संपादक
सुकेश साहनी
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प्रकाशक
जनसुलभ पेपरबैक्स
१९३/२१ सिविल लाइंस
बरेली
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पृष्ठ :१५२
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मूल्य
२५ भारतीय रूपये
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बीसवीं सदीःप्रतिनिधि लघुकथाएं
आधुनिक
हिंदी लघुकथा को गति प्रदान के लिए १९७४ में भगीरथ और रमेश
जैन ने संपादित संचयन 'गुफ़ाओं से मैदान की ओर' से जैसी पहल
की थी, लगभग वैसी ही पहल 'बीसवीं सदी : प्रतिनिधि
लघुकथाएं' संचयन निकालकर सुकेश साहनी ने बीसवीं सदी के
पूरे फलक पर की है।
सुकेश के
लिए भाषा शायद कोई अवरोध नहीं है, वे पंजाबी, उर्दू, मराठी
और गुजराती की सीमाओं में बेरोकटोक घुसते हैं और वहां से
लघुकथा के कुछ मोती चुराकर हिंदी पाठकों को सौंप देते हैं,
साध्य पवित्र हो तो साधन की अपवित्रता उनके यहां कोई मायने
नहीं रखती, लघुकथा के प्रति सुकेश के अतिरिक्त लगाव का ही
यह परिणाम लगता है।
किसी विधा
का संचयन अनेक विधियों से किया जा सकता है और संकलित
रचनाकारों को क्रम देने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे
आसान और विवादहीन तरीका होता है लेखकों के नामों को
अकारादि क्रम से व्यवस्थित कर देना, अपने संचयन में सुकेश
साहनी ने यही तरीका अपनाया है, लेकिन इस तरीके की कुछ
सीमाएं हैं, ख़ासकर तब, जबकि संचयन पूरी सदी से किया गया
हो। इस तरीके में पहली नज़र में ही लेखकों और विधा के
इतिहास की झलक नहीं मिल पाती। यह बात लेकिन शोधार्थियों और
सुधी पाठकों के लिए ख़ास मायने रखती है, आम पाठक को तो
रचना से मतलब होता है और पेपरबैक में यह अल्पमोली किताब आम
पाठक को ध्यान में रखकर ही निकाली गई हैं। विश्वास है कि
यह उन्हें पूरा तोष दे सकेगी।
'बीसवीं
सदी : प्रतिनिधि लघुकथाएं' में प्रेमचंद, रावी, विष्णु
प्रभाकर, राजेंद्र यादव, शरद जोशी, हरिशंकर परसाई, शंकर
पुणतांबेकर, पृथ्वीराज अरोड़ा, असगर वजाहत, रवींद्र वर्मा,
सुरेश उनियाल, संजीव, रमेश बतरा, चित्रा मुदगल, उदय
प्रकाश, शिवमूर्ति, अवधेश कुमार, कृष्णानंद कृष्ण, महेश
दर्पण, हसन जमाल, हबीब कैफी, प्रेमकुमार मणि, सत्य नारायण,
आनंद हर्षुल, दामोदर दत दीक्षित, नवीन कुमार नैथानी, सुभाष
नीरव तथा पवन शर्मा जैसे १३९ नये–पुराने प्रतिष्ठित
कथाकारों की लघुकथाओं को पढ़ने से बीसवीं सदी में
प्रवाहमान लघुकथा की विधा के रूप में एक मुकम्मल पहचान
बनती है।
ख़ासकर के
लघुकथा प्रयत्नों को छोड़ दें तो इस किताब में ऐसा पहली
बार हुआ है कि पूरे देश के इतने सारे महत्वपूर्ण नाम एक
संचयन में एकत्र हुए हैं, जिससे लघुकथा के प्रति संपादक की
निष्ठा, समर्पण, न्याय बुद्धि, निष्पक्षता और गंभीरता का
पता चलता है, यह और बात है, जिसे संपादक ने स्वीकारा भी है
कि अनेक महत्वपूर्ण लेखकों की लघुकथाएं उसकी पकड़ में नहीं
आईं जैसे माधवराव सप्रे, माखनलाल चतुर्वेदी, जयशंकर
प्रसाद, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, रामवृक्ष बेनीपुरी,
जानकी वल्लभ शास्त्री, चंद्रमोहन प्रधान, अमर गोस्वामी,
राजकुमार गौतम, मुकेश वर्मा और मनीष राय आदि। वहीं कुछ
अज्ञात नाम आ गए हैं तो उर्दू, पंजाबी और गुजराती के भी
कुछ लेखक हिंदी के इस संचयन में घुसपैठ कर गए हैं।
बलराम
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