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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
डॉ. सरस्वती माथुर
की लघुकथा- शिरीष खिल रहा है


मौसम सुहावना था। प्रचंड गरमी के बाद आज हुई झमाझम बारिश ने शिरीष के फूलों को भी नहला दिया था। देवकी ने अपनी बाँहें सामने फैला कर अपनी दोनों हथेलियाँ खोल लीं। बारिश की बूँदें मोतियों की तरह उसकी हथेलियों पर गिरने लगीं। देर तक वह जड़वत हो उन्हें निहारती रही। गूँजती हुई नम ख़ामोशी में टपटप टपाटप करती बूँदें और शिरीष के टपकते झरते फूल देवकी को अतीत में ले गये।

ऐसी ही गदराई सुहानी मस्त शाम थी, तेज़ गरमी के कारण देवकी दिन भर घर में कूलर चला कर एक किताब पढ़ती रही थी। बाहर चिड़ियों की चहचहाहट से टूटती खामोशी कभी कभी उसके अंदर भी टीस भर देती थी। देवकी के पास सब सुख थे, अच्छा घर, अच्छा पति, सभी आधुनिक सुख-सुविधाएँ, पर शादी को बारह साल हो गये थे और वो माँ बनने के सुख से वंचित थी। इस पीर भरी ख़ामोशी में वह कभी कभी बहुत अकेला महसूस करती थी। घर के बाहर लगे शिरीष के वृक्ष की नाज़ुक डालियों पर फुदकते पाखियों को देख कर वह कई बार सोचती थी कि कितना अच्छा होता मेरे घर आँगन में भी बच्चों की चहचहाहट होती। ईश्वर यह क्या, क्यों मुझे इस सुख से वंचित रखा। देवकी खुद ही प्रश्न करती खुद ही जवाब दे देती कि शायद भाग्य को यही मंजुर था।

एक दिन शिरीष के खिले पीले फूलों सी सघन धूप उसके घर की बगिया में बिखरी हुई थी और वह बरामदे में लगी आराम कुर्सी पर बैठी बारिश की फुहारों से बगिया की हरी-भरी हो गयी गोद को निहार रही थी। लान में हरी-भरी घास पर बहुत सी रंग-बिरंगी चिड़ियाँ फुदक रही थीं। जिन्हें निहारना देवकी को बहुत पसंद था। तभी उनके बागवान माली काका दौड़े दौड़े आये - "बीबीजी जल्दी आइये।" वह बुरी तरह हाँफ रहे थे। देवकी झट से उठी खड़ी हुई।
"बीबीजी, शिरीष के पेड़ के पास जो पालने जैसा आपने झूला लगाया था उसमें कोई एक बच्चा रख गया है।"
"क्या कह रहे हो माली काका?" देवकी लगभग भागती सी वहाँ पहुँची।

एक नवजात दुबला पतला सा शिशु वहाँ एक मैले कुचैले से कपड़े में लिपटा हुआ पड़ा था। दूर दूर तक निगाहें घुमाईं पर भीगते मौसम में सन्नाटा था। बस कलरव करती चिड़ियाँ मल्हारी सुर छेड़ रही थीं और उसके बाद देवकी के जीवन में एक लंबी औपचारिकताओं की मुहिम चली। पुलिस स्टेशन, समाज कल्याण विभाग और सरकारी हथकंडों के बाद उस नवजात शिशु को देवकी ने कानूनी तौर पर गोद ले लिया। बड़ी लंबी थकाने वाली कानूनी प्रक्रिया के बाद उसकी भी गोद हरी हो गयी थी। उस दिन से यह शिरीष का तरु परिवार के लिये खास हो गया था। देवकी ने अपने गोद लिये पुत्र का नाम भी शिरीष रख लिया था, परिवार में वह बच्चा सभी की आँखों का तारा हो गया था। आज वह बीस वर्ष का गबरू नौजवान हो गया है। आजकल अमेरिका में पढ़ रहा है और देवकी के जीवन में शिरीष के फूलों सा खिल रहा है।

१५ जून २०१६

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