| जनवरी का पहला 
                      दिन नएपन के उल्लास और अहसास के साथ 
                      शुरू होता है। उपहारों और अभिनंदन पत्रों से गरमाया हुआ 
                      सिलसिला आज ठहर-सा जाता है या यों 
                      कहें कि पराकाष्ठा को पहुँच जाता है।
                      
                       यों तो उपहार और शुभकामनाएँ 
                      हर उत्सव का एक ख़ास हिस्सा है पर 
                      अभिनंदन पत्रों की बात ही कुछ और है। कोई भी उत्सव या अवसर 
                      इनके बिना अधूरा है। अभिनंदन पत्रों का यह रिवाज़ ज़्यादा 
                      पुराना नहीं। काग़ज़ 
                      पर छपा हुआ पहला अभिनंदन पत्र सर हेनरी कोल की प्रेरणा से 
                      प्रसिद्ध चित्रकार जे सी हार्सले ने १८४३ में बनाया था। 
                       
                      (चित्र ऊपर) हेनरी कोल एक लेखक और कला समीक्षक थे और जेम्स हार्सले एक 
                      चित्रकार। कला और साहित्य के इस सुंदर 
                      समन्वय के साथ व्यापार का संयोग किया जोसेफ कन्डैली 
                      ने।  क्रिसमस भोज के एक सुंदर 
                      चित्र वाले इस क्रिसमस कार्ड का आकार एक सामान्य पोस्टकार्ड 
                      जैसा था। इसे अंगूर की लताओं 
                      से तीन भागों में बाँट दिया गया था। 
                      बायीं ओर ग़रीबों को भोजन वितरित करने का दृश्य था और दायीं 
                      ओर कपड़े दान करने का। बीच मे एक सम्पन्न अंग्रेज़ परिवार के 
                      क्रिसमस भोज का दृश्य चित्रित किया गया था। इसके नीचे 
                      अंग्रेज़ी में क्रिसमस का शुभकामना संदेश अंकित था। 
                       इस रंगीन अभिनंदन पत्र की 
                      १००० प्रतियाँ लिथोग्राफ पद्धति से 
                      छाप कर इंग्लैंड की ओल्ड बांड स्ट्रीट पर कंडैली 
                      की दूकान ''फेलिक्स समरलेज़ होम 
                      ट्रेजरीज़ आफ़िस'' 
                      पर एक शिलिंग मूल्य में बेची गईं 
                      थीं। इसके थोड़े दिनों बाद १८७५ 
                      में जर्मनी के उद्योगपति बोस्टन लुई ने अमरीका में अनेक 
                      प्रकार के अभिनंदन पत्र बना कर इस प्रचलन को जन-जन 
                      में लोकप्रिय बना दिया। 
						१ जनवरी 
						२००१ |