वह
दो बार नौकरी छोड़ चुकी थी। कारण एक ही था- बॉस की वासनात्मक
दृष्टि, किंतु उसका नौकरी करना उसकी मजबूरी थी। घर की आर्थिक
दशा शोचनीय थी। आख़िर उसने एक दफ़्तर में नौकरी कर ली। पहले
ही दिन उसके बॉस ने अपने केबिन में देर तक बिठाए रखा और
इधर-उधर की बातें करता रहा। अबकी बार उसने सोच लिया था, वह
नौकरी नहीं छोड़ेगी, वह मुकाबला करेगी। कुछ दिन दफ़्तर में
सब ठीक-ठाक चलता रहा, किंतु एक दिन उसके बॉस ने उसे अपने साथ
अकेले उस कमरे में आने के लिए कहा जहाँ पुरानी फ़ाइलें पड़ी
थीं। उन्हें उन फ़ाइलों की चेकिंग करनी थी। उसे साफ़ लग रहा
था कि उसके साथ कुछ गड़बड़ होगी। उस दिन बॉस भी सजधज कर आया
था।
एक बार तो उसके
मन में आया कि कह दे कि मैं नहीं जा सकती, किंतु नौकरी का
ख्याल रखते हुए वह इन्कार न कर सकी। कुछ देर में ही वह तीन
कमरे पर करके चौथे कमरे में थी। वह और बॉस फ़ाइलों की
चेकिंग करने लगे। उसे लगा जैसे उसका बॉस फ़ाइलों की आड़ में
केवल उसे ही घूरे जा रहा है। उसने सोच लिया था कि ज्यों ही
वह उसे छुएगा वह शोर मचा देगी। दस पंद्रह मिनट हो गए लेकिन
बॉस की ओर से ऐसी कोई हरकत न हुई।
अचानक बिजली गुल हो गई। यह
बॉस की ही साज़िश हो सकती है, यह सोचते ही वह काँपने लगी।
लेकिन तभी उसने सुना, बॉस हँसते हँसते कह रहा था,
"देखो तुम्हें अंधेरा अच्छा नहीं
लगता होगा। तुम्हारी भाभी (बॉस की पत्नी) को भी अच्छा नहीं
लगता। जाओ तुम बाहर चली जाओ।"
इस अप्रत्याशित बात को सुनकर वह हैरान हो गई। बॉस की
पत्नी, मेरी भाभी यानी मैं बॉस की बहन।
सहसा उसे लगा, जैसे कमरे
में हज़ार हज़ार पावर के कई बल्ब जगमगा उठे हैं।
९ नवंबर २००७ |