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टिकट संग्रह                              



जर्मनी के डाक टिकटों पर पौराणिक पात्र
पूर्णिमा वर्मन
 


भारतीय पुराण और उसमें अंतर्निहित कथाएँ पूरे विश्व को आकर्षित करती हैं। यही कारण है कि अनेक देशों के साहित्य संस्कृति और कला ने इन्हें अपने अपने तरीके से सम्मान दिया है। डाक टिकट भी एक ऐसा ही विषय है जिस पर विदेश में भी भारतीयता की छाप देखी जा सकती है। भारत नेपाल और श्रीलंका के साथ-साथ अनेक एशियाई देशों ने भारतीय पौराणिक पात्रों से अपने डाक-टिकटों को सजाया है। ऐसा ही एक देश है जर्मनी। जब जर्मनी पूर्वी और पश्चिमी दो हिस्सों में था तब पूर्वी जर्मनी ने ८ मई १९७९ में भारतीय मिनियेचर पर चार डाक टिकटों की एक शृंखला जारी की थी।

इसमें पहले डाकटिकट पर देवी दुर्गा का अठारहवी शताब्दी का मिनियेचर चित्र है। चित्र के ठीक नीचे बायीं ओर लिखा है दुर्गा। दुर्गा के ठीक नीचे जर्मन भाषा में लिखा है- स्टाट्सबिब्लिओथेक जु बर्लिन। इसका अर्थ है स्टेट लाइब्रेरी ऑफ बर्लिन। इसके नीचे बड़े अक्षरों में डीडीआर लिखा गया है। इसका अर्थ है डायशे डेमोक्रेटिक रिपब्लिक यानि जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक। दाहिनी ओर चित्र के नीचे चित्र निर्माण का वर्ष लिखा गया है १८ जेएच, जिससे इस बात का बोध होता है कि यह चित्र अठारहवीं शताब्दी में बनाया गया है। इसके नीचे डाक-टिकट का मूल्य है २० फेनिश। जर्मन मुद्रा मार्क को १०० भागों में विभाजित किया गया है। इस छोटे भागों का नाम है फेनिश, यानि १०० फेनिश का एक मार्क होता है। अब दूसरा डाक-टिकट देखते हैं। दूसरे डाक-टिकट पर १५वी-१६वीं शताब्दी में निर्मित मिनियेचर चित्र भगवान महावीर का है और इसका मूल्य हैं ३५ फेनिश। ये दोनो चित्र जर्मनी में स्थित बर्लिन स्टेट लायब्रेरी से लिये गए है।

तीसरे और चौथे डाक टिकटों पर तोड़ी और आसावरी रागों के मिनियेचर चित्रों को स्थान मिला है। ये दोनो मिनियेचर चित्र १७वीं शताब्दी के हैं। तोड़ी रागिनी वाले डाक-टिकट का मूल्य है ५० फेनिश और आसावरी रागिनी वाले डाकटिकट का मूल्य है ७० फेनिश। ये दोनो चित्र जर्मनी में स्थित बर्लिन स्टेट म्यूजियम से लिये गए हैं। यह सभी जानकारी डाकटिकटों के ऊपर दी गयी है। हर डाकटिकट पर नीचे बीच में वर्ष १९७९ अंकित है। राग तोड़ी को शुद्ध तोड़ी या मियाँ की तोड़ी भी कहते हैं। प्राचीन काल से आज तक इसके जितने भी चित्र मिलते हैं उसमें एक गायिका वीणा थामे हुए दिखती है। दो या अधिक हिरन उसके आसपास दिखाई देते हैं। ऐसा विश्वास है कि अगर वास्तव में राग तोड़ी की अवधारणा सही सही कर दिया जाए तो उस स्थान पर हिरण अवश्य आ जाता है। वर्ष १९८७ में जब विश्वविख्यात ख्याल गायक पंडित जसराज संकट मोचन मंदिर के संगीत समारोह में राग तोड़ी प्रस्तुत कर रहे थे पता नहीं कहाँ से एक हिरन आकर संगीत सुनने लगा। इससे रागों और चित्रों के समन्वय और उनकी समझ का परिचय मिलता है।

राग आसावरी के सभी पारंपरिक चित्रों में एक युवती को साँपों से खेलते हुए दिखाया जाता रहा है। कुछ लोगों का मानना है कि वह आकृति एक आदिवासी सपेरा युवती की है, जो साँप के विष से चिकित्सा करने की विधि जानती है। कुछ विद्वानों का यह मानना है कि राग आसावरी गाकर साँप के विष का असर दूर किया जा सकता है। इन बातों में कुछ सच हो सकता है तो कुछ किंवदन्ती भी लेकिन इतना तो निश्चित है कि हमारे विद्वान पूर्वजों को हजारों साल पहले से पशु-पक्षियों की प्रकृति का गहरा ज्ञान था और हमें डाकटिकटों के बहाने ही सही इस बात को फिर से याद करने का अवसर मिल जाता है।

१ जनवरी २०२३

 
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