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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
ओजेन्द्र तिवारी की लघुकथा- दिल


सुबह का वक्त था। तीखी ठंड थी। वृद्ध भिखारी ठंड से काँपता हुआ कुछ मिलने की आशा से सडक़ पर चला जा रहा था। उसकी नजर मार्ग के दाहिनी ओर एक सुंदर कॉलोनी पर गई। उसने पास जाकर देखा सभी घर एक जैसे बने हुए हैं, उनके रंग, आकार सभी एक जैसा है। उसने डरते-डरते एक घर के दरवाजे पर आवाज लगाई।

मालिक कुछ मिल जाए। अंदर से आवाज आई चल भाग यहाँ से। सुबह से जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं। अगले घर की चौखट पर फिर उसने आवाज लगाई, भीतर से उत्तर मिला क्यों नींद खराब कर रहे हो? जाओ यहाँ से। हिम्मत करके उसने आगे के घर में आवाज लगाई तो देखा मालिक अखबार पढ़ रहे थे वे बोले, कुछ करते क्यों नहीं? और अंदर से जाकर दो बासी रोटियाँ लाकर दे दीं। वह उन्हें धन्यवाद देते हुए आगे बढ़ गया।

अगले घर पर उसने फिर आवाज लगाई कुछ मिल जाए। घर की मालकिन बाहर आईं और कहा मैं तुम्हारे लिए कुछ लाती हूँ। बहुत ठंड है। क्या तुम्हारे पास गिलास है? मैं तुम्हें चाय लाती हूँ। कहकर वो अंदर चली गईं। थोड़ी देर बाद बाहर आईं तो उसे ओढऩे के लिए एक पुरानी गर्म शाल दी और उसके गिलास में चाय उड़ेल दी। कहने लगीं बैठकर चाय पी लो। फिर उन्होंने उसे नाश्ता व दस रुपए भी दिए।

भिखारी उन्हें ढेर सारा आशीर्वाद देते हुए वहाँ से प्रसन्न होकर वापिस लौट पड़ा। रास्ते में वह सोच रहा था घर तो सभी एक जैसे हैं, परन्तु उनमें रहने वाले लोगों के दिल अलग-अलग हैं।

१६ फरवरी २०१५

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