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                        खिलौनों 
						से भर गया था स्टोररूम। पत्नी का विचार था कि उन्हें किसी 
						कबाड़ी के हाथों बेच दिया जाए और जगह खाली कर ली जाए। क्यों 
						कि बच्चे बड़े हो गए हैं और अब वे उन खिलौनों की तरफ देखते 
						भी नहीं। कुछ को छोड़ कर ज्यादातर खिलौने नए जैसे ही थे। वह 
						झुँझला कर बोला था, "हर साल बच्चों के बर्थडे पर बाज़ार से 
						ख़रीद खरीद कर नए देते रहे, ढेर तो लगना ही था। अब कबाड़ी 
						क्या दे देगा सौ पचास?  
						 
						बाबू जी ने समझाया जो हुआ सो हुआ हमारे बच्चों का बचपन 
						खिलौनों में बीता बस यही संतोष की बात है। अब ये है कि अगर 
						कहो तो मैं ये खिलौने ले जाकर कहीं ग़रीब बच्चों में बाँट 
						आऊँ और कुछ नहीं तो एक नेक काम ही सही।  
						 
						वे कुछ नहीं बोल पाए 
						थे। बाबू जी इसे दोनों की सहमति समझ कर सभी खिलौने लेकर चल 
						दिए।  
						बड़े उत्साह के साथ वे इंडस्ट्री एरिया के पीछे बनी 
						झुग्गियों की ओर चल दिए– कितना खुश होंगे वे बच्चे इन 
						खिलौनों को पाकर। रोटी तो जैसे तैसे वे बच्चे खा ही लेते 
						हैं। तन ढकने के लिए कपड़े भी माँग ताँग कर पहन ही लेते 
						हैं। पर खिलौने उन बच्चों के नसीब में कहाँ? उनके चेहरे 
						खिल उठेंगे, आँखें चमक जाएँगी खिलौने देखकर ...उन्हें खुश 
						होता देखकर मुझे कितनी खुशी होगी, इससे बड़ा काम तो कोई हो 
						ही नहीं सकता। 
						  
						झुग्गियों के पास पहुँचकर उन्होंने देखा मैले फटे कपड़े 
						पहने दो बच्चे सामने से चले आ रहे हैं। उन्हें पास बुलाकर 
						उन्होंने कहा, "बच्चों ये खिलौने मैं तुम लोगों के बीच 
						बाँटना चाहता हूँ ... .इनमें से तुम्हें जो पसंद हो एक एक 
						खिलौना तुम ले लो ...बिलकुल मुफ्त। हैरान होकर बच्चों ने 
						उनकी ओर देखा फिर एक दूसरे की तरफ देखा फिर अथाह खुशी भर 
						कर खिलौनों को उलट–पुलट कर देखने लगे। उन्हें खुश होता देख 
						कर बाबू जी की खुशी का भी ठिकाना न रहा। कुछ ही क्षणों में 
						बाबू जी ने देखा दोनो बच्चे कुछ सोच में पड़ गए। उनके चेहरे 
						बुझते से चले गए।  
						"क्या हुआ?" 
						 
						एक बच्चे ने खिलौने 
						को वापस उनके झोले में डालते हुए कहा, "मैं नहीं ले सकता। 
						मैं इसे घर ले जाऊँगा तो माँ बाप समझेंगे कि मैने मालिक से 
						ओवर टाइम के पैसे उन्हें बिना बताए ले लिये होंगे और उनका 
						खिलौना ले आया हूँगा ...वे नहीं मानेंगे कि किसी ने मुफ्त 
						में दिया होगा। शक में मेरी तो पिटाई हो जाएगी।  
						 
						दूसरा बच्चा खिलौनों से हाथ खींचता हुआ बोला, "बाबू जी 
						खिलौने लेकर करेंगे क्या? मैं फैक्ट्री में काम करता हूँ। 
						वहीं पर रहता हूँ। सुबह मुँह अंधेरे से देर रात तक काम 
						करता हूँ। किस वक्त खेलूँगा। आप ये खिलौने किसी बच्चे को 
						दे देना। 
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