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						  नवजात 
						शिशु का आठवाँ सप्ताह
 — 
						इला 
						गौतम
 
 
						जटिल 
						संरचनाओं के प्रति आकर्षण
 दो महीने का शिशु अब सिर्फ़ चमकदार या विपरीत रंगों वाली 
						वस्तु पसंद नही करता। अब उसे और अधिक विपरीत और जटिल 
						आकृतियाँ, रंग और आकार वाली वस्तुएँ पसंद आती हैं। शिशु को 
						तरह-तरह की वस्तुएँ दिखाएँ और छूकर महसूस करने दें। 
						प्लास्टिक के बिस्कुट बनाने वाले साँचे, कपड़े या रूई से 
						बनी मुलायम गेंद, और गुदगुदे कपड़े के खिलौने अच्छे चयन 
						रहेंगे।
 
 मेरी आवाज सुनो
 
 शिशु अब एक बेहतर श्रोता बन रहा है और कई आवाज़ों में से 
						परिचित आवाज़ पहचान सकता है। ध्यान दीजिए शिशु कैसे देखता 
						है कि आवाज़ कहाँ से आ रही है। जैसे बता रहा हो कि अब मै 
						आस पास के वातावरण को समझने लगा हूँ।
 लगातार बातचीत (हालाँकि अभी भी एक तरफ़ा) शिशु को अपनी जगह 
						की पहचान को विकसित करने में मदद करेगी। हो सकता है बातें 
						करते समय शिशु आपके मुँह को मोहित होकर देखे कि यह सब कैसे 
						काम करता है।
 
 नोटः यदि शिशु की सुनने के प्रति कोई भी शंका हो तो अपने 
						स्वास्थ विषेशज्ञ को इस बात का ज़िक्र करने में हिचकिचाएँ 
						नही। शिशु की सुनने की शक्ति की जाँच जन्म के समय हो चुकी 
						हो फिर भी बाद में समस्याएँ हो सकती हैं।
 
 सहयोग की आवश्यकता
 
 
  अस्त-व्यस्त 
						पहला महीना खत्म ह चुका है। अब शिशु की दिनचर्या भी 
						अपेक्षाकृत नियमित हो गयी है। यदि शिशु का पालन केवल 
						माता-पिता कर रहे हैं तो बहुत ज़रूरी है कि दोनो मै से जो 
						भी उसकी नियमित देखभाल नहीं करता है वह भी शिशु के साथ 
						अकेले नियमित समय बिताए जैसे उसे नहलाए, कपड़े या नैपी 
						बदले, या उसकी दूसरी ज़रूरतों से परिचित हो जाए।
						यदि माँ शिशु के साथ अकेले रहती है तो आवश्यक है कि 
						वह एक और बड़े व्यक्ति की मदद ले जैसे नानी, चाची, मौसी, 
						जो बच्चे के साथ वक्त बिता सके। इससे शिशु को माँ के अलावा 
						दूसरे प्यार करने वाले वयस्क व्यक्तियों से सम्बंधित होने 
						का मौका मिलेगा और माँ को भी एक आवश्यक अन्तराल मिलेगा। 
 दूर होने का दर्द
 
 माँ जब पहली बार बच्चे से अलग होती है, चाहे कुछ घंटों के 
						लिए हो या पूरे दिन के लिए, तो यह उसके लिए एक बहुत ही 
						भावुक अनुभव होता है। यह वियोग शिशु से ज़्यादा माँ के लिए 
						कठिन होता है। माँ को दुख होता है और वह स्वयं को दोषी 
						मानने लगती है। इस स्थिति को बेहतर रूप से संभालने के लिए 
						माँ कुछ तरीके अपना सकती है।
 
 पहले कुछ दिन तक शिशु को एक या दो घंटे के लिए पिता या घर 
						के किसी बड़े सदस्य के पास छोड़ कर बाहर जाएँ। इससे माँ और 
						शिशु दोनो को आदत पड़ेगी कि माँ जाकर वापस आ जाती है। इस 
						उम्र में जब माँ शिशु की आँखों के सामने से चली जाती है तो 
						वह शिशु के दिमाग से भी निकल जाती है। इसलिए शिशु घर के 
						किसी भी व्यक्ति के साथ खेलने में मग्न हो जाता है। माँ जब 
						यह देखेगी कि उसके जाने पर भी शिशु परेशान नही है तो उसे 
						तसल्ली मिलेगी और वह शिशु को अगली बार छोड़कर जाते समय कम 
						चिंतित रहेगी।
 
 यदि शिशु परिचित लोगों के बीच एक परिचित वातावरण में रहेगा 
						तो माँ को तसल्ली रहेगी और शिश भी खुश रहेगा। माँ को शिशु 
						की देखभाल करने वाले व्यक्ति से अनुरोध करना चाहिए कि वह 
						शिशु को उसकी नियमित दिनचर्या पर ही रखे। इससे शिशु विचलित 
						नही होगा और माँ को भी पता रहेगा कि किस समय शिशु क्या कर 
						रहा होगा।
 
 
  माँ 
						को घर से निकलते समय ज़रूरी फ़ोन नम्बर की एक सूची बनानी 
						चाहिए जिसमें शिशु के डॉक्टर का नम्बर और माँ जहाँ जा रही 
						है वहाँ का नम्बर (यदि माँ का मोबाइल फ़ोन न लगे) भी 
						शामिल होना चाहिए। यह सूची शिशु की देखभाल करने वाले 
						व्यक्ति के पास सुरक्षित रहनी चाहिए। शिशु को हमेशा अलविदा 
						कह कर जाएँ। विदाई हमेशा बिना रोए और संक्षिप्त रखें। वापस 
						आकर आपके पास शिशु के साथ बिताने के लिए बहुत समय रहेगा। 
 याद रखें, हर बच्चा अलग होता है
 
 सभी 
						बच्चे अलग होते हैं और अपनी गति से बढते हैं। विकास के 
						दिशा निर्देश केवल यह बताते हैं कि शिशु में क्या सिद्ध 
						करने की संभावना है - यदि अभी नही तो बहुत जल्द। ध्यान 
						रखें कि समय से पहले पैदा हुए बच्चे सभी र्कियाएँ करने में 
						ज़्यादा वक्त लेते हैं। यदि माँ को बच्चे के स्वास्थ 
						सम्बन्धित कोई भी प्रश्न हो तो उसे अपने स्वास्थ्य केंद्र 
						की सहायता लेनी चाहिए।
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