीं जातीं।

एक सुबह की बात
शीला ज़रा घबराई हुई अंदर आई।
'' डॉ गर्ग एक फनी सा आदमी आपसे मिलना चाहता है। ''
'' फनी माने क्या? ''
'' गुंडा या पागल भी हो सकता है। बहुत बड़ा तगड़ा सा है। ''
'' भेज दो। उसकी कद काठी से डरो मत। ''
आगंतुक सचमुच साढ़े छह फुट ऊँचा और करीब बीस स्टोन वज़न का पहलवान जैसा था। बिना किसी औपचारिकता के कुर्सी खींचकर डॉ गर्ग के सामने बैठ गया। कुर्सी उसके हिसाब से बहुत छोटी थी अतः दोनों टाँगें उसे पसारनी पड़ीं।
''आर यू एनिल जॉर्ज? ''
''नो। आई ऍम कॉल्ड अनिल गर्ग। जी ए आर जी।'' डॉ के स्वर की गंभीरता और सहजता ने उसे भी सहज कर लिया।
''सॉरी मैं अब आपका नाम ठीक से ले सकूँगा। मेरा नाम तो पैट्रिक है मगर सब मुझे मैक्स बुलाते हैं''
''कहिये क्या सेवा करूँ?''
''मैं बिलकुल एकांत चाहता हूँ। और जो भी मैं बताऊँ वह मेरे और आपके सिवा किसी को ना पता चले। अगर आप मेरी निजी बातें कतई गोपनीय रख सकते हैं तो मैं इलाज करवा सकता हूँ वरना नहीं।''
''देखो तुम्हारी निजी बात तो मैं अपने तक रख लूँगा मगर अपनी शिनाख्त तुम्हें सही सही लिखवानी होगी। मैं फाइलों में दर्ज़ करना जरूरी समझता हूँ। सब कुछ कानून संगत होगा वरना दूसरा दरवाजा ढूँढ लो।''
''चलो मान लिया।''
शीला, जो अभी तक वहीँ डटी हुई थी, इशारा पाकर बाहर चली गयी।

डॉ गर्ग ने खुद उसके बारे में सब सवाल पूछे और उनको दर्ज़ किया। बहुत से प्रश्नों पर वह जवाब देने से कतरा रहा था। अनिल ने समझाया,'' देखो खुलकर उत्तर दो। क्योंकि अगर कल को कोई ऊँच नीच हो जाती है मान लो कि जैसे तुम्हें कोई एलर्जी हो जाए और तुम दम तोड़ दो तो मेरा तो काम तमाम हो जाएगा। भारत का हूँ तो न्याय भी नहीं मिलेगा।''
अब वह झिझकते हुए ज़रा खुला। बोला ''डॉ मैं एक अपराधी हूँ। सात वर्ष की बामुशक्कत क़ैद भुगत कर आ रहा हूँ। अच्छे करम करने के लिए मुझे भगवान ने नहीं भेजा था।''
''रिलैक्स। मैं समझता हूँ कि भगवान ने सबको अलग अलग रोल देकर इस मंच पर भेजा था। मगर तुम जेल क्यों गए? क्या खूनी हो?''
''खून हो गया मुझसे।''
''जरूरी समझो तो बता दो पर अपनी रिहाई के प्रमाण पत्र तुम्हें लाने होंगे। तभी मैं इलाज कर सकूँगा।''
''वह कोई समस्या नहीं है।"
'' अब बताओ क्या करना है।''

उत्तर में वह आदमी खड़ा हो गया और उसने अपनी कमीज के बटन खोल डाले। अनायास अनिल के मुँह से निकला ''माय गॉड!''
उसके पूरे बदन पर टैटू छपे थे। टैटू तो पहले भी कई बार देखे थे डॉ गर्ग ने मगर ऐसे कभी नहीं। वह आपाद मस्तक जैसे वीभत्स रस में नहा कर आया था। शरीर पर साँप सलूँगड़े। मगर चमगादड़ माँस खाते लकड़बग्घे, गिद्ध। कटे हुए मानव अंग। ताबूत, सड़ी लाशें और भी न जाने क्या क्या। पीठ पर मृत्यु का भुतहा स्वरूप अंकित था और ह्रदय पर लाल रंग से दिल की आकृति के घेरे में एक अति सुन्दर मृत स्त्री।
अनिल ने पूछा, '' क्यों मेरे भाई तुम्हें इंडियाना जोंस ने इतना प्रभावित किया? ''
मैक्स हो हो करके हँस पड़ा। ''मेरी सुनोगे तो इंडियाना जोंस की फ़िल्में फीकी लगेंगी। सुनो डॉक्टर मुझे यह सब मिटाने हैं। सिर्फ इस दिल की तस्वीर को छोड़कर। पैसे से लाचार नहीं हूँ। जो कहोगे दूँगा। मगर ईमानदारी से कहो कर सकोगे यह काम?''
''काम तो हो जाएगा मगर जैसा मैंने पहले से ही कहा है, कानून की हदों में। और तुम्हें मेरी पूरी टीम से निभानी होगी कारण यह लोग मुझपर अपनी रोज़ी रोटी के लिए निर्भर हैं। अतः किसी से बदसलूकी नहीं।''
मैक्स हँसा। उन्होंने शीला और जॉयस को बुलाकर परिचय करवाया। शीला ने उसे सहमति के फॉर्म भरने को दिए। उसने सभी उत्तर सही सही भरे मगर आजीविका का खाना खाली छोड़ दिया।

''ये नहीं चलेगा।'' डॉ गर्ग ने कहा तो वह नाराज़ सा हो गया। मुँह एकदम लाल होगया और माथे पर पसीना आ गया। डॉ गर्ग को लगा उसे कोई मानसिक फिट आनेवाला है अतः अनायास उनका हाथ मेज़ के नीचे लगे आपद्कालीन अलार्म के बटन पर चला गया। पर मैक्स ने ताड़ लिया। फिर उठकर तीन गिलास पानी पिया और धम्म से बैठ गया।
''जेल में मेरा दोस्त रवीन ठीक ही कहता था तुम सबसे भाग सकते हो मगर अपने आप से नहीं।--डॉ, मैं एक जल्लाद हूँ। पेशेवर पुश्तैनी जल्लाद।''

अब डॉ गर्ग ज़रा सम्भले। ऊपर से स्वर को संयत करके बोले, "कोई बात नहीं। किसी न किसी को तो यह भी करना पड़ता है। पर एक बात बताओ, आजकल तो मृत्युदंड बहुत कम दिया जाता है और उसके भी तरीके बदल गए हैं। यह टैटू क्यों? खैर मुझे क्या! अपने फॉर्म पर तुम बस अंडरटेकर लिख दो बात खत्म।''

''बात ख़त्म नहीं होती। मैं निहायत हृदयहीन निर्लज्ज इंसान हूँ। मेरा काम है लाशों को ठिकाने लगाना। कैसे भी। कफ़न दफ़न तो कानून संगत काम है।''

'' मतलब?''
''मतलब उनका नामोनिशान मिटा देना। ऐसी लाशें जो अपराध जगत की थाती होती हैं। खून और बलात्कार के शिकार, वेश्याएँ, ड्रग पुशर्स, क्रॉनिक रेपिस्ट्स, किडनैपर्स वसूलिये वगैरह।''
'' तुमको मिलीं कहाँ?''
''हर पेशे से जुडी एक गैरकानूनी शाखा होती है। मेरा बाप सरकारी जल्लाद था। फाँसी चढ़ाया करता था। दादा अंडरटेकर था। मुर्दों से निपटना बचपन से देखा था। यहाँ तक कि वे हमारे घर के आम विषय थे। मेरे एक जन्मदिन पर मेरा दादा एक बच्चे की कॉफिन घर ले आया। और उसमें मेरी छोटी सी अलमारी बना दी। किसी कॉफिन बनाने वाली कंपनी ने सैंपल भेजा था। हम मौत के गुलाम थे उसी की रोटी खाते थे। जब मैं बड़ा हो गया तब मेरे बाप ने एक अच्छी फ्यूनरल कंपनी में लगवा दिया। मुर्दे आते तो उनको नहलाना और उनका आलेपन करना मेरा काम था। ताकि वह सड़ें न। तुम तो जानते हो यहाँ कई कई दिन बाद दफनाने की बारी आती है। मेरे साथ स्त्रियाँ भी काम करती थीं जो महिला शवों को सजाती थीं। सभी धर्मों से हमारा पाला पड़ता था।

''तुम्हें डर नहीं लगता था?''
''नहीं। कभी कभी दस मुर्दे एक साथ पड़े होते थे। मैं अकेला भी कभी होता था वहाँ। यह तो सब नार्मल लोग थे। मेरे पिता को तो फाँसी के शवों से निपटना होता था। जो मरने से पूर्व ही विकृत हो जाते थे।''
''तुमने नौकरी क्यों छोड़ी?''
''मुझे अपनी बॉडी पर बहुत विश्वास था। अकेला पूरा शव उठा लेता था। बॉक्सिंग मेरा शौक था। खून बहाना अक्सर हो ही जाता था। एक दिन मुझे किसी बदमाश ने अपना साथी बना लिया। उसने जो रास्ता दिखाया उसमें पैसा ही पैसा था। मैं बॉक्सिंग रिंक में अपना करतब जारी रख सकता था और उसके बताये काम से बहुत जल्दी अमीर बन सकता था। वह खुद एक खूनी था जो अपने देश पोलैंड से फरार होकर यहाँ आ बसा था। उसका संपर्क अपराध जगत से था। उसी ने मुझे इस काम में लगाया। प्रति लाश मुझे आराम से पाँच से दस हजार पौंड तक मिल जाता था''
''तुम उनको दबा आते थे?''
''हुँह! दबाना तो धरम का काम हुआ। मेरा काम था उनको अंग भंग करके ऐसे बिखरा देना कि नाम निशान ही मिट जाए। डॉ तुमने भी मुर्दे चीरे फाडे हैं मगर मैं तुमसे ज्यादा एनाटोमी ( शरीरविज्ञान) के बारे में जानता हूँ। यही नहीं मैं कभी उन्हें एसिड के टैंक में रखकर गला देता था। या कभी सीमेंट मिक्सर में पीस डालता था। नदी में तो जाने कितने अवयव फेंके होंगे। एक फार्म का खलिहान मैंने किराए पर ले रखा था। वहाँ मेरी आरा मशीन थी। लोग मुझे लकड़हारा समझते थे।''

''यह तुम्हारी छाती पर जो लड़की है? क्या कोई बेवफा प्रेयसी थी?''
''नहीं यह मेरी अमृतधारा थी। डॉ मैंने किसी का खून नहीं किया जान बूझकर। मैं बुरे काम करता रहा मगर बुरा इंसान नहीं हूँ। - मैं जब छब्बीस वर्ष का था एक दिन एक अज्ञात फोन कॉल आई। किसी ने मुझसे एक लड़की का शव ठिकाने लगाने को कहा। बताये स्थान से मैंने उसे उठाया अपनी वैन में डाला और रात के अँधेरे में अपने बूचड़खाने में ले आया। रौशनी में देखा कि वह एक बेहद कम उम्र की बेहद सुन्दर लड़की थी। जहाँ उसे मारकर फेंका गया था उसके पास एक लड़कियों का हॉस्टल था। साफ़ लग रहा था की उसका बलात्कार करके उसे गला घोंटकर मारा गया था। उसके शिकारी की यौनेच्छा भी कुत्सित रही होगी क्योंकि उसकी कलाइयों पर हथकड़ियों के निशाँ थे और पीठ पर चाबुकें मारी गईं थीं। लड़की मुश्किल से सोलह या अठारह वर्ष की रही होगी। मेरा ह्रदय रो पड़ा। मैं उसे और तकलीफ नहीं दे सकता था। सुबह तक सुन्न सा उसके पास बैठा रहा। बार बार कोशिश करता कि शायद उसमें कोई हरकत शेष हो। पर नहीं वह मर चुकी थी। मैं बहुत रोया। सोचा अगर मिल जाए तो उस हरामी का खून कर दूँ।

सुबह होने पर मैं अपने पुराने फ्यूनरल होम गया, कुछ जरूरी सामान लेकर मैं वापिस उसके पास आया। उसे नहलाकर खुशबूदार आलेपन किया। उसे नए कपड़े पहनाये। उसके हाथ में एक जड़ाऊ अँगूठी थी। मैंने उसे उतारकर अपनी गले की चैन में डाल लिया। अँधेरा होने पर मैंने उसे जंगल में ले जाकर कायदे से मंत्र पढ़कर दफना दिया। मैंने उसका एक फोटो भी उतारा। उसी की नकल मेरी छाती पर छपी है। कुछ दिन बाद मेरे बैंक में बहुत सा पैसा जमा करा दिया गया। मुझे भूत सवार हो गया था इस दरिंदे को खोज निकालने का और उस बच्ची की पहचान मालूम करने का मगर मेरे हाथ बँधे थे। पहली बार मुझे अपने पेशे से नफरत हुई।

मैंने तहकीकात जारी रखी पर बस इतना जान पाया की वह उसी हॉस्टल में रहती थी जहाँ से मैंने उसे उठाया था। उसे खराब करनेवाला कोई बड़ा आदमी था। उसका नाम और ओहदा उसे बचाने के लिए काफी था। मैं उस आदमी का नाम नहीं जान पाया। उस हॉस्टल की और लडकियाँ भी उसने खराब की थीं। पर आत्माएँ बोलती हैं।

मेरा जीवन पब, रेसकोर्स, जुआखाना आदि में गुजरता था। खूब पीकर अक्सर मैं किसी सड़क के किनारे गाहक की तलाश में घूमती लड़की को अपनी वैन में उठा लाता था। एक रात जो लड़की मेरे साथ आई वह ईस्टर्न यूरोप से भागकर आई मुसलमान लड़की थी। उसका सारा परिवार नष्ट हो चुका था मगर किसी तरह वह अपनी पाँच वर्ष की बहन को उठाये बच गयी। यहाँ दरिंदों के हाथ पड़ गयी थी और पेशा करके अपनी बहन को पढ़ा रही थी। बहन पढ़ने में अच्छी भी थी। मेरे गले की चैन में पिरी हुई अँगूठी पर उसकी नज़र पडी तो वह पागलों की तरह चीखी। मैंने हैरान होकर उसे शांत कराया और कारण पूछा। उसने रो रोकर बताया कि उसकी बहन के हाथ में भी वैसी ही एक अँगूठी थी पर उसकी बहन कहीं चली गयी। कोई उसे फुसलाकर हॉस्टल से निकाल ले गया। कहते कहते वह फफक फफक कर रोने लगी। हॉस्टल की वार्डन ने उसी को बुरा भला कहा और कहा कि वह किसी के साथ भाग गयी।

''तुमने बता दिया उसे?''
''नहीं उस वक्त नहीं। मैंने उससे शादी कर ली। शादी के बाद एक दिन मैंने उससे कहा कि मैं उसे एक तोहफा देना चाहता हूँ। मैं उसे अपने खलिहान पर लाया वहाँ मैंने उसकी बहन के पुराने कपडे सँभाल रखे थे। उन्हें देखकर वह रोने लगी। तब मैंने उसे सारी कथा सुनाई। उसे वह कब्र भी दिखाई जो घने जंगल में मैंने बनाई थी।
''शादी के बाद भी तुम यही काम करते रहे?''

''जाहिर है कि नहीं। मैं ऊब चुका था। प्यार एक शक्ति होता है। मुझे बहुत से काम मिल सकते थे। पर जब मैंने इस काम को लात मार दी तो मेरे बॉस को मुझपर यकीं नहीं रहा। मेरी ख़ुशी देखकर वह चौकन्ना हो गया उसने मुझे मार डालने की धमकी दी। मैं अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर छुप गया। एक घरों का सामान ढोनेवाली कंपनी में मजदूरी मिल गयी। मैं सात आठ साल आराम से रहा।

मगर मेरे दुश्मनो ने मुझे ढूँढ लिया। एक रात काम पर से घर वापिस जा रहा था की मुझे दो कारों ने कार जैक कर लिया। मैंने कार लॉक कर ली मगर दो गुंडों ने लोहे की छड़ से शीशा तोड़ डाला और हाथ अंदर डालकर दरवाजा खोल दिया। उन्होंने मुझे बाहर घसीटकर खूब मारा। मगर मैं ठहरा बॉक्सर। मैंने निशाना साधकर एक की कनपटी पर मारा। वह वहीँ बेहोश हो गया। उसका साथी छुरा लेकर मुझपर लपका मगर मैंने वह लोहे का छड़ जो उसके साथी के हाथ में था, लेकर उसके पेट में घुसेड़ दिया। इसके बाद मैंने खुद पुलिस को फोन कर दिया। आत्मरक्षा के कारण मैंने उसे मारा था अतः मुझे सिर्फ सात साल की क़ैद हुई।

डॉ मैं अपने को बहुत भाग्यशाली मानता था क्योंकि सब जानने के बाद भी मेरी पत्नी मेरे साथ बनी रही। मगर --- ''
''मगर क्या?''
''डॉ मैंने तुमको इसलिए चुना क्योंकि तुम हिन्दू हो। जेल में मेरा दोस्त रविन कहता था कि हिन्दू कर्मो के फल में विशवास करते हैं। मेरे बुरे करम मेरे सामने आ गए। मेरी पत्नी को कैंसर हो गया।'' कहते कहते उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

डॉ अनिल ने उसे ढाढ़स बँधाया। ''तुम्हीं ने तो बताया मुझे कि तुम एक अच्छे इंसान हो और किसी का बुरा नहीं चाहते। भगवान ऐसों की मदद करता है। धीरज रखो। उसने चाहा तो तुम्हारी पत्नी बहुत सालों तक जियेगी।"

''तुम्हारा बहुत शुक्रिया। मैं कभी अपने पिछले जीवन को नहीं दोहराऊँगा। अपने दोनों बच्चों पर उसकी छाया भी नहीं पड़ने दूँगा इसलिए चाहे जितना खर्चा हो मेरे ये निशान मिटा दो।''

८ दिसंबर २०१४

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