कलम गही नहिं हाथ
पर्वों का मौसम
पर्वों का सुहाना मौसम, श्रद्धा और विश्वास
से भरी अर्चनाएँ और शुभकामनाओं के दौर- ऐसे में कुछ नये की बजाय कुछ
पारंपरिक फिर से दोहरा लेना अच्छा लगता है। कुछ ऐसा जिसे हम व्यस्तता की
दौड़ में देख नहीं पाते, कामों के बोझ में याद नहीं रख पाते। इसी लिए तो
पर्व और उत्सव आते हैं कि हम वह सब दोहरा सकें जो हमारे पूर्वजों ने हमें
संस्कृति की धरोहर के रूप में हस्तांतरित किया है।
आज की ईमेल में एक सारगर्भित संदेश है-
दशहरा अथवा विजयदशमी एक बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। राम ने इस
दिन आततायी रावण का वध किया था। कौन था वह रावण और क्या तात्पर्य है रावण
के वध से? आज के संदर्भ में देखें तो रावण भ्रष्टाचार, शोषण, आतंक
तथा अन्य बुराइयों का प्रतीक है। रावण-दहन का अर्थ है बुराइयों पर विजय
अथवा उनकी समाप्ति का संकल्प। इन बुराइयों का वाहक व्यक्ति भी हो सकता है
और समाज और व्यवस्था भी।
रावण का एक नाम है दशानन या दशमुख अर्थात दस
मुखों वाला। किसी आदमी के तो दस सिर हो नहीं सकते अत: यह भी एक
प्रतीकात्मक शब्द ही है जो रावण के वास्तविक स्वरूप या अर्थ को प्रकट
करता है। व्यक्ति की पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँच कर्मेंद्रियाँ हैं।
इन्हीं दसों इंद्रियों से सदैव निरंकुश भोग करने वाला ही वास्तव में
दशानन अथवा रावण है। रावण प्रतीक है निरंकुश भोग का तथा रावणदहन का
निहितार्थ है अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण द्वारा संयम करना।
इंद्रियों का स्वामी है मन अत: मन पर नियंत्रण द्वारा ही वास्तविक विजय
संभव है। मन पर नियंत्रण का अर्थ भावों कर दमन नहीं अपितु उनका परिष्कार
करना है। ध्यान-साधना द्वारा मन का स्थिर होना और भावों का परिष्कार संभव
है। मन की सकारात्मक वृत्ति द्वारा ही हम आंतरिक और बाहरी शत्रुओं को
स्थायी रूप से जीत कर निर्द्वन्द्व जीवन व्यतीत कर सकते हैं जो सुखी और
सफल जीवन का सूत्र है।
राम-रावण युद्ध से पूर्व विभीशण चिंतित होकर राम से पूछते हैं कि न तो
आपके पास रथ है और न तन की रक्षा के लिए कवच और न जूते ही तब रथ पर सवार
बलवान वीर रावण को कैसे जीता जाएगा? राम कहते हैं कि जिस से विजय होती है
वह दूसरा ही रथ होता है और उस रथ की व्याख्या करते हुए राम कहते हैं :
अमल अचल मन त्रोन समाना।
सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
अर्थात संसार रूपी युद्ध को जीतने के लिए निर्मल और स्थिर मन तरकश के
समान है। मन का वश में होना तथा यम और नियम ये बहुत से बाण
हैं। इनके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं। यही वास्तविक विजय है और इसी
में निहित है विजयदशमी का यथार्थ संदेश।
सीताराम गुप्ता द्वारा भेजा गया यह संदेश सालभर आशीष की वर्षा करे इसी
मंगल कामना के साथ...
पूर्णिमा वर्मन
२८ सितंबर २००९
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