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इतिहास


 
शिशुनाग शशांक- इतिहास के दर्पण में
- यमुना दत्त वैष्णव ‘अशोक’


भारत में जो सबसे प्राचीन मूर्तियाँ प्राप्त हैं वे ईसा पूर्व आठवीं शती के उत्तरार्द्ध की हैं। उनमें से कुछ पर खुदे हुए नामों से यह पता चलता है कि वे शेशुनाग वंश की हैं। इस वंश के एक राजा की मूर्ति जो २६४ सें.मी. लंबी है, मथुरा जिले के परखम गाँव में मिली थी। आजकल मथुरा संग्रहालय में है। कलकत्ता संग्रहालय में भी दो और पुरुष मूर्तियाँ सुरक्षित हैं। ये सभी मूर्तियाँ साधारण मानव की ऊँचाई से अधिक ऊँची हैं। कुछ विद्वानों ने इन मूर्तियों को यक्ष की मूर्तियाँ बताया है। कुछ अन्य विद्वानों ने इन मूर्तियों की सजीव मानवता से यही निष्कर्ष निकाला है कि ये वास्तव में शेशुनाक वंश के राजाओं की मूर्तियाँ हैं। एक मूर्ति उस उदय नामक राजा की है जिसने पाटलिपुत्र नगर बसाया था। दो स्त्री मूर्तियाँ तथा एक पुरुष मूर्ति जो खंडित है और मिली हैं। इन पर कोई नाम अंकित नहीं है। इनमें से एक स्त्री मूर्ति कलकत्ता संग्रहालय में है, यह ग्वालियर से प्राप्त हुई थी तथा शेष दो मूर्तियाँ मथुरा संग्रहालय में हैं।

आदि मूल भाषा

ऋग्वेद में राजनीतिक इतिहास विषयक अनेक तथ्य हैं। इन सभी तथ्यों की विश्वसनीयता अब मैसोपोटामिया की अमरु वंश की राजधानी मारी के उत्खनन से स्पष्ट हो गयी है तथा सुमेरी भाषा की जननी नॉर्डिक, जिसे पाणिनी ने उदीच्य कहा है, मानव की आदि मूल भाषा सिद्ध हो गयी है। यह भाषा इतनी पुरानी है कि प्राचीन किसी भी राष्ट्र के वर्तमान नाम से मानव को विभाजित करना अब निरर्थक सिद्ध हो गया है। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के भाषा विशेषज्ञ ई. रैप्सन ने इस भाषा को कोई भौगोलिक नाम न देकर ‘वीरो’ अभिहित किया है क्योंकि संसार की आठ प्राचीनतम भाषाओं के हमारे पूर्वजों की यह सार्वभौम मातृभाषा थी। इस आदि भाषा से जनित हेलेनिक, इटैलिक, कैल्टिक, ट्युटोनिक, स्लाव, अनातोल, फारसी, इंडिक (वैदिक) में मनुष्य शब्द के लिए वीर या विरो शब्द आया है। इसीलिए इस भाषा को वीरोस् (विरोस्) नाम दिया गया है।

असुर- असीरियन लोग

प्राच्य इतिहास के विशेषज्ञ चैडविक ने सन् १८९९ में अपनी पुस्तक बिबलिकल आर्क्योलॉजी में यह प्रतिपादित किया था कि यहूदी बाइबिल में वर्णित असुर वे ही असीरियन लोग हैं जिन्हें प्राचीन भारतीय साहित्य में असुर कहा गया है। बाद में रायल-एशियाटिक सोसाइटी की पत्रिका में प्रकाशित लेखों में (१९/२४, पृष्ठ २६५) अन्य विद्वानों ने इसी तथ्य की पुष्टि की। प्राचीन सुमेर के अनेक नगर, राज्यों में असुर (कहीं इसे अशुर और कहीं अश्शुर भी कहा गया है) एक प्रमुख राज्य था। इस राज्य की राजधानी का नाम असुर था और इस राज्य के प्रमुख इष्ट देव का नाम भी असुर था। असुर नगर के ध्वंसावशेषों का पुरातत्ववेत्ताओं ने उत्खनन करके पता लगा लिया है। यह उजला (टिगरिस) नदी के दाहिने किनारे पर स्थित था। असुर राज्य के अन्य प्रसिद्ध नगर सिपपार, निपपुर, कालेय तथा निनेवा थे।

नगर- व्यापार के केंद्र

सुमेरी भाषा के सबसे अधिक अभिलेख मारि नाम के स्थान के ध्वंसावशेषों से मिले हैं। फुरात नदी के दक्षिण में मारि के खंडहर ३७०० वर्ष विस्मृति के गर्त में पड़े रहे। आधुनिक काल में मारि के खंडहरों का उत्खनन पुरातत्व की सबसे बड़ी खोज मानी जाती है। लायर्ड नामक पुराविद ने मारि से लायी २४००० मृद् बटिकाएँ ब्रिटिश म्यूजियम को दी हैं। इन अभिलेखों से पता चलता है कि उस समय कौन-कौन से बड़े नगर किस व्यापार के लिए प्रसिद्ध थे तथा भू-भाग सागर से लेकर बलूचिस्तान के पश्चिम स्थित ईलाम (सिंधु देश) तक के देशों में किन-किन राजाओं का राज्य था।

तीनों महाद्वीपों पर शासन

शशांक प्रथम नाम के शासक द्वारा दजला-फुरात घाटी पर किये गये आक्रमण का ऐतिहासिक प्रमाण भी असुरबाण पाल (६६८-६२६ ई.पू.) के एक अभिलेख में मिलता है जिसमें उसने कहा है-‘सुषा के शासक ने बैबीलोन पर १६३५ (अथवा १५३५) वर्ष पहले अधिकार किया था। उसी का बदला मैं अब सुषा पर विजय पाकर ले चुका हूँ। (पश्चिम एशिया के कीलाक्षर पुरालेख-खंड-५, प्लेट-६-स्त. ६-१-१०७) इस पुरालेख से मिस्त्र, मध्य-पूर्व तथा प्राचीन ईलाम (राजधानी सुषा) के ऐतिहासिक तथ्यों का ताल-मेल बैठ गया है और यह प्रमाणित होता है कि शशांक प्रथम ने ९५० ई. पू. मिस्त्र देश की शासन सत्ता सँभाली थी तथा पूर्वोक्त महाद्वीपों पर शासन किया था।

हरिहर वंश: पाँच शशांक

मिस्त्र देश के इतिहास में शशांक द्वारा स्थापित यह राजवंश हरिहर वंश कहलाता है। इन पुरोहितों ने तब राज सत्ता मिस्त्र देश के परंपरागत फराओं के हाथों से छीनकर अपने अधिकार में कर ली थी। यह राजवंश मिस्त्र देश का २२ वाँ राजवंश कहलाता है। शशांक द्वितीय इस राजवंशावली में पाँचवें क्रम पर है और शशांक तृतीय का क्रम सातवाँ है। शशांक चतुर्थ का उल्लेख, जो अपिस सॉड के स्मारक मे अंकित है, वर्णित करता है कि वह अपिस शशांक चतुर्थ के राज्यकाल के सैंतीसवें वर्ष में मरा था। इस प्रकार पाँच शशांक नाम के राजा मिस्त्र देश की गद्दी पर बैठे। तदोपरांत उनके शासन का अंत दजला-फुरात घाटी से मिस्त्र पर आक्रमण करने वाले असुर साम्राज्य का अधिकार हो गया।

एशिया की प्राचीनतम नगरी

मिस्त्र देश में असुर बाण काल के शासन काल के दौरान नियुक्त २० नगर प्रशासकों की नामावली कीलाक्षर लिपि के साथ-साथ मिस्त्र की हाइरोग्लिपिक्क में भी उपलब्ध है। कीलाक्षरों में १२ वें नगर के शासक का नाम शिशनाक है किंतु मिस्त्री भाषा में यही नाम शशांक लिखा मिलता है। जैसा कि संलग्न सूची से स्पष्ट है। असुर बाण के ग्रंथागार से प्राप्त अभिलेखों में पूर्वोक्त इलाम राज्य के इष्ट देव का नाम शिशुनाग अथवा शेषनाग लिखा मिला है। सुसा भारतीय महाकाव्यों की पश्चिम के दिग्पाल वरुण की राजधानी कही गयी है। यह एशिया की सबसे प्राचीन नगरी है जिसे ६००० पूर्व की माना गया है। जहाँ तक शिशुनाग अथवा शशांक प्रथम की दिग्विजय की प्रामाणिकता का संबंध है, यह नील नदी के वर्तमान लक्षोर नगर के समीप ‘कोलोसस ऑव मैग्मौन’ कहे गये विशाल भवन से स्पष्ट है। मैग्मौन कुश देव का शासक था जो ग्रीक महाकाव्य इलियड के अनुसार १३ वीं ई.पू. सदी में ट्रॉय के युद्ध में ग्रीक लोगों की सहायता करने कुश देश के अपने धनुर्धरों को लेकर आया था।

कारनक (कर्णाक) का सूर्य मंदिर का मुख्य द्वार १० मंजिल ऊँचा और ५० फीट चौड़ा है। इसके सभागार में १३४ विशाल खंभों का जाल बना है। इस सभागार में पत्थरों पर नक्काशी है और चप्पे-चप्पे पर पुरालेख और चित्रांकित ऐतिहासिक विवरण हैं। इनमें से एक विवरण कुश फराओ शशांक (शेशांक या शेषनाग) की पूर्वी देशों की दिग्विजय का भी है। शशांक का विशाल उभरा हुआ चित्र नीले रंग से बना है। शशांक स्वयं नंगे पाँव हाथ में गदा लिए हुए अनेक देशों के राजाओं पर प्रहार करता हुआ दिखाया गया है। पृष्ठभूमि में विजित राजाओं के नाम तथा उनके देश के बीजाक्षर प्रतीक, जिन्हें पुराविद कारतूश कहते हैं, सैकड़ों की संख्या में अंकित हैं। इन कारतूशों के भीतर उन देशों के कीलाक्षर प्रतीक अंकित हैं। चित्र के नीचे आठ बड़े कारतूश अंकित हैं। इनके नाम स्पष्ट पढ़े जाते हैं-
१ गिबौन, २ महान्यम, अज्ञात, ३ हफरायम, ४ रिहोब, ५ बेथसीन, ६ सुनेम, ७ तानत।

शतपथ ब्राह्ममण के अनुसार अनेक असुर उपनिवेश ईसा पूर्व पहली सहस्त्राब्दी में सिंधु नदी के देश से लेकर मगध तक फैल गये थे। कठ जाति का उल्लेख कठोपनिषद में हुआ है। यह कैथी (सीथियन) जाति थी जिसके नाम पर प्राचीन काल में गुजरात सीथिया कहलाता था। यही नाम कालांतर में काठियावाड़ हो गया। देशवासियों के सामूहिक निर्वासन के अनेक दृष्टांत हमें प्राचीन मध्य-पूर्व तथा भू-मध्य सागरीय देशों के इतिहास में मिलते हैं। असुर राजा तिगलाथ पिलेसर तृतीय ने अपने शासनकाल में विजित देशों के समस्त निवासियों को देश निकाला देकर जलपोतों द्वारा दूर-दूर देशों में जाकर बसने के लिए विवश किया था। अतः मगध देश में मौर्य शासन से पहले नंद वंश और उससे पहले शिशुनाग वंश के राजाओं अथवा मगिद्दों (भूमध्य सागर के मगध) देश से निर्वासित मगी तथा लौह कर्मी भृगु लोगों का शासन रहा होगा।

अकमीनी शासक

मौर्यों के मूल के बारे में अब यह निश्चित हो गया है कि वे कुश देश की राजधानी मेरोई के मूल निवासी थे और इस मेरोई नगर की स्थापना मिस्त्र पर आक्रमण करने वाले अकमीनी शासक कुंबुज्य ने की थी। यह भी प्रमाणित हो चुका है कि हरिहर राजवंश का एक शासक पिय-अंखी (देवत्व को प्रिय) ‘पियी’ कहलाता था। कुश देश का राष्ट्र प्रतीक शेर के मुखौटे पहने उसी प्रकार का था जिसे अशोक ने अपना राजचिन्ह बनाया तथा जो सारनाथ (वाराणसी) के इस मौर्य सम्राट के स्तंभ पर आरूढ़ है।

१६ मार्च २०१५

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