नया साल
एक नन्हा बच्चा द्वार पर खड़ा है द्वार खोलने के प्रयास
में रत। पुराना साल एक वृद्ध अपना सामान सहेज रहा है जाने
की तैयारी में। वह सामान छोड़कर नहीं जाएगा। नये साल को
देकर जाएगा।
"नमस्ते, बाबा" नये साल ने कहा।
"खुश रहो दोस्त", पुराने साल ने कहा।
"दोस्त? मुझे पहली बार किसी वयस्क ने दोस्त कहा है।" नया
साल बोला
"ओह हा हा... पुराना साल ठहाका लगाकर बोला, "तुम भी जल्दी
बड़े हो जाने वाले हो बरखुरदार... मुझे ठीक से मालूम है
क्योंकि बस कुछ ही दिन पहले मैं भी तो तुम्हारे ही बराबर
था। फिर तुम मेरे दोस्त हुए या नहीं?''
''चलो मान लिया हम दोस्त हुए।''
ठीक है तो फिर ये सामान सँभालो- धरती का बिस्तर, आकाश की
छत, बारह महीनों के कमीज, बावन हफ्तों की पतलूनें और ३६५
दिनों के रूमाल। पुराना साल जाते जाते कुछ भावुक हो उठा,
''सामान ठीक से सहेज लेना दोस्त एक साल बाद फिर आएगा नया
साल... यह सामान खोना नहीं चाहिये। जब नया साल आ जाए तब
तुम सब कुछ उसे सौंपकर चले जाना।''
ठीक है नये साल ने कहा। और अपने नन्हें हाथों सब कुछ तरतीब
से समेट लिया, चुपचाप भीतर आया और एक तख्त पर बैठ गया और
चीजों को ठीक से सहेजने लगा। हर नया साल जानता है उसे चले
जाना है एक साल के बाद फिर भी वह पूरे उत्साह के साथ आता
है... पूरी लगन से अपने कौतुक रचता है पूरे विश्वास से एक
साल जीता है और पूरी विरक्ति से विदा होता है गाजे बाजे के
साथ... ऐसे ही फिर आएगा नया साल।
बाहर बाजों का शोर तेज हो उठा था। नया साल बाहर आ गया और
लोगों के उत्सव में खो गया। किसी को पता नहीं चला कि यह
उत्सव नये साल के आने की खुशी में था या जाने वाले साल के
सम्मान में।
१ जनवरी २०१७ |