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दो पल

रास्ते में रुकावट
-अश्विन गांधी

करीब एक साल पहले की बात है, क्रिसमस की छुट्टियां थीं। दोस्त के परिवार से मिल कर घर आ रहा था कि रास्ते में रुकावट हो गई... घटना सच है, मगर दोस्तों के नाम और स्थान बदले हुए हैं। क्रिसमस फिर आने को है, सोचा, अपनी रुकावट, क्यों ना अभिजनों से बाँट लूँ?
ये रही मेरी रुकावट...

मंगलवार, साल १९९९, दिसंबर की २१ तारीख...

दोपहर के एक बजे युनिवर्सिटी का ऑफिस छोड़ा, रास्ते में एक स्टोर से कुछ खाने का सामान खरीदा और दो बज़े घर आ गया। आन्सरिंग मशीन की लाल बत्ती टिमटिमा रही थी। राज का संदेश था। सुबह मैंने राज को ई-मेल भेजी थी और सूचित किया था कि पब में मिले। तुरंत फोन किया। शाम को पाँच बजे मकमास्टर पब में मिलेंगे और फिर राज के घर भोजन होगा।

मकमास्टर पब अभी भरा सा नहीं था। राज ने रेड वाइन का गिलास मँगवाया, मैंने बीयर का। बहुत समय के बाद राज से मुलाकात हो रही थी। बहुत सी बाते करनी थी। मेरा पहला बीयर जल्दी से खतम हो गया, मैं ने दूसरा मँगवा लिया।

राज और मेरी दोस्ती करीब पंद्रह साल से है। राज की अंतिम पोज़ीशन युनिवर्सिटी में प्रेसीडेंट की थी और हाल ही में रिटायर होने के बाद मिलना और भी मुश्किल सा हो गया था। राज को पाँव फैला कर आराम करते हुए कभी नहीं देखा, मगर आज कल राज की दौड़ और भी बढ़ गयी थी। जो जनसेवा करना चाहता है और जिनके पास अनुभव व कुशलता है, उसकी मांग हर जगह होती है। राज को सिगरेट का धुआँ सता रहा था, हमने अपने गिलास उठा लिये और नॉन–स्मोकिंग कोने में चले गये।

"आप तो बहुत ही अच्छे दिखाई दे रहे हैं, राज... क्या यह जनसेवा की दौड़ का कमाल है?" मैने मुस्करा कर पूछा।
राज के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और बोले, "अगले महीने मैं लायन्स क्लब का प्रमुख पद छोड़ रहा हूँ।"
"ये तो बहुत ही अच्छी बात है, हम शायद जल्दी मिल सकेंगे।"
"लायन्स के बोर्ड की मेम्बरशिप जारी रहेगी, मगर अभी कलौना शहर की काउन्सिल में भी काम करना होगा।"
"सिटी काउन्सिल? क्या उसके लिए चुनाव नहीं होते ?"
"मालूम नहीं? मैं अभी–अभी सिटी काउन्सिल में चुना गया। इसका मतलब ये है कि तुमने अपना मत किसी को नहीं दिया! मुझे फोन करना चाहिये था, एक वोट और मिल गया होता... "
"लगता है, अगर अभी कोई मेरी सिटिजनशिप की परीक्षा ले तो मैं फेल हो जाऊँगा। न मैं कलौना का अखबार लेता हूँ, और न टी.वी. पर लोकल न्यूज देख पाता हूँ!... अपनी प्रोविन्स के अगले इलेक्शन कब होंगे ?"
"शायद एक साल के आसपास। क्या लगता है, कौन जीतेगा अगली बार?"
"मुझे तो लगता है, 'लिबरल्स' आ जायेंगे। राज, अगर तुम 'लिबरल्स' की ओर से खड़े हो जाओ मैदान में, अपने प्रोविन्स की कैबिनेट में आ जाओगे, शायद एज्युकेशन मिनिस्टर की जगह पर!"

राज के चेहरे पर मुस्कान दिखाई दे रही थी। कितना सुन्दर विचार...

राज के घर पहुँचे, शाम के साढ़े छे बजे होंगे। सब को नमस्कार किया। राज की पत्नी कृष्णा खाना पका रही थीं। शम्मी और शशि, राज के दो बेटे, भी हाजिर थे। दोनो बेटे भी मेरे अच्छे दोस्त हैं। शम्मी ने मेरे लिये एक बीयर हाज़िर कर दिया, मैंने खुशी से स्वीकार कर लिया।

"यहाँ कैसे? पता लगा कि आप आज कल फैमिली सिटिंग पसंद नहीं करते।" शम्मी ने बात शुरू की।
"शम्मी, तुम्हारे पिताजी भी मेरे दोस्त है। हम एक दूसरे से ई-मेल से बातचीत करते रहते हैं। आज हम पब पर मिले और फिर ये मुझे भोजन के लिए घर खींच लाये।

शशी अपनी पत्नी प्रिया का इंतजार कर रहा था। शशी और प्रिया, जब काम पर जाते तब अपने छोटे बच्चे को कृष्णा की देखभाल में छोड़ जाते। घर भरा भरा सा लग रहा था। शाम सुहानी थी और सब खुशी खुशी नाच गा रहे थे।

शशी ने मेरा गिलास खाली देखा, फिर से एक बीयर हाजिर कर दिया और फिर से मैंने स्वीकार कर लिया। गिलास फिर से खाली होने लगा। कृष्णा की पुकार पड़ी, और साढ़े आठ बजे, जो भी हाज़िर थे, खाना खाने बैठ गए। मेरा गिलास खाली देख कर शम्मी एक बार और बीयर ले आया। इस दफे मैं ने अस्वीकार कर दिया। खाना बहुत ही स्वदिष्ट था, पूरे का पूरा शाकाहारी भोजन, और मेरी पसन्द का। डट के खाने की इच्छा तो हो रही थी, मगर ऐसा किया नहीं। आज कल पुराने पतलून कमर पर ठीक से बंंद नहीं होते थे। शाढ़े नौ बजे घर जाने की इजाज़त ली।

जाने से थोड़ी देर पहले, घर के बाहर सिगरेट का कश लेते हुये शम्मी ने सूचित किया कि घर में नीचे एक खाली बिस्तर है, अगर मैं अभी ड्राइव कर के घर जाना नहीं चाहता। हंस कर मैं ने जवाब दिया, "दो तीन बीयर से क्या होगा। इस रास्ते पर कई ऐसे ड्राइवर हैं जोे बिना नशे भी बुरी तरह ड्राइविंग करते हैं। मैं? अगर थोड़ा नशा है तो मैं ज़ादा सावधानी से गाड़ी चलाता हूँ और देखो, अभी तक मेरे ड्राइविंग रेकॉर्ड में कोई दाग नहीं..."

स्प्रींगफील्ड रोड से घर की ओर गाड़ी आराम से जा रही थी। सुनसान अँधेरा रास्ता। करीब १० बजे होंगे। अचानक दूर से रास्ते के बीच कुछ रोशनी नज़र आने लगी। रास्ते में रुकावट? पुलिस ने स्टफन्ड रोड के नज़दीक घेरा डाला था।

गाड़ी धीमी करते हुए मैं घेरे के बीच रूक गया। बढ़िया युनिफॉर्म पहने हुए एक पुलिस ऑफिसर नजदीक आया। मैं ने गाड़ी की खिड़की नीचे उतार दी।
"सर, आपने आज कोई ड्रिंक लिये हैं?"
"हाँ, खाने के पहले एक दो बीयर लिये होंगे।" मैं झूठ नहीं बोला, मगर साफ–साफ जवाब भी नहीं दिया।
"पब से आ रहे हैं?"
"नहीं, मैं अपने दोस्त के घर गया था।"
"खाने के साथ वाइन लिया था?"
"नहीं, खाने के साथ मैं ने कोई ड्रिंक्स नहीं लिये थे।"
"ठीक है, आप अपनी गाड़ी यहाँ पार्क कर दीजिए।"

मुझे कहीं जाने की जल्दी नहीं थी, ना मुझे पता था कि आगे क्या होने वाला है। मैं ने बहुत ही शांत अवस्था से जहाँ बताया वहाँ गाड़ी पार्क कर दी।
"अपना ड्राइिवंग लायसन्स दिखाइये।"

बारी बारी सब जेबों की जाँच कर ली। शायद एक मिनट गुजरा होगा प्लास्टिक का फोल्डर हाथ लग गया जिसमें मैं ने सब कार्ड रखे थे। फोल्डर को लायसन्स दिखे इस तरह रख दिया और ऑफिसर को दिखाया।
"बाहर निकाल कर दीजिए, प्लीज।" ऑफिसर मेरा लायसन्स ले कर अपनी पुलिस कार की ओर चल दिया, और दो मिनट में लौटा।
"आप अपनी गाड़ी से बाहर निकल जाएँ, प्लीज।"

कोई फिक्र नहीं। अभी तक मुझे पता नहीं था कि आगे क्या होने वाला है। अगर कोई तरकीब वाले प्रश्न पूछेंगे तो जवाब दे सकूँगा। अगर सीधा, कचड़े बिना, चलने को बोलेंगे तो वो भी कर सकूँगा। मैं अपनी मानसिक अवस्था अच्छी महसूस कर रहा था।

"ये मशीन है जिसको बोलते है, ब्रीद–एनेलाइजर। जब आप उस में फूँक मारेंगे तब मशीन बतायेगी कि आप के शरीर में कितना अल्कोहल हैं।"

आफिसर ने मुझे मशीन के बारे में समझाया और यह भी बताया कि अल्कोहल की कहाँ तक मात्रा स्वस्थ समझी जाती है। ऑफिसर ने एक नयी प्लास्टिक की टयूब मशीन पर लगा दी। मशीन मेरे लिये तैयार हो गया।

"जोर से अंदर साँस लो, फिर जोर से फूँक मारो।" जैसे ऑफिसर ने बताया वैसा मैने कर दिया। चंद घड़ियां गुजरी होगी, पर ऐसा लग रहा था कि बहुत ही लंबा समय गुजर गया। सोचने लगा कि ये मशीन क्या सोच रही होगी, क्या गिनती कर रही होगी? आखिर में मशीन ने अपनी राय बता दी। छोटी–सी ख़िड़की में लाल अक्षरों में लिखा था, 'वॉर्न'।

"आप मिनिमम लिमिट से ऊपर हैं। आप का लायसन्स चालीस घंटे के लिये ज़प्त किया जायेगा।" अभी यह मेरे लिये कुछ ताजा खबर थी। फिर भी न जाने क्यों यह सुन कर कोई भारी सदमा–सा महसूस नहीं हुआ।

"आप मेरे साथ उस पुलिस कार में चलिए, मुझे और कुछ पूछताछ करनी होगी। अपने साथ कार के इन्श्योरेन्स और रजिस्ट्रेशन के कागज़ात भी ले कर आइये।" ऑफिसर ने मुझे अगले कदम का मार्गदर्शन दिया।

ऑफिसर ने पुलिस कार के फोन से कलौना हेड ऑफिस को मेरी जानकारी देना शुरू किया। मेरा ड्राइव्हर लायसन्स नंबर दिया, और बोला कि चौबीस घंटे जप्त किया जायेगा। मेरा नाम, पता और जन्मतिथि देते हुए बीच बीच में मुझसे पूछा कि ठीक हैं या नहीं। मैने सब जवाब ठीक ठीक दिये और सोचने लगा कि यह ऑफिसर अभी चकित रह जायेगा अगर मैं उसे अंग्रजी अल्फाबेट अंत से शुरू तक सुना दूँ।

"आप को अपना लायसन्स चालीस घंटे के बाद हेड ऑफिस पर वापिस मिल जायेगा। अरे हाँ, ऑफिस तो कल इस समय पर बंद होगा, आपको बारह घंटे, सुबह तक ठहरना पड़ेगा।"
"मेरी कार का क्या होगा?"
"आप तो अभी चला नहीं सकते! कार 'टो' हो जायेगी।"
"यह 'टो'का कितना खर्चा होगा मुझे?"
"मालुम नहीं। शायद पचास डॉलर्स हो सकता है।"
"क्या मैं अपने दोस्त राज को फोन कर सकता हूँ? शायद वह मेरी मदद कर सके।"
"क्या वो यहाँ रटलैंड में रहता है? ये टो बचाने के लिये आप को दो ड्रायवरों की जरूरत होगी, दोनों में से किसी को नशा नहीं होना चाहिय और दोनो को यहाँ अलग अलग कार में आना जरूरी होगा। ठीक है, आप फोन कर सकते हैं।"

मैं ने राज को फोन किया। अपने को शाबाशी दी कि राज का फोन नम्बर झट से याद आ गया। परिस्थिति का बयान किया, और राज ने कहा कि वो कुछ ही मिनिटों में आ कर मिलता है।

ऑफिसर हमारी बात सुन रहा था, उसे कुछ ठीक सा नहीं लगा। शायद मैं रात का अंतिम ग्राहक था और वह मुझे बंद कर के घर जाने की जल्दी में था या तो फिर एक ग्राहक के लिये इतना रूकना उसे पसंद नहीं था।

"देखिये, मैं पंद्रह मिनिट से ज्यादा नहीं रूक सकता। आप चाहें तो अपने दोस्त को फिर से फोन कर दीजिये।"

मैं ने राज को फिर से फोन किया। राज ने कहा कि वह पाँच मिनट में आ रहा है। इस दरम्यान राज ने अपने बेटे शशि को फोन कर के 'रुकावट' की जगह पर तुरन्त आने को बोल दिया था।

पुलिस कार में, ऑफिसर और में बैठे रहे — राज और शशि के इंतज़ार में।
"ये राज का नाम जाना–पहचाना मालूम होता है।" ऑफ़िसर ने बात शुरू की।
"शायद आप जानते होंगे उन्हें, वो अभी–अभी सिटी काऊन्सिल में चुने गये हैं।" जो बात आज ही राज के मुँह से सुनी थी वो बता दी।
"हाँ, शायद मै ने अखबार में पढ़ा होगा। आप क्या काम करते हैं?"
"मैं अपनी युनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूँ।"
"कौन से डिपार्टमेंट में हैं?"
"कम्प्यूटर सायन्स।" ऐसा लगा कि यह सुन कर ऑफिसर का मेरी ओर आदर बढ़ गया।
"किताने साल कलौना में हो?"
"सत्रह साल हो गये युनिवर्सिटी के साथ। मैं जब कलौना १९८३ में आया तब यह युनिवर्सिटी छोटा सा कॉलेज थी।"
"कुक रोड़ पर रहते हैं आप? वो तो मिशन एरिया में हैं। एक समय में मैं वहाँ लाफ्रांको रोड पर रहता था।" ऑफिसर बातें करने लगा, एक दोस्त की भाँति।

"हाँ, लाफ्रान्को बहुत ही सुन्दर रास्ता बन गया है। मैने जवाब दिया। इसी दरम्यान दूसरा ऑफिसर हमारी ओर आया और मुझे बताया कि ये सिर्फ वॉर्निंग दी गयी है, कोई दंड नहीं और कार के इन्श्योरेन्स पर इससे कोई असर नही होगा। सुन कर ऐसा लगा कि ये शाम, ये रात, इतनी बुरी भी नहीं!

राज और शशि घटनास्थल पर आ पहुँचे। दो नशे–मुक्त ड्राइवर अपनी अलग अलग कार में। शशि एक सफल व्यवसायी हैं और वो अपनी नयी लेक्सस कार में आया। राज ने कुछ फॉर्म साईन कर दिये ताकि मेरी कार का कब्ज़ा उसे मिल जाये। मैने अपनी कार की चाबी राज को दे दी। तय हुआ कि राज अपनी कार 'रुकावट' पर छोड़ देगा। मेरी कार ड्राइव कर के मेरे पास पहुँचायेगा, मैं शशि के साथ शशि की कार में घर पहुँचूँगा। राज और शशि फिर साथ में घटनास्थल पर आयेंगे राज की कार लेने के लिये। क्या प्लान बन रहा था! मेरे दो दोस्त, बाप और बेटा, मेरी मदद में...

शशि के साथ घर जाते समय कुछ बातें याद आ गयीं। शशि, जब दस साल पहले, टोरान्टो से कलौना अपना नया व्यवसाय शुरू करने आया था तब मेरी सिफारिश चाहिये थी। शशि के ड्राइविंग रेकॉर्ड में कुछ तकलीफ थी, शायद उसे भी कोई पुरानी 'रास्ते की रुकावट' सता रही थी। जब सिफारिश देने का समय आया था मैंने सकारात्मक और दार्शनिक रूप में गवाही दी थी। आज जगह बदल गई थी, शशि मेरी सिफारिश कर रहा था।

और एक साल पहले मैं और शशि किसी पब से घर वापस आ रहे थे, हम लोगों ने एक या दो ड्रिंक्स लिये होंगे, मैं अपनी कार चला रहा था और शशि बाजू में बैठा था। उस समय भी 'रास्ते में रुकावट' हो गई थी। मैंने ऑफिसर को बताया था कि मैं ने पब पर एक ड्रिंक ली थी। अफसर ने मेरी बात मान ली थी, किसी मशीन में फूँकने वूँकने को नहीं बोला था और मुझे जाने दिया था। उस समय मैने शशि को बताया कि मैं नाराज़ नहीं कि मुझको रोका, मुझे कनेडियन पुलिस के प्रति आदर है और आखिर में ये सब 'रुकावट' जनता की सुरक्षा के लिये तो हो रही है। शशि ने उस समय मुझसे कोई बहस नहीं की थी, मगर ऐसा लगा कि शायद शशि के खयाल पुलिस के बारे में इतने ऊँचे नहीं थे।

"शशि आज मैं झूठ नहीं बोला, मैं नाराज़ नहीं था। अपनी पुलिस के प्रति मेरा आदर अब भी है और ये 'रुकावट' की तकलीफों के बाद भी मुझे अच्छा सा महसूस हो रहा है।" शशि अपनी ड्राइविंग में ध्यान देता रहा, और फिर से इस बात पर बहस करने का मौका जाने दिया।

हाँ, जरूर, इस बार मैं हल्के से दंड से छूट गया। सोचने लगा, क्या मेरे भव्य विचार इतने भव्य रहते अगर मुझे जेलखाने जाना पड़ता। मेरी फोटो खींची गई होती और अँगुलियों के निशान लिये गये होते? बेहतर यही है कि मैं खुद को ऐसी परिस्थिति में ना डालूँ जहाँ मेरे भव्य विचारों की फिर कसौटी हो!

यह घटना सब के सामने प्रस्तुत करने से पहले मैने सोचा, क्यों न कुछ नज़दीकी मित्रों की राय ले लूँ! एक दोस्त ने बताया, जो मेरी सेहत की फ़िक्र कर रहा था कि मैं गंभीर बात को हल्के रूप में प्रस्तुत कर रहा था। मुझे अपने से ज्यादा नाराज होने की जरूरत थी, और ऐसा सोचना मेरी गलती थी कि थोड़े–बहुत नशे के साथ भी मैं दूसरों से बेहतर ड्राइविंग कर सकता हूँ।

मैंने वही लिखा जो मैने महसूस किया, मगर मैं अपने दोस्त की राय से भी सहमत हूँ।

१५ दिसम्बर २०००

 
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