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						लेखकउषा राजे सक्सेना
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						प्रकाशकराधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड
 जी–१७, जगतपुरी
 नयी दिल्ली ११० ०५१
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      					पृष्ठ १२०°
 
						
      					मूल्य १५० रूपये   | 
						वाकिंग 
						पार्टनर (कहानी संग्रह)
						
                       योरोप में रह रहे जिन 
						अप्रवासी भारतीय लेखकों ने हिन्दी भाषा तथा साहित्य के 
						प्रचार–प्रसार के अलावा अपनी सृजनात्मक प्रतिभा के बल पर 
						विशिष्ट पहचान बनाईं उनमें उषा राजे सक्सेना का नाम सम्मान 
						के साथ लिया जाता है। पिछली सदी के सातवें दशक से निरंतर 
						सृजनरत उषा राजे की कविताएं, कहानियां एवं लेख अमेरिका, 
						योरोप एवं भारत के प्रमुख पत्र–पत्रिकाओं में छपते रहे 
						हैं। इस दूसरे कहानी संग्रह 'वाकिंग पार्टनर' के पूर्व 
						उनके दो काव्य–संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। अति भौतिकतावादी परिवेश, 
						उपभोक्तावादी संस्कृति, उत्तेजना और आकर्षण की चकाचौंध के 
						बीच रहते हुए भी मानवीय सरोकारों की तलाश में व्यक्ति के 
						अंदर पैठे व्यक्ति की चिंताओं, दुःख दर्द, उसके वजूद को 
						तलाश कर संवेदनात्मक स्तर पर प्रस्तुत करना सहज नहीं है, 
						किन्तु इस उद्देश्यपूर्ण सर्जन–प्रविधि का उषा राजे ने 
						निर्वाह किया और इसका सबूत है यह कहानी संग्रह 'वाकिंग 
						पार्टनर'। लंदन के परिवेश की इन दस 
						कहानियों की विषय–वस्तु भारत पाकिस्तान के अप्रवासियों के 
						सामाजिक–समायोजन, पारिवारिक तथा रिश्तों के दोहरे तिहरे 
						दबावों में अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे व्यक्ति के 
						ईद–गिर्द फैली है और इसके केन्द्र में मूलतः नारी है। शीर्षक कहानी 'वाकिंग 
						पार्टनर' की नैरेटर रिफ़त की वाकिंग पार्टनर के आंतरिक दर्द 
						पर होले–होले फोहा लगाती हुए आगे बढ़ती है, उसके 
						व्यक्तित्व से प्रभावित होते हुए भी वह उसके बारे में अधिक 
						नहीं जानती। उसके शानौ–शौकत की परत क्रमशः खुलने लगती है 
						और क्षेपक प्रसंगों से हकीकत तक यात्रा करते हुए कहानी 
						'वाकिंग पार्टनर' के बजाए उसकी लड़कियों से जुड़ जाती है। 
						स्टि्रप–टीज़, टैंगो, न्यूड, इरॉटिक, टेबुल, बेली, मुजरा 
						डांस का एक्साइटिंग परफ़ारमेन्स देने वाली स्मार्ट और 
						रिज़र्व्ड, ज़रीना–करीना इस आर्ट बिज़नेस के कारण चर्चा 
						में होने के साथ ही मनचलों की आंखों की किरकिरी बनी हुई 
						है, किन्तु वे यह उजागर नहीं होने देती कि यह बिज़नेस, वे 
						किड़नी डाईलिसिस से ग्रस्त, पिता के महंगे इलाज के लिए कर 
						रही है। कहानी अपने रचना–कौशल तथा भाषा सौष्ठव के साथ चरम 
						पर पहुंच कर पाठक की संवेदना के तंतुओं को झंकृत कर यह 
						प्रश्न करती है कि 'आखिर, क्यों औरत को ही अपनी सहूलियत, 
						अपनी मजबूरियों के लिए बुरी औरत के ख़िताब से नवाज़ा जाता 
						है . . .। वैजन्ती एक गृहस्थ–महिला की 
						भूमिका निर्वाह निष्ठा के साथ करती है किन्तु कुमार मंगलम 
						एक अन्य स्त्री के साथ विवाहेतर संबंध स्थापित कर जब उसकी 
						आस्था को ठेंस पहुंचाता है तो वह अपनी उंगलियों को 
						गृहस्थिक कार्यों से हटा कर 'सिडनी न्यूज़' के सातवें 
						पन्ने के 'वेकेंसी कॉलम पर घुमाकर अपने 'वजूद' के लिए 
						संघर्ष करने का दृढ़ निश्चय कर लेती है। इसी प्रकार 
						'क्लिक' कहानी की आइटी कंसल्टेंट तान्या दीवान, अपने 
						शारीरिक आकर्षण से बंधे तुहीन मजूमदार से 
						'टेम्प्रेरी–रिलेशन' के बजाए लाइफ़ पार्टनर का रिलेशन रखना 
						ज़्यादा पसंद करती है। ये कहानियां नारी के 
						अंतरद्वंद्व नहीं, उनकी आंतरिक ऊर्जा से परिचित कराती है। 
						उषा राजे ने इस ऊर्जा को अनुभव ही नहीं किया, निकट से देखा 
						भी है। कहानियों में निहित 
						सकारात्मक सोच ने जीवन की आपाधापी के बीच पारस्परिक–समझ, 
						सौहार्द, मानवता, सदाशयता, प्रेम स्नेह, सेवा–सहयोग के 
						महत्व को प्रतिपादित कर साहित्य उद्देश्य के सौंदर्य की 
						सृष्टि की है। इसकी वजह उषा राजे का अपने देश की 
						सांस्कृतिक छवि के प्रति अगाध–प्रेम तथा विभिन्न शैक्षिक 
						संस्थानों से जुड़े रहना रहा है – 'अपनी संस्कृति और 
						सभ्यता पर बोलना और उसका विस्तार करना मुझे सदा अच्छा लगता 
						है।' (पृष्ठ–६७) यही नहीं सृजन माध्यम से साहित्य और कला 
						का संस्कार देने हेतु वे यत्र–तत्र उमर ख़ैयाम, मंटो, खलील 
						जिब्रान, टैगोर टेनिसन, सलमान रश्दी आदि को याद करती हैं। 
						संग्रह की 'रूखसाना', 'द रिफ्यूज़ कलेक्टर', 'दर्द का 
						रिश्ता', 'मज़हब', 'महत्वाकांक्षी मयंक', 'मिस्टर 
						कमिटमेंट', 'मेरे अपने' जैसी कहानियों लेखिका की ऐसी ही 
						प्रतिबद्धता से संबद्ध प्रभावी कहानियां हैं। उषा राजे की कहानियों की 
						सबसे बड़ी शक्ति भाषा तथा रचना कौशल है जिसे उन्होंने अपने 
						तई ईजाद किया है। सांकेतिकता, लाक्षैणिकता, मुहावरेदार 
						भाषा ने जहां निरंतर प्रवाह की सृष्टि की है वहीं पात्र के 
						बीच से पात्र तथा कथा के बीच उपकथा का सृजन कर कहानियों के 
						विषय वस्तु को विश्वसनीयता दी है। यही कारण है कि कहानियां 
						सात समंदर पार की होते हुए भी सपना सा नहीं अपना सा होने 
						का आभास देती है। 
						— डा सतीश दुबे
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