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          कलम गही नहिं हाथ   
          
 
  
            
          बड़े भाई साहब 
          बड़े भाई साहब का रिहर्सल फिर जारी है। यह 
          देख कर अद्भुत आश्चर्य होता है कि कहानी में नाटकीय तत्वों को कितनी 
          सफलता से रचा गया है। कहानी में केवल दो ही पात्र हैं लेकिन उन दोनों 
          पात्रों के बीच समानता और असमानता का बड़ा सुंदर सामंजस्य बनाया गया है। 
          एक दूसरे के प्रति प्रेम, ईर्ष्या और नफ़रत के भाव ऐसे बुने गए हैं जैसे 
          किसी मनोवैज्ञानिक की कलम से निकले हों, सामाजिक अवस्था और द्वंद्व का 
          ऐसा चित्रण हुआ है जैसे किसी समाजशास्त्री का विश्लेषण हो, संवादों में 
          ऐसी रवानगी है जैसे किसी नाटककार की कलम से निकले हों और तत्कालीन 
          शिक्षा-प्रणाली पर ऐसे व्यंग्य हैं जो केवल एक निपुण व्यंग्यकार ही लिख 
          सकता है। 
          एक ही 
          कहानी में इतनी विशेषताओं को देखते हुए पता
          
          चलता है कि प्रेमचंद यों ही महान कथाकार नहीं हो गए। इसके पीछे उनके 
          अनुभव की
          
          गहनता,
          
          अवलोकन की बारीकी,
          
          मनोविज्ञान की समझ और लेखन की अप्रतिम प्रतिभा और व्यंग्य
          
          की पैनी दृष्टि थी।  पिछली बार बड़े भाई साहब 
          दूसरे कलाकारों ने किया है इस बार कलाकार दूसरे हैं। एक ही भाव जब दो 
          कलाकारों द्वारा व्यक्त किया जाता है तब उसमें कैसा सुंदर वैभिन्य आकार 
          लेता है वह भी कम सुखद नहीं। नाटक देखना तो बहुत से लोगों को पसंद होता 
          है पर रिहर्सल देखना एक बच्चे को बड़ा होते हुए देखने के समान है और इसका 
          अनिर्वचनीय है। आज का रिहर्सल बार बार इस संवाद पर आकर रुक जाता था- 
          "मैं 
          यह लताड़ सुनकर आँसू बहाने लगता। जवाब ही क्या था। अपराध तो मैंने किया,
          
          लताड़ कौन सहे?
          
          भाई साहब उपदेश की कला में निपुण थे। ऐसी-ऐसी लगती बातें कहते,
          
          ऐसे-ऐसे सूक्ति-बाण चलाते कि मेरे जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते और 
          हिम्मत छूट
          
          जाती।"
           
          निर्देशन प्रकाश सोनी कर रहे हैं और 
          छोटे भाई साहब बने हैं 
          
          आमिर। प्रकाश उससे बार बार कई रूपों में अभ्यास 
          करा कर अलग अलग तरह का प्रभाव लाने की कोशिश कर रहे थे। कभी दुख कभी 
          निराशा- यह सब आसान नहीं... अभ्यास अंत में क्या रूप लेता है वह देखना 
          रोचक रहेगा। अभी दस रिहर्सल बाकी हैं।  
          मौसम बदल रहा है और अरब सागर में लाल ज्वार दिखाई 
          देने लगा है। लाल ज्वार समुद्र में विशेष प्रकार के एककोशीय जीव (एलगी) 
          की बढ़वार से होता है जिसके कारण समुद्र लाल या भूरा दिखाई देने लगता है। 
          ये रंगहीन भी होते हैं। कभी कभी इनके कारण मछलियों या समुद्री जीवों की 
          मृत्यु होती है पर ये हमेशा हानिकारक हों यह भी ज़रूरी नहीं। मौसम विभाग 
          का कहना है कि ये हालात अभी एक हफ़्ते तक जारी रहेंगे। 
          पूर्णिमा वर्मन२७ अप्रैल २००९
 
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