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कलम गही नहिं हाथ  
 

 

 

बरसात में...

लगता है ऊपरवाला इस रेगिस्तान की रेत में हरे भरे जंगल उगाकर ही दम लेगा। वसंत-ऋतु अभी अभी बीती है, दो दिन रात को एअर कंडीशनर चले ही थे कि बारिश फिर से शुरू हो गई। विश्वास नहीं होता कि यह वही देश है जहाँ 15 साल पहले साल भर में सिर्फ़ सर्दियों में एक हफ्ते बारिश हुआ करती थी वह भी हर साल नहीं। इस साल बारिश से हाल बेहाल है। बारिश तो हुई ही है, बर्फ़बारी भी हुई है और अब तीन दिन से ऐसी झड़ी लगी है जिसमें दो दिन ओले भी गिर चुके हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इतनी बारिश इमारात में 31 साल पहले हुई थी। हो सकता है कि इस बार कोई नया रेकार्ड भी बन जाए।

रोज़ रोज़ मौसम बदलना उत्तर भारतीयों के लिए कोई नई बात नहीं। हमारे यहाँ छे ऋतुएँ होती हैं और हर दो महीने बाद मौसम बदल ही जाता है। पर इमारात के लिए यह बड़ी बात है जहाँ लंबे साल में सिर्फ दो मौसम होते हैं। सुखद गर्मी जो नवंबर से अप्रैल तक रहती है और दुखद गर्मी जो मई से अक्तूबर तक रहती है। इन दोनों तरह की गर्मियों के बीच जब बरसात और सर्दी घुसपैठ करने लगें तो खबर बनना स्वाभाविक सा है। लोग यू.के. की तरह मौसम और सिर्फ़ मौसम पर आ टिके हैं।

बगीचे के गुलमोहर को समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करे। सोए या जागे? एक डाल हरी हो गई है और बाकी की डालों में किसलय जैसे रज़ाई उठाकर झाँक रहे हैं- मानो सर्दी में रज़ाई से बाहर आना ही नहीं चाहते।  हर साल इस समय तक पेड़ पूरा हरा हो चुकता था और फुनगियों पर कलियों के गुच्छे आकार लेते से दिखाई देने लगते थे। जब प्रकृति की पहचान में निपुण पेड़ पौधों का हाल मौसम ने बदल कर रख दिया है,  तो इन्सान का क्या होगा वह जानना भी कम मज़ेदार नहीं। यहाँ के बाज़ारों में आजतक कभी बरसातियाँ नहीं देखी थीं अब वे नज़र आने लगी हैं, लोग कार में छाता रखने लगे हैं। यहाँ की छतें जिसमें ढाल सही बनाने की बात कभी सोची ही नहीं गई, जिसमें नालियाँ तक नहीं होती हैं पानी से भर गई है और लोग बालटियाँ भर-भर कर पानी फेंकते दिखाई देते हैं। सदा निर्माण के काम में लगे शहर (ऊपर के चित्र में क्रेनों की पंक्ति देखें)  कुछ धीमे पड़े हैं और तेज़ धूप से भरा आसमान नीला बैंगनी दिखाई देने लगा है। (ऊपर चित्र में बिज़नेस-बे,  दुबई पर चमकती बिजली की रेखाएँ।) मौसम की जानकारी देते हुए मौसम विभाग द्वारा कहा गया है कि छाते-बरसाती साथ रखें और कार तेज़ न चलाएँ।

पूर्णिमा वर्मन
  मार्च २००९

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