डाकटिकटों और प्रथम दिवस आवरणों में दुर्गा
— पूर्णिमा
वर्मन
हर वर्ष बाल दिवस के अवसर पर भारतीय डाक विभाग द्वारा १४ नवंबर
को पूरे देश में बच्चों के लिये एक कला प्रतियोगिता का आयोजन
किया जाता है। इसमें से चुनी हुई एक कलाकृति को अगले साल
बाल दिवस के विशिष्ट डाकटिकट पर प्रकाशित होने का अवसर मिलता
है।
२००४ में आयोजित इस प्रतियोगिता का विषय था भारत के उत्सव। कक्षा आठ में पढ़ने वाली पल्लवी मजूमदार ने इस अवसर पर
दुर्गापूजा के विसर्जन का जलूस चित्रित किया जिसे २००५ में
बालदिवस के टिकट पर प्रकाशित किया गया। पल्लवी मजूमदार न्यू
अलीपुर, पश्चिम बंगाल के विद्याभारती गर्ल्स स्कूल की छात्रा
है। वह इसके पहले भी देश विदेश के बहुत से पुरस्कार जीत चुकी
है। पाँच रुपये मूल्य वाले इस बालदिवस के टिकट पर दुर्गा की मूर्ति के साथ गाते
बजाते हुए लोगों की एक भीड़ को दर्शाया गया है।
७
अक्तूबर २००८ को भारत के त्योहार नाम से एक प्रथम दिवस आवरण के
साथ तीन टिकट जारी किये गए थे। इन टिकटों में
से एक पर कलकत्ता की
दुर्गापूजा, दूसरे पर मैसूर का दशहरा तथा तीसरे पर दीपावली के
चित्र प्रदर्शित किये गए थे। दुर्गापूजा वाले टिकट में सिंह पर
सवार दुर्गा देवी, महिषासुर और दुर्गा के एक मुखौटे के चित्र
अंकित हैं। पाँच रुपये मूल्य वाले इस टिकट पर नीचे दाहिनी ओर
हिंदी और अंग्रेजी में दशहरा कोलकाता लिखा गया है। इसी प्रकाश
बायीं और दोनो भाषाओं में दुर्गा पूजा अंकित है।
इन टिकटों के साथ प्रकाशित प्रथम दिवस आवरण पर दुर्गापूजा के
प्रतीक मुखौटे, मैसूर के दशहरे के प्रतीक हाथी तथा दीपवाली के
प्रतीक दीपक को अंकित किया गया था। इसके साथ ही उस पर दस सिरों
वाले रावण का मुखौटा, रावण का एक पुतला, बाजे बजाने वाले तथा
जलूस के चित्र भी हैं। इस अवसर पर एक विशेष मोहर भी जारी की गई
थी जिसमें हाथी, दुर्गा का मुखौटे और दीपक के चित्र बने हुए थे। इस
प्रथम दिवस आवरण को
यहाँ देखा जा सकता है।
१४ अक्तूबर २०१३ को गोरखपुर
डाक-विभाग द्वारा टिकटों को पर लगाई जाने वाली एक विशेष मोहर
जारी की गई। इस मोहर पर दुर्गा का मुखौटा बना हुआ था। इस
मोहर को उपरोक्त टिकट और विशेष रूप से तैयार किये गए
आवरण के साथ यहाँ देखा
जा सकता है। मोहर पर अंकित ऊँ और स्वास्तिक के चित्र
दर्शनीय हैं।
११ जनवरी १९८९ को राज्य संग्रहालय
लखनऊ की स्थापना की १२५वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारतीय डाक
विभाग ने एक टिकट जारी किया था जिसमें दुर्गा को सिंह पर आसीन
दिखाया गया है। पाँचवी शताब्दी का ३६ सेमी व्यास वाला उत्तर
प्रदेश के श्रावस्ती जिले (आधुनिक बहराइच) से प्राप्त यह फलक
राज्य संग्रहालय लखनऊ की अनेक सुंदर
कलाकृतियों
में से एक है। इस टिकट के प्रकाशन में डाक विभाग की मदद के
लिये राज्य संग्रहालय लखनऊ के निदेशक डॉ. एस. डी. त्रिवेदी
महत्वपूर्ण योगदान रहा था। ३.३४x२.८८
से.मी. आकार वाले इस टिकट की ४२ टिकटों वाली
१५ लाख शीटें जारी की गई थीं।
१८६३ में स्थापित राज्य संग्रहालय
लखनऊ, उत्तर प्रदेश राज्य का सबसे पुराना संग्रहालय है, जिसे
छोटी छतरमंजिल में छोटे से स्तर पर शुरू किया गया था। १८८४ में
इसे लाल बारादरी में स्थानांतरित किया गया और १९५० में यह अपने
नव निर्मित भवन में आ पहुँचा। १९६३ में इसका विस्तार किया
गया। उस समय पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था। इसके साथ
भारतीय विद्या के अनेक बड़े बड़े विद्वान जैसे आर. डी.
बैनर्जी, पंडित हीरानंद शास्त्री, डॉ. वी.एस. अग्रवाल, डॉ. भगत
शरण उपाध्याय और प्रोफेसर के.डी.बैनर्जी आदि किसी न किसी रूप
से जुड़े रहे हैं। इस
अवसर पर जारी प्रथम दिवस आवरण को यहाँ देखा जा सकता है।
भारत के अतिरिक्त हमारे पड़ोसी देश
नेपाल ने भी दुर्गा पर तीन डाकटिकट जारी किये हैं। पहले दो
टिकट एक से हैं
केवल
रंगों में थोड़ी भिन्नता है। १५ और ५० पैसे वाले ये दोनो
डाकटिकट १७ अक्तूबर १९६९
को नवरात्रि के अवसर पर जारी किये गए थे। इनपर पलांचोक भगवती
लिखा हुआ है। पलांचोक भगवती, दुर्गा
का ही एक रूप है जो शक्ति और पराक्रम से संबंधित है इसीलिये
इसके नाम विजयस्वामिनी और विजय श्री भी हैं। विजय दशमी का पर्व
इस देवी से संबंधित है।
काले पत्थर
में उत्कीर्ण, आभूषणों से सुसज्जित यह तीन फुट ऊँची मूर्ति
शिल्प कला की दृष्टि से अद्वितीय मानी जाती है। कलात्मकता के साथ ही इसका
सांस्कृतिक और
पुरातात्विक महत्व भी है। नेपाल के बागमती अंचल में काठमांडू
से ५५ किलोमीटर उत्तर पूर्व में स्थित, एक पहाड़ी के शिखर पर
स्थित यह मंदिर लिच्छवी वंश के राजा मानदेवल ने अपनी माँ के
अनुरोध पर वर्ष ५०३ में बनवाया था। काठमांडू की सुंदर पहाडियों
में स्थित यह मंदिर नेपाल के पर्यटन में भी महत्वपूर्ण स्थान
रखता है। इन दो टिकटों के साथ एक प्रथम
दिवस आवरण भी जारी किया गया था जिसे यहाँ देखा जा सकता है।
१६
अक्तूबर १९८८ को नवरात्रि के अवसर पर नेपाल ने १५ पैसे का एक
और टिकट जारी किया जिस पर पोखरा की विन्ध्यवासिनी देवी का
चित्र अंकित है। पूरे पोखरा क्षेत्र में यही एक एक मंदिर है जो
नगर के बीचो बीच स्थित है। टिकट के पार्श्व में विंध्यवासिनी
मंदिर का चित्र देखा जा सकता है। विंध्यवासिनी देवी भी दुर्गा
और काली का ही एक रूप हैं और इसे राक्षसों का संहार करने वाली
देवी माना जाता है। इसी नाम से देवी का एक मंदिर भारत में भी
उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले के विंध्याचल नामक शहर में
स्थित है। इस डाक टिकट के साथ जारी
प्रथम दिवस आवरण को यहाँ देखा जा सकता है।
८
मई १९७९ को पूर्वी जर्मनी ने, बर्लिन म्यूजियम में संरक्षित
भारतीय मिनियेचर कला की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के
लिये चार टिकटों का एक सेट जारी किया था। चार टिकटों के इस सेट
में दुर्गा (अठारहवी शती), महावीर (पंद्रहवीं-सोलहवीं शती),
तोड़ी रागिनी (सत्रहवीं शती), और आसावरी रागिनी (सत्रहवीं शती)
के मिनियेचर चित्र प्रकाशित किये गए थे। इनका मूल्य क्रमश: २०,
३५, ५० और ७० मार्क रखा गया था। हर टिकट का आकार ५५x३३
मि.मी. था। चित्र के ऊपर जर्मन भाषा में भारतीय मिनियेचर लिखा
गया है। चित्र के नीचे बायीं ओर दुर्गा लिखा है तथा दाहिनी ओर
बिल्कुल महीन अक्षरों में १८वीं शती लिखा गया है। इसके नीचे
बायीं ओर से प्रारंभ करते हुए डायश स्टेटबिब्लियोथेक बर्लिन
लिखा है जिसका अर्थ है जर्मन राष्ट्रीय संग्रहालय बर्लिन। इसके
नीचे बायीं ओर बड़े अक्षरों में अंग्रेजी के डीडीआर अक्षर हैं
जो पूर्वी जर्मनी की मुद्रा जर्मन मार्क का प्रतीक हैं। २० का
अंक टिकट का मूल्य बताता है और बिलकुल नीचे छोटे अक्षरों में
प्रकाशन वर्ष १९७९ अंकित है।
इस शृंखला
के चारों टिकट यहाँ पर देखे जा सकते हैं।
१५ अक्तूबर २०१५ |