लाओस के डाक टिकटों पर
पौराणिक पात्र
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पूर्णिमा वर्मन
लाओस के एक टिकट पर
सरस्वती
लाओस दक्षिण
पूर्व एशिया में स्थित एक देश है। इसकी सीमाएँ उत्तर पश्चिम
में म्यान्मार और चीन से, पूर्व में कंबोडिया, दक्षिण में
वियतनाम और पश्चिम में थाईलैंड से मिलती है। इसे हजार हाथियों
की भूमि भी कहा जाता है। दक्षिण पूर्वी एशियाई अनेक देशों की
भाँति इसकी संस्कृति भारत के प्रभावित है। दोनों देश प्रचीन
बौद्ध सभ्यता को साझा करते हैं। इसके साथ ही भारतीय देवी
देवताओं की मान्यता भी है। वहाँ अनेक मंदिर हैं जिनमें विभिन्न
देवी देवताओं की स्थापना है।
१९७४ में
लाओस ने तीन डाक-टिकटों का एक सेट जारी किया था जिसमें
सरस्वती, इंद्र और ब्रह्मा को दर्शाया गया था।
ऊपर के चित्र में वीणा, पुस्तक, कमल आदि धारण करने वाली
लाओस की फ्रा स्रातस्वदी वास्तव में माँ सरस्वती ही हैं। माँ
सरस्वती की भाँति ही फ्रा स्रातस्वदी भी संगीत कला और विद्या
की देवी है। लाओस की मुद्रा कीप है। एक सौ अत का एक कीप होता
है। सरस्वती के चित्र वाले इस डाक टिकट का मूल्य एक सौ कीप ऊपर
दाहिनी ओर लिखा गया है। एक रोचक बात यह भी है कि बायीं ओर जहाँ
लाओ भाषा में एक सौ कीप अंकित है वहाँ एक का आकार हिंदी के एक
से काफी मिलता जुलता है।
दाहिनी ओर
दिखाए गए डाक-टिकट में भगवान इंद्र अपने वाहन
ऐरावत पर सवार हैं। ११० कीप के इस डाक-टिकट में ऐरावत
को त्रिमूर्ति का आकार दिया गया है। यह बात भी रोचक है लाओ
भाषा में इंद्र के नाम का
उच्चारण
सुरक्षित बच गया है। हाथ में त्रिशूल और वज्र धारण किये हुए
तीन सिरों वाले इरावन (ऐरावत) पर सवार लाओस के इंद्र भारतीय
पुराण शास्त्र के अनुसार वर्षा के प्रमुख देव हैं।
बायीं ओर
दिखाए गए १५० कीप के डाक-टिकट पर फ्रा
फ्रोम का चित्र है जिसे ब्रह्मा का लाओ संस्करण कहा जा
सकता है। फ्रा स्रातस्वदी उनकी पत्नी हैं। वे भारतीय देवता ब्रह्मा की भाँति
ही
जगत के निर्माता, दयावान और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाले हैं।
वे अष्टभुजाधारी हैं और अपने हाथों में निर्माण के अनेक उपकरण
धारण किये हैं। लाओ संस्कृति के अनुसार वे हंस की सवारी करते
हैं। इसे लाओ में हंग पक्षी कहा गया है। भारतीय देवी देवताओं
की यह उपस्थिति केवल लाओस में ही नहीं थाईलैंड, कंबोडिया जावा,
बाली और श्रीलंका जैसे अनेक दक्षिण पूर्वी देशों में हैं।
वट फू नामक नगर में एक अत्यंत
प्राचीन शिव मंदिर है जो यूनेस्कों की विश्व धरोहर स्थल सूची
में शामिल
है। इसी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण लाओस के डाक टिकटों पर
भगवान बुद्ध, रामायण और महाभारत के अनेक पात्रों के
साथ-साथ भारतीय देवी देवताओं के चित्रों को भी स्थान मिला है।
लाओस
की पौराणिक कथाओं में एक पात्र हैं नखानेत या फुकानेत। कहीं
कहीं उन्हें फुकानेसुअन भी कहा गया है। फुकानेसुअन शब्द
विघ्नेश्वर से काफी मिलता-जुलता है। वे सफलता और सौभाग्य के देवता हैं,
विघ्नों को दूर करते हैं और उनका सम्बंध कला, शिक्षा एवं
व्यापार से है। दाहिनी ओर स्थित ५ फरवरी १९७१ को जारी किये गए डाक-टिकट में,
कलाकार क्य फुंगचलेन ने, इसी देवता को ललित आसन में बैठे हुए चित्रित किया है।
७० कीप के इस डाक-टिकट पर अंकित चित्र
से समझा जा सकता है कि नखानेत भारतीय देवता गणेश ही हैं।
इसी
गणेश चित्र के साथ नव ग्रहों में से एक राहू का भी डाक-टिकट
जारी हुआ था। जिसका मूल्य ८५ कीप
था। नीले रंग के इस सुंदर टिकट पर राहू का चित्र एक राक्षस के
रूप में अंकित किया गया है जिसे सूर्य या चंद्रमा को निगलते हुए दिखाया गया
है। भारत में भी ऐसा माना जाता है कि
जब राहू सूर्य या चंद्रमा को निगल लेता है तब सूर्य ग्रहण या
चंद्र ग्रहण पड़ता है।
लेकिन इससे
यह नहीं समझना चाहिये कि लाओस में केवल इतने ही डाकटिकट
प्रकाशित हुए जिन पर भारतीय संस्कृति की छाप है। लाओस की
पौराणिक कहानियों और गौतम बुद्ध के जीवन चरित पर ढेरों लाओ
टिकट प्रकाशित हुए हैं। कुछ प्रथम दिवस भी इन विषयों पर
प्रकाशित किये गए हैं पर आज के लिये बस इतना ही।
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