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						वह प्रेम दिवस का आयोजन था। 
						लाल रंग के गुलाबों, दिल के आकारों की विभिन्न वस्तुओं, 
						रंग बिरंगे और अपेक्षाकृत स्मार्ट परिधानों में युवक 
						युवतियाँ अपने तईं इकरार – इज़हार कर रहे थे। कोई झगड़ रहा 
						था तो किसी का दिल टूट रहा था। कोई बदले की भावना से 
						गुस्सा हुआ जा रहा था तो किसी के कदम ज़मीन पर नही पड़ रहे 
						थे। 
						 
						मोनिका भी पूर्व निश्चित स्थान पर अपनी बारी का इंतज़ार कर 
						रही थी। उन्हीं के फ्रेंड्स क्लब ने इस कार्यक्रम का आयोजन 
						किया था। इसमें थी मौज मस्ती और नाच गाना। फूल, कार्ड, 
						गिफ्ट्स, चॉकलेट सभी 
						कुछ उपलब्ध था। उसे इंतज़ार था देव का। जिसने पिछले 
						वैलेंटाईन पर ही उससे अपने प्रेम का इज़हार किया था। उसके 
						बाद से साल भर दोनो योंही मिलते आ रहे थे। उसे विश्वास था 
						कि उसके कार्यक्रम तक देव ज़रूर आ जाएगा। 
						 
						अचानक बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। सभी ने बाहर जाकर देखा। दो 
						गुटों में झगड़ा हो रहा था। कारण जो भी कुछ रहा हो लेकिन 
						पुलिस पहुँच चुकी थी। आतंक और तनाव का माहौल था। समझदार 
						लड़कियों ने घर की राह पकड़ने में ही खैर समझी। लेकिन मोनिका 
						वहाँ पहुँचती तब तक देर हो चुकी थी। वह रास्ता बंद कर दिया 
						गया था। सारा यातायात दूसरी ओर मोड़ दिया गया था। 
						 
						मोनिका जहाँ देव का इंतज़ार कर रही थी वहीं एक पकी उम्र की 
						माँजी भी खड़ी थी। उसे देखते ही हठात बोल पड़ीं। "इतनी गड़बड़ 
						में क्यों रात गए घर से निकली हो बेटी?" मोनिका ने 
						उपेक्षापूर्ण दृष्टि से उन्हे देखा। उसे लगा कि इन माँजी 
						को वह क्या समझाए कि आज प्रेम दिवस है। आज नहीं तो कब बाहर 
						निकलना चाहिए। आपके ज़माने में नहीं थे ये वैलेंटाईन डे 
						वगैरह। आप तो अपने पति की चाकरी करते हुए ही ज़िंदगी 
						गुज़ारिए। उसे वैसे भी इस दादी टाईप की औरत की बातों में 
						कोई रुचि नहीं थी। 
						 
						लेकिन वह स्वयं इस 
						हादसे के कारण घबराई हुई सब से दूर बस देव को ही ढूँढ रही 
						थी। उसे विश्वास था कि वह उसे इस मुसीबत से निकालने के लिए 
						ज़रूर आएगा। सारे वाहन वहाँ से हटवा दिए गए थे। काफ़ी देर तक 
						ज़ोर–ज़ोर से आवाजें आती रहीं। लाठी चार्ज होने लगा था। 
						 
						पुलिस किसी को भी उस घेरे के अंदर से जाने देने को तैयार 
						नही थी। तभी मोनिका ने देखा, देव किसी पुलिसकर्मी से उलझ 
						पड़ा था। वह उसे अंदर नही आने दे रहा था। "ओह देव प्लीज 
						मुझे निकालो यहाँ से।" मोनिका चीख पड़ी थी। लेकिन देव कुछ 
						भी नही कर पा रहा था। बार–बार अपने मोबाईल से किसी को फ़ोन 
						करता जा रहा था। शायद उसने मोनिका के भाई को फ़ोन कर सारी 
						स्थिति बता दी थी और स्वयं वहाँ से निकल गया था। मोनिका 
						अविश्वास से उसे जाते हुए देखती रही। क्या यही उसका 
						विश्वास था? 
						 
						तभी पास खड़ी माँजी खुशी से बोल पड़ी, "आ गए आप!" 
						मोनिका ने दृष्टि से उनका पीछा किया। एक बूढ़े से सत्तर के 
						लगभग के बुजुर्ग, काफ़ी ऊंची रेलिंग को बड़ी मुश्किल से पार 
						करते हुए माँजी तक पहुँचे। 
						 
						दोनों घबराए हुए से पहले तो एक दूसरे का हाथ पकड़े हाल चाल 
						पूछते रहे। 
						"मुझे तो सामने के वर्माजी ने ख़बर की। उन्होंने कहा कि 
						जल्दी से तुम्हें घर ले आऊँ। यहाँ कोई फ़साद हो गया है। 
						तुम्हें अकेले नहीं आने देंगे।" वे काफ़ी घबराए हुए थे। 
						 
						"लेकिन अब घबराने की ज़रूरत नहीं है। मैं आ गया हूँ ना। वो 
						पुलिसवाले को देखा, किसी को भी अंदर आने नही दे रहा था। 
						सबसे झगड़ने पर ही तुला हुआ है। इसीलिए मैं उस रेलिंग को 
						पार कर आ गया। यहाँ से बाहर जाने के लिए कोई पाबंदी नही 
						है। चलो अब जल्दी से निकलते हैं।" उनकी साँस फूलने लगी थी। 
						 
						मोनिका कुछ कहती इससे पहले ही माँजी ने उसे भी अपने साथ 
						लिया और बाहर निकलकर उसके भाई के हाथों में सुरक्षित सौंप 
						दिया। मोनिका को लगा कि देव खुद भी तो यही कर सकता था! 
						 
						वह सोचती रही। उन दोनों के बीच वैलेंटाईन डे के बगैर, पके 
						हुए प्रेम विश्वास और आपसी समझ को। ये सब उन थके चेहरों की 
						आँखों में चमक रहा था जिसके आगे सारे युवा जोड़े फीके नज़र आ 
						रहे थे। 
						 
						उसे समझ आ गया था। यही सच्चा प्रेम था। 
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