| 
          कलम गही नहिं हाथ   
          
  
            
            
          'जिस लाहौर...' की बीसवीं 
          वर्षगाँठ 
          हिंदी रंगमंच का अत्यन्त चर्चित नाटक ‘जिस लाहौर नहीं वेख्या ओ जन्म्याइ नइ’ इस वर्ष अपनी बीसवी 
          वर्षगाँठ मना रहा है। पंजाबी भाषा में दिए गए इस नाटक के शीर्षक का अर्थ 
          है कि ‘जिसने लाहौर नहीं देखा उसका जन्म ही नहीं हुआ’। नाटक में 
          हिन्दू परिवार की एक ऐसी महिला की कहानी है जो विभाजन के समय अपने लाहौर 
          के घर में 
          अकेली रह जाती है। लेखक ने नाटक को केवल मानवीय त्रासदी तक सीमित 
          नहीं किया है, बल्कि दोनों समुदायों के मनोविज्ञान को समझने का प्रयास 
          किया है, जिससे स्पष्ट होता है कि दोनों समुदायों के बीच ऐसा क्या घटित हुआ कि 
          सांस्कृतिक एकता, मोहल्लेदारी, प्रेम, विश्वास और भाईचारा समाप्त हो गया 
          था। इस बात को भी दर्शाया गया है कि समाजविरोधी तत्व किस तरह से धर्म का फायदा 
          उठाते हैं। इसके साथ ही पात्रों का विकास तार्किक है तथा नाटक में पंजाब और लखनऊ की 
          संस्कृतियों का मानवीय स्तर पर समागम अत्यंत संवेदनशील है।
 भारत के प्रसिद्ध लेखक असगर वजाहत के इस नाटक के अब तक डेढ़ हजार सफल 
          प्रदर्शन हो 
          चुके हैं। इस वर्ष इस नाटक के बीस वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में इसके विश्वव्यापी 
          प्रदर्शन का प्रारंभ शुक्रवार चौदह अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस 
          तथा पंद्रह अगस्त को भारत के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर वाशिंग्टन के 
          कैनेडी सेंटर से हुआ, जिसके टिकट प्रदर्शन के काफ़ी पहले से बिक 
          चुके थे। तीन सितम्बर को लंदन के नेहरू सेंटर में इस नाटक के पाठ और वीडियो शो 
          के आयोजन होने वाले हैं। लेखक और पत्रकार अजित राय ने इस नाटक के बीस साल के सफ़र पर एक पुस्तक 
          भी सम्पादित की है जिसका लोकार्पण चौदह अगस्त को वॉशिंगटन में, तीन 
          सितम्बर को लंदन में और सात सितम्बर को हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में 
          किया जाएगा। नाटक के ये विश्वव्यापी समारोह एक साल तक चलेंगे और इस अवधि 
          में देश-विदेश के कई शहरों में इसका मंचन और पाठ होगा तथा रंगमंच पर 
          संगोष्ठियाँ आयोजित की जाएँगी।
 
 जिस लाहौर नहीं वेख्या का सर्वप्रथम मंचन सुप्रसिद्ध नाटककार स्व. हबीब 
          तनवीर ने दिल्ली के श्रीराम सेंटर में २७ सितंबर १९९० को किया था। तब से 
          लेकर आज तक दिनेश ठाकुर, वामन केडे, सीमा किरमानी, उमेश अग्निहोत्री, 
          कुमुद मीरानी, अनिल शर्मा जैसे अनेक निर्देशकों द्वारा भारत के विभिन्न 
          शहरों में इसका मंचन किया जा चुका है। यही नहीं कराची और सिडनी में भी 
          इसके प्रदर्शन हो चुके हैं। यह नाटक दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में 
          भी शामिल किया गया है और समाचार यह है कि राजकुमार संतोषी इस पर एक फिल्म 
          भी बना रहे हैं। कन्नड़, पंजाबी और मराठी में इसके अनुवाद पहले ही हो चुके हैं। 
          नाटक के बीस वर्ष पूरे होने के शुभ अवसर पर अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए 
          इस नाटक की पी.डी.एफ. फाइल डाउनलोड परिसर में रखी गई है, जहाँ इसे कभी भी 
          पढ़ा जा सकता है।
 
          पूर्णिमा वर्मन३१ अगस्त २००९
 
 |