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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
पूनम डोगरा
की लघुकथा- डोर


एक सप्ताहांत जय अपने पिता राहुल के साथ रहता था, एक वीकेंड अपनी माँ के साथ बिताता। कोर्ट ने इसी तरह की व्यवस्था की थी उन दोनो के डाइवोर्स के बाद। आज रुल की बारी थी। वह शाम को जय को लेकर पार्क गया, झूला झुलाया, पार्क में ही पिकनिक की। इसके बाद वे दोनो वहीं घूमने लगे।

सूरज छुपने को था। चार साल के जय से राहुल ने पूछा, " देखो सूरज भी थक गया है, अब वह आराम करने जा रहा है, हमें भी घर जाकर आराम करना चाहिये न?"

ओह पापा, सूरज आराम थोड़े ही करता है, वह तो अब इंडिया जाता है, दादा-दादी को जगाने। आपको इतना भी नहीं पता?"

"अच्छा तो सूरज तुम्हारे पास से जा रहा है, उनके लिये कुछ भेजोगे नहीं?"

"भेजूँगा न, एक फ्लाइंग किस्सी।" इतना कहते हुए जय ने दोनो हाथ मुँह पर रखकर एक प्यारी सी फ्लाइंग किस्सी भेज दी।

उधर दुनिया के दूसरे छोर पर दादी मुसकुराती हुई उठीं। उगते सूरज को प्रणाम कर, पति को चाय का प्याला थमाते हुए बोलीं, '' आज का दिन बहुत अच्छा रहेगा, आज सुबह बहुत प्यारे सपने से आँख खुली।

१ सितंबर २०१८

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