मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से महेन्द्र भीष्म की कहानी- मेरी कहानी


विमान ने काहिरा एयर-पोर्ट से उड़ान भरी। कुछ समय बाद माइक्रोफोन पर विमान परिचारिका का मोहक स्वर गूँजा, "कृपया आप लोग अपनी कमर से सीट बेल्ट खोल लें।"

यह एयर इंडिया का विमान था, जिसमें मैं अपनी मॉम के साथ मंट्रियाल से सवार हुआ था। मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में अक्सर अमेरिका से यूरोप आता-जाता रहा हूँ। मेरी सदैव यह इच्छा रहती है कि मैं एयरइंडिया के विमान से ही यात्रा करूँ। पिछली अधिकांश यात्राएँ जो मैंने एयर इंडिया के विमानों से सम्पन्न की थीं, उन सभी उड़ानों पर मुझे जितनी खुशी हुआ करती थी, उनकी सम्मिलित खुशी से भी अधिक मुझे इस बार भारत के लिए की जा रही अपनी यात्रा से हो रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि मेरा जन्म-स्थान भारत है और मेरी रगों में गौरवशाली देश भारतवर्ष का खून प्रवाहित हो रहा है, परन्तु आज मैं एक अमेरिकी नागरिक की हैसियत से भारत जा रहा हूँ। मंट्रियाल नगर के सम्भ्रांत उद्योगपति स्वर्गीय चार्ल्स का इकलौता दत्तक पुत्र विल्सन चार्ल्स हूँ मैं। ‘विल्सन’ नाम मेरे अमेरिकी माता-पिता ने मुझे दिया था।

मेरे स्मृति-पटल पर आज भी बचपन की धुँधली-सी यादें अंकित हैं। मैं जब पहली बार दत्तक पुत्र के रूप में अपने अमेरिकी माता-पिता के साथ अमेरिका आया था, तब मेरी उम्र यही कोई चार वर्ष की रही होगी। मुझे अच्छी तरह से याद है, मुझसे कुछ छोटा, मेरा एक भाई भी था, जो सदैव मेरी भारतीय माँ की गोद में चिपका रहता था। मैं उसे बहुत चाहता था। जब कोई मुझसे यह कहता कि ‘वह मेरे छोटे भाई को अपने साथ ले जाएँगे।’ तब मैं सख्ती से ‘नहीं’ कहकर मना कर देता और न मानने की स्थिति में रो देता था। मेरे रोने से वे मेरे भाई को नहीं ले जाते थे। तब मुझे बहुत राहत मिलती थी और रोनेवाली प्रक्रिया अपनी बात मनवाने के लिए अमोघ-अस्त्र की भाँति लगती थी।

एक दिन वह भी आया, जब मैं बहुत रोता-बिलखता रहा, परन्तु मेरा यह अमोघ-अस्त्र किसी काम नहीं आ सका और कोई मेरे छोटे भाई को ले गया। छोटे भाई के बिना मैं बहुत उदास रहने लगा था। मेरी दुबली और कमजोर माँ उसकी याद करके अक्सर रोती रहती थी।

मुझे यह नहीं मालूम कि मेरे पिता क्या काम करते थे? हाँ, मेरी माँ दूसरों के घरों में काम करने जाया करती थी। हम दोनों भाइयों को भी वह अपने साथ ले जाया करती थी। मेरा छोटा भाई माँ की गोद से चिपका रहता और मैं माँ की उँगली पकड़े धीरे-धीरे पैदल चलता। जब कभी मैं अपने छोटे भाई को अपनी गोद में उठाने के प्रयास में उसे नीचे गिराकर रुला दिया करता था, तब मेरी माँ मुझे पीट देती थी। हम दोनों भाई एक स्वर में जोर-जोर से रोने लगते थे। तब हमारी माँ हम दोनों भाइयों को अपने आंचल में छिपाकर बैठ जाती थी। माँ का अमृत-तुल्य मीठा दूध पीने में मस्त हम दोनों भाई तत्काल रोना-धोना बंद कर देते थे। हम दोनों को चुप कराने का माँ का यह ढंग निराला था।

हम दोनों भाई प्याज और नमक के साथ मक्के की रोटी बड़े चाव से खाया करते थे। कभी-कभी हमें इसके साथ सरसों का साग या गुड़ की ढेली भी मिल जाया करती थी। मक्के की रोटी के साथ गुड़ मुझे बहुत पसन्द था। मुझे यह मालूम नहीं था कि तब मेरे माता-पिता क्या खाते थे क्योंकि मैंने अपने सामने उन्हें कभी कुछ खाते हुए नहीं देखा था। आज मैं अपने बचपन की उन परिस्थितियों को भली-भाँति समझ पा रहा हूँ कि मुझे जन्म देने वाले मेरे भारतीय माता-पिता कितने अधिक गरीब थे।

फिर वह दिन भी आया, जब मुझे अपने माता-पिता से सदा के लिए अलग होना पड़ा। अपनी मातृभूमि से दूर जाना पड़ा। आज भी मुझे उस दिन की याद अच्छी तरह से है। मुझे अच्छे कपड़े पहनाए गये थे। बीती रात मेरी कमजोर कृशकाय माँ मुझे चूमती और रोती रही। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। हाँ, जागने पर अपनी माँ को रोते हुए देखकर मैं भी रोने लगता था। तब वह मुझे चुप कराते हुए अपने आँचल में छिपा लेती और कुछ देर के लिए अपने आँसू रोक लेती थी।

अगली सुबह मेरे पिता मुझे गोद में लेकर कहीं जाने लगे। तब माँ ने मुझे पिताजी की गोद से छीन लिया और मकान के अन्दर वाले हिस्से में चली गयी। पिताजी ने मुझसे कहा था, ‘काके, तुझे शहर ले चल रहा हूँ, वहाँ पर तुझे तेरा छोटा भाई मिलेगा, खाने के लिए ढेर सारी मिठाइयाँ और खेलने के लिए बहुत सारे खिलौने मिलेंगे।’

यह सुनते ही मैं अपने पिता के साथ शहर जाने के लिए मचल उठा था और माँ की गोद से पिता की गोद में जाने के लिए उतावला हो उठा था। मेरे पिता बहुत देर तक माँ को समझाते रहे। फिर मुझे लेकर वह शहर की ओर चल पड़े थे। उस समय मुझ नादान बालक को अपनी माँ की मनोदशा का भला क्या अनुमान हो सकता था? माँ से बिछुड़ने के उस दृश्य का चित्रा जब-जब मेरे मस्तिष्क में कौंधता है, तब-तब मैं सिहर उठता हूँ, आँखों में आँसू भर आते हैं, गला रुँध जाता है। मुझे तब क्या मालूम था कि मैं उनसे हमेशा के लिए बिछुड़ रहा हूँ। उस समय तो मेरे मन में छोटे भाई से मिलने की ललक, भरपेट मिठाई खाने की इच्छा और ढेर सारे खिलौने पाने की उमंग थी।

शहर में मेरे पिता मुझे लेकर एक बहुत बड़े मकान में पहुँचे। वह कोई होटल रहा होगा। वहाँ पर मेरे पिता एक गोरे दम्पति से मिले। गोरी महिला ने मुझे मेरे पिता की गोद से ले लिया। उनमें आपस में कुछ देर तक बातचीत होती रही। मुझे वह गोरे दम्पति जरा भी अच्छे नहीं लग रहे थे। मैं अपने पिता की गोद में वापस जाना चाहता था। मेरे पिता को उन्होंने एक बैग थमाया था। आज समझ सकता हूँ कि उसमें निश्चित ही मेरे विक्रय के रुपये रहे होंगे। तब मैंने सोचा था कि बैग मिठाई व खिलौनों से भरा है। मेरे पिता मेरे पास आए, उनकी आँखें नम थीं। उन्होंने मेरे सिर पर हाथ फेरा। मुझे चूमा और तुरन्त ही कमरे से बाहर निकल गये। उनके जाते ही मैं मचल उठा था और जोर-जोर से चिल्लाते हुए रोने लगा था। वे गोरे दम्पति मुझे तरह-तरह से चुप कराने का प्रयास करते रहे। फिर मुझे कुछ याद नहीं रहा। शायद मुझे नींद आने की गोली खिला दी गयी थी। जब भी मेरी नींद टूटती, मेरे सामने वही गोरे दम्पति होते, मेरी माँ नहीं होती, मेरे पिता नहीं होते, मेरा छोटा भाई उनके साथ नहीं होता। मैं मचल उठता, रोने लगता और मुझे फिर सुला दिया जाता।

तब मुझे मालूम नहीं था कि मैं अपनी मातृभूमि से हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका आ चुका हूँ। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता गया, मैं अपना अतीत भूलता गया। नये परिवेश में नये-नये लोगों के मध्य में घुलता-मिलता चला गया। धीरे-धीरे मुझे गोरे दम्पती अच्छे लगने लगे। मैं उन्हें ‘मम’ और ‘डैड’ कहकर पुकारने लगा। भाषा-संस्कृति मेरे लिए नये नहीं रह गये। मैं पूरी तरह से अपने मम और डैड के देश की संस्कृति और संस्कारों में ढलता गया। मैं भूलता गया अपनी दुबली और कमजोर माँ को, जो खाने के लिए मक्के की नमकीन रोटी, प्याज के साथ देती थी, जिसकी आँखों में सदा आँसू होते थे। मैं भूलता चला गया अपने पिता को जिनकी पगड़ी हमेशा मैली रहती थी, जो कभी-कभी मुझे गुरुद्वारे ले जाते थे और स्वयं मत्था टेकते हुए मुझे भी मत्था टेकने के लिए कहा करते थे, परन्तु मैं कभी भी नहीं भूला था अपने छोटे भाई को, जिसकी बड़ी-बड़ी आँखें थीं, गोरा-चिट्टा शरीर और लम्बी-सी नाक थी। मैं अपने डैड और मम को बहुत चाहता हूँ। अपनी मृत्यु के समय डैड मुझसे कुछ कहना चाहते थे, परन्तु वह कुछ नहीं कह सके थे और उन्होंने मम को कुछ संकेत करने के बाद अपनी आँखें सदा के लिए बंद कर ली थीं। उस समय मैं कुछ समझ नहीं पाया था। बाद में मुझे मम ने बताया था कि मेरे डैड मुझसे क्या कहना चाहते थे।

मम ने बताया, वे दोनों निःसंतान थे, इसलिए एक बच्चा गोद लेना चाहते थे। "तुम्हारे डैड को भारतवर्ष से बहुत लगाव था। भारतीय संस्कृति के प्रति उनमें घोर आस्था थी। अक्सर हम लोग भारत-भ्रमण के लिए जाया करते थे। जब डॉक्टरों द्वारा यह घोषित कर दिया गया कि हम दोनों निःसन्तान ही रहेंगे, तब मैंने उनसे एक बच्चा गोद लेने का आग्रह किया था। अंततः अपने एक भारतीय मित्र के माध्यम से हम लोगों ने तुम्हें गोद ले लिया था।" यह कहते-कहते मेरी मम मुझसे लिपट कर रोने लगी थी, "विल्सन तू मुझे छोड़कर जाएगा तो नहीं? क्या मैं तेरी माँ नहीं हूँ।" तब मैं भी रो पड़ा था, "नहीं, मम! तुम्हीं मेरी माँ हो। तुम्हारे सिवा मैं किसी को नहीं जानता।"

आज मेरी मम ही मुझे लेकर भारत जा रही हैं। हम लोग भारत की राजधानी नयी दिल्ली में रह रहे डैड के उन भारतीय मित्र से मिलेंगे, जिनके माध्यम से मुझे गोद लिया गया था, गोद क्या बल्कि खरीदा गया था। सम्भवतः मैं अपने भारतीय माता-पिता से मिल पाने में सफल रहूँ। उनसे मैं अपने छोटे भाई का पता पा सकूँगा। मैं जानता हूँ कि मेरी तरह मेरा छोटा भाई भी किसी धनाढ्य माता-माता का दत्तक पुत्र बना वैभवपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा होगा। उसे अपने बचपन की कुछ भी याद नहीं होगी। उसे तो यह भी याद नहीं होगा कि उसके माँ-बाप भारतीय थे, जिन्होंने अपनी गरीबी और कंगाली के कारण उसे बेच दिया था। उसका कोई बड़ा भाई भी था, जो उसे बहुत चाहता था।

विमान-परिचारिका मिस प्रमिला कौर की माइक्रोफोन पर आती मधुर आवाज ने मुझे सचेत किया। मेरे विचारों का क्रम टूटा। मैंने अपने बगल में ऊँघ रही मम को बेल्ट बाँध लेने के लिए जगाया। हमारा विमान मुम्बई के शान्ताक्रूज एयर-पोर्ट पर कुछ पल बाद ही लैंड करने वाला था। मुम्बई के बाद हमारी उड़ान जयपुर होते हुए नयी दिल्ली के लिए होगी।

विमान-परिचारिका मिस प्रमिला कौर सिख लड़की है, जिससे मेरा परिचय मंट्रियाल एयरपोर्ट पर ही हो गया था। वह मेरे संक्षिप्त अतीत को सुनकर भावुक हो उठी थी। उसने अत्यंत आत्मीयता से हम दोनों को चंडीगढ़ में स्थित अपने घर आने के लिए आमंत्रित किया है। उससे हुई पहली भेंट पर ही मुझे ऐसा महसूस हुआ, जैसे हम दोनों एक-दूसरे को बहुत निकट से जानते हों। मेरी गाथा को सुनकर वह भावुक लड़की सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए मेरे प्रति उदार हो चुकी है। मेरे मन में भी उसके प्रति कुछ अंकुरित हो चला है। मिस प्रमिला कौर कितनी भाग्यशाली है, जो अपने माता-पिता की छत्रा-छाया में पली-बढ़ी और अपने देश की सेवा कर रही है। वह पंजाब की मिट्टी में पैदा हुई भारतवर्ष की लड़की है, जिसके शरीर में प्रवाहित हो रहा खून भारतीय है। मुझे भी अपने ऊपर गर्व है कि मैंने महान देश भारतवर्ष में जन्म पाया। मेरी रगों में दौड़ रहा खून भी भारतीय माता-पिता का है। हल्के हिचकोले के साथ हमारे विमान ने भारत-भूमि को स्पर्श किया और रन-वे पर दौड़ लगानी प्रारम्भ कर दी। मेरे हाथ कमर में बँधी बेल्ट को खोलने में व्यस्त हो गये।

"सुनिए! मेरी कहानी अभी समाप्त नहीं हुई, बल्कि आगे नयी शुरुआत की ओर बढ़ चली है। हो सकता है मेरे भारतीय माता-पिता मुझे मिल जाएँ। मेरे छोटे भाई का पता चल जाए। प्रमिला मेरी जीवन-संगिनी बन जाए, देखिए, क्या होता है, आगे तो सब ईश्वर की मर्जी पर निर्भर है। भारत से अमेरिका वापसी पर मैं पुनः आपको अपनी कहानी सुनाऊँगा। तब तक के लिए प्रणाम! सतश्री अकाल! खुदा हाफिज! गुड बाय!"

१३ जुलाई २०१५

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।