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					 ’’माँ... 
					माँ... हमारे खेत की मुँडेर पर जो पेड़ लगे हैं उन पर कितने 
					सुन्दर फूल आऐं हैं, देखा तुमने?‘‘ 
					 
					’’वह तो हर साल आते हैं... इन्हीं दिनों, होली के समय... टेसू 
					कहते हैं उसे...‘‘ 
					 
					’’माँ....उन फूलों का रंग कितना सुन्दर है, गहरा पीला... 
					नारंगी... कहीं कहीं काले धब्बे हैं पर माँ ऐसा लग रहा था जैसे 
					धधकती हुई अग्नि की लपटें हों. उसकी चमक से आँखें चुँधिया रही 
					थी। मैंने तो इसे पहली बार देखा। क्या ये फूल साल भर नहीं 
					खिलते?‘‘  
					 
					’’नहीं... ये फूल वर्श में सिर्फ एक बार फागुन महीने में होली 
					के आस-पास ही खिलते हैं...यूँ तो इसके चटक रंग के फूलों से 
					बनाए गए रंग से कान्हा ने भी होली खेली थी। पर यह एक अभिशापित 
					पेड़ है। आज मैं तुझे इसकी कहानी सुनाती हूँ।‘‘  
					 
					कहानी के नाम से बच्चा उत्साहित हो, पलथी मारकर माँ के पास आकर 
					बैठ गया। 
					 
					माँ ने कहना शुरू किया। लेकिन जैसी आम माताओं की आदत होती है 
					कहानी कहने से पहले सीख देती हुई बोली, 
					
      
					’’किसी के भी 
					रंग में भंग डालना अच्छी बात नहीं होती। उसका खामियाजा भुगतना 
					ही पड़ता है। फिर वे तो भगवान थे ...दे दिया शाप ।‘‘ 
					’’माँ तुम किसकी बात कर रही हो?‘‘ 
					’’भगवान शंकर और पार्वती की... एक दिन की बात है... वसंत ऋतु 
					का आगमन हो चुका था। मन को लुभाने वाली सुखद वायु मन्द-मन्द बह 
					रही थी। वृक्षों पर नन्हीं कोपलें फूट रही थीं और वातावरण 
					सुगंधित और मादक हो रहा था। भगवान शंकर और पार्वती देवलोक के 
					उद्यान में रास-रंग में डूबे क्रीड़ा-मग्न थे, कि वहाँ अग्निदेव 
					पँहुच गए। उस क्षण अग्निदेव का पधारना पार्वती को तनिक रास न 
					आया और उन्होंने अग्निदेव को वहीं उसी क्षण जड़ हो जाने का शाप 
					दे दिया। यह पलाश वृक्ष वही शापित वृक्ष है।‘‘ 
					 
					कहानी सुनकर बच्चा अचंभित रह गया। इतने सुन्दर वृक्ष की इतनी 
					दर्दनाक कहानी। परन्तु उसने विश्वास कर लिया क्योंकि उसे पता 
					था कि उसकी माँ कभी झूठ नहीं बोलती। 
					
					२० जून २०११  |