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कलम गही नहिं हाथ  
 

 

 

मंदी की ठंडी में उपदेशों की बंडी

मार्च का महीना है, बदलते मौसम का ख़ुमार और बुखार दोनों फ़िजां में हैं। वसंत की सेल में खरीदारियों से इमारात के बाज़ार गरम हैं लेकिन मंदी की ठंडी देश की नसों में थरथराहट पैदा कर रही है। विज्ञापन की चाबुक नई पीढ़ी को ऐसा हाँकती है कि कितने भी पैसे जेब में आएँ महीने का अंत होता है फाकामस्ती से। इसके विरुद्ध कमर कसने के लिए स्थानीय अखबार ने एक अभियान चलाया है जिसका नारा है वाओ (WOW)। विस्तार में कहें तो वाइप आउट वेस्ट। उद्देश्य है नागरिकों को दिवालिया होने से बचाना। अखबार के इस काम में शामिल हैं शहर के जानेमाने अर्थशास्त्री जो भोली जनता को पैसे की बरबादी रोकने के सिद्ध मंत्र देने में लगे हैं। भई ऐसी विद्या मिले तो कौन न लेना चाहेगा। तो प्रस्तुत हैं पैसे की बरबादी रोकने के रामबाण नुसख़े- 

  • अपने खर्च की दैनिक डायरी लिखना सीखो। बिना यह जाने कि कितना खर्च हो रहा है कभी पता नहीं चलेगा कि कौन सा खर्च रोका जाए।

  • अगर बहुत पैसे बचाना संभव नहीं है तो थोड़े थोड़े पैसे हर महीने ज़रूर बचाओ ये लंबे समय में बड़ी बचत साबित होंगे।

  • क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल केवल उस काम के लिए करो जिसके लिए नकद पैसे नहीं भरे जा सकते। कार्ड का बिल नियम से प्रतिमाह भरो ताकि अनावश्यक ब्याज न चुकाना पड़े।

  • अगर बार बार बैंक द्वारा धन भेजने की ज़रूरत पड़ती है तो बैंक की पैसे स्थानांतरण फ़ीस पर कड़ी नज़र रखो। अगर यह दूसरे बैंकों की तुलना में ज्यादा है तो बैंक बदल दो।

  • ५०,००० दिरहम से अधिक मुद्रा परिवर्तन करना है तो मनी एक्सचेंज की थोक दर वाली छूट का लाभ उठाओ।

  • धन के निवेश की जिन योजनाओं पर पहले से अमल हो रहा है उन पर फिर से विचार करो। अगर वे कारगर नहीं हैं तो बदल डालो।

यही नहीं, ये विद्वान भारतीय बड़े-बूढ़ों की तरह आदतों को सुधारने की सलाह देते हुए कहते है। -

  • सिगरेट पीना बंद करो, क्यों कि एक पैकेट सिगरेट पर रोज ६ दिरहम फुँक जाते हैं। यह आदत छोड़ने पर, साल भर में होती है २१६० दिरहम की बचत।

  • कावा के तीन प्याले यानी १४ दिरहम रोज़। इसको बंद करो और साल में ५०४० रुपये बचाओ।

  • घर में २५ की जगह सिर्फ १२ बल्ब जलाओ और साल भर में १०९५ दिरहम बचाओ।

  • हफ़्ते में दो बार बाहर खाने की आदत पर अंकुश रखो। जिन जगहों पर दो लोगों के खाने का खर्च १०० दिरहम से ज्यादा है, खाना मत खाओ और साल भर में १०,४०० दिरहम बचाओ।

  • बागबानी नहीं आती तो बगीचा मत लगाओ क्यों कि ज्यादा पानी देकर तुम पानी तो बरबाद करते ही हो पौधों को भी मारते हो।

  • कसरत करने की मशीन मत खरीदो, बाहर निकलो और सड़क पर चलो।

कोई नई बात पता लगी? नहीं लगी न? इसमें से आधी बातें तो हमारी माँ ने मार मार के बड़े होने से पहले ही सिखा दी थीं। जो कमी रह गई थी वह बाबूजी ने नौकरी लगते ही टोंक-टाक कर पूरी कर दी। हम भारतीय यह सब घुट्टी में सीखते हैं। आशा है बाकी लोगों को मंदी की ठंडी में यह बंडी काम आएगी। भला हो ऊपरवाले का जिसने आर्थिक विशेषज्ञ नामक जीव से मिलवाया और हमें पता लगा कि माँ और बाबूजी तो सालों पहले इस ज्ञान को धारण करने वाले विशेषज्ञ बन चुके थे। हे प्रभु, माफ़ कर देना, हम तो उन्हें आजतक निरा माँ और बाबूजी ही समझते रहे।

पूर्णिमा वर्मन
 
९ मार्च २००९

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