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रूमाल का इस्तेमाल
गृहलक्ष्मी


रूमाल जो नज़ाकत का प्रतीक है, जो भावनाओं को अपनी सुकोमल तहों में समेट लेता है, जो हर घर और हर अवसर की शोभा है, क्या आपने कभी उसके दिल में झाँकने की कोशिश की है? देखने में तो यह कपड़े का नन्हा-सा टुकड़ा भर है लेकिन इससे नाक साफ़ करने से लेकर उपहार में देने तक सारे काम लिए जाते हैं!

रूमाल का इस्तेमाल कब शुरू हुआ कोई नहीं जानता। कहते हैं ईसा से २०० वर्ष पूर्व जब रोम के रईस लोगों ने रूमाल का इस्तेमाल शुरू किया, इसकी कीमत बहुत ज़्यादा थी। उस समय इसे वहाँ 'मुडेरियम' कहा जाता था और इससे भौहों का पसीना बड़ी नज़ाकत से पोंछा जाता था। 'मुडेरियम' का अर्थ ही था पसीना पोंछने का कपड़ा। प्रतिष्ठित लोगों के स्वागत में इसे हिलाया जाता था। तलवार के द्वन्द्व युद्ध में भी इसे हिलाकर विजय-पराजय का संकेत दिया जाता था। ये सभी रूमाल काफी कीमती होते थे लेकिन जैसे ही वहाँ विदेशों से रूमाल आयात किये जाने लगे, अमीर गरीब सभी रूमाल का इस्तेमाल करने लगे।

अंग्रेज़, रिचर्ड (१३६७ से १४०० ई.) को रूमाल का आविष्कारक मानते हैं। इस अंग्रेज़ शासक का जन्म फ्रांस में हुआ था और १३९६ ई. में फ्रांस की राजकुमारी से इनका विवाह हुआ। कलात्मक रुचि वाले इस शाही दम्पत्ति को पोंछने के काम में लाए जाने वाले तौलिये पसन्द नहीं आते थे।

उस समय के राजसी तौलिये काफी भारी भरकम हुआ करते थे जिससे न केवल इस्तेमाल करने वाले को असुविधा होती थी बल्कि नौकर भी झुँझलाया करते थे। एक दिन राजा ने अपनी कल्पना का सहारा लेकर इन तौलियों के छोटे-छोटे टुकड़े कर देने का आदेश दे डाला। बस तभी से रूमाल का इस्तेमाल शुरू हो गया।

आजकल रूमाल का इस्तेमाल इतना बढ़ गया है कि कुछ स्कूलों में इसे सीने पर टाँकना ज़रूरी कर दिया गया है। पुरुषों के सूट की जेब में इसे कलात्मक रूप से सजाया जाता है और महिलाएँ अपने पर्स में साड़ी से मैच करता रूमाल रखती है। सर्दी जुकाम होने पर तीखी खुशबू वाला तेल डालकर सूँघने के काम में भी रूमाल आता है और सिर दर्द के समय सिर में बाँधने के भी।

सुँघनी या नस्वार का इस्तेमाल करने वाले इसमें तम्बाकू बाँधकर रखते हैं ताकि कपड़ों पर धब्बे न लगें। एक-दूसरे के घर मिठाई या उपहार भेजते समय भी रूमाल प्लेट या थाली को ढँकने के काम आता है। मुगल काल में खाने की बड़ी तश्तरियाँ जरी के काम के बड़े रूमालों से ढकी जाती थी आज भी यह प्रथा थोड़ी रद्दोबदल के साथ जारी है।

सत्रहवीं शती में जब महिलाएँ बटनों से सजे रूमाल 'कोर्ट शिप' के समय अपने प्रेमियों को देती थी तब इन्हें प्रेम का प्रतीक समझा जाता था। आज भी हाथ से कढ़े रूमाल प्यार के तोहफ़े के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। कहीं-कहीं रूमाल को उपहार में देना अपशकुन भी मानते हैं। उनका विश्वास है कि ऐसा करने से दोस्ती दुश्मनी में बदल जाती है। कढ़ाई सीखने के लिए लड़कियाँ शुरुआत अकसर रूमाल से ही करती हैं और आज भी कोई बात याद करने के लिए लोग रूमाल में गाँठ लगाते हैं।

 
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