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लघुकथाएँ

लघुकथाओं के क्रम में महानगर की कहानियों के अंतर्गत प्रस्तुत है
पूर्णिमा वर्मन की लघुकथा- सुअवसर की प्रतीक्षा


दादी कहती थीं- "तीन सुजन जब मिलें जगत में स्वर्ग बसे तब धरती पर..."
"तीन सुजन कौन दादी?"- पोती पूछती थी।
दादी कहती थीं- "एक मौसम बारिश का, दूजी भीगी हवा और तीजा पेड़ पारिजात का।"
"अच्छा तो स्वर्ग कैसे बसता था धरती पर?"

"लो सुनो,
और शुरू होती दादी की कहानी- "एक था मौसम बारिश का, एक थी हवा भीगी-सी और एक था पेड़ पारिजात का। पारिजात वही, जिसे हरसिंगार कहते हैं। केसरिया वृंतों पर सजी श्वेत पंखुड़ियों वाले उस पेड़ को प्रतीक्षा रहती बारिश के मौसम की, मौसम को प्रतीक्षा रहती भीगी हवा की और हवा को प्रतीक्षा रहती केसरिया वृंतों और श्वेत पंखुड़ियों वाले उन नन्हें फूलों की। जब वे तीनों साथ होते तो पेड़ जी भर खिलता, हवा सुगंधित हो उठती और धरा रंगीन। घर में स्वर्ग बस जाता। बाकी मौसमों में पेड़ अपनी हरी पत्तियों के साथ चुपचाप खड़ा रहता"।

"चुपचाप क्यों खड़ा रहता पेड़?"- पोती पूछती
"प्रतीक्षा में बिटिया, सुनो तो-
स्वर्ग-से घर ने एक दिन पूछा, पारिजात! शरद ऋतु के आते ही तुम खिलने क्यों लगते हो, भीगी हवा में सुगंध क्यों भर देते हो? आखिर साल भर की प्रतीक्षा के बाद तो तुम्हें फूल मिलते हैं फिर तुम उन्हें बिखरा क्यों देते हो?
दूसरे दिन फिर से इतने सारे फूल कहाँ से लाते हो? और मौसम के जाते ही शांत क्यों हो जाते हो। काश तुम साल भर खिलो और मैं हर दिन स्वर्ग सा सुंदर दिखूँ।

"पारिजात ने कहा- फूल और सुगंध बिखराना मेरा स्वभाव है। अपने स्वभाव वालों से ही तो दोस्ती होती है। देखो वर्षा की ऋतु पानी की बूँदें लाकर बिखरा देती है जिससे पृथ्वी पर जीवन का संचार होता है, भीगी हवा हर सुगंध को दूर दूर तक पहुँचाती है। एक सा स्वभाव होने के कारण हम बरसों से मित्र हैं। मैं साल भर मिलन के इस सुअवसर की प्रतीक्षा करता हूँ। शांति से सुअवसर की प्रतीक्षा करने का फल मीठा होता है न?

"जब बारिश का मौसम भीगी हवा के साथ आता है तो उनसे मिलने की खुशी में मैं फूला नहीं समाता। हर रात खिलता हूँ, भीगी हवा मेरी सुगंध दूर दूर तक पहुँचा देती है। सुबह होते ही मैं वर्षा की बूँदों की तरह बिखर जाता हूँ। अपनों के साथ की खुशी मुझे हर रात फूलों से भर देती है। उनके जाते ही मैं शांति से फिर प्रतीक्षा में लग जाता हूँ।"

पता नहीं पोती को कुछ समझ में आया या नहीं, पर घर को पता चल गया कि छोटे से सुअवसर के लिये कितनी लंबी प्रतीक्षा करनी होती है। और एक ही स्वभाव वाले तीन सुजन मिल कर किस तरह जगत को स्वर्ग बना देते हैं।"
फिर अंत में दादी बोलीं,
"तीन सुजन जब मिलें जगत में स्वर्ग बसे तब धरती पर
खुशियों के दिन कभी न बीतें कभी न जाएँ सुअवसर !"

१८ जून २०१२

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