लेखक
एस आर हरनोट
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प्रकाशक
आधार प्रकाशन,
पंचकूला, हरियाणा
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पृष्ठ २६४
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मूल्य २५० रूपये
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हिडिम्ब
(उपन्यास)
एस आर हरनोटा का उपन्यास
'हिडिम्ब' प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक चिन्ताओं को विमर्श
में लाने की एक विनम्र कोशिश है। यह उपन्यास हिन्दी के
पाठकों के लिए बिलकुल अपरिचित लोक में प्रवेश करने जैसा है
जहां देवता हैं, गूर हैं, उनके कारकून हैं और काहिका जैसी
अनूठी परंपराएं हैं। साथ साथ नेता, सेक्रेटरी, प्रधान और
ठेकेदार और उनकी सत्ता भी है। यहां नदी जैसा बहता निर्मल
जीवन है और पहाड़ जैसे ऊंचे चरित्र हैं जिनपर समय की
कुदृष्टि लगी हुई है। एक आंचलिक कथा होते हुए भी 'हिडिम्ब'
के सरोकार वैश्विक हैं।
लेखक अपने
चुस्त शिल्प और चित्रात्मक भाषा के कारण पहले ही जाना
पहचाना है, उसके सम्पूर्ण लेखन में हिमाचल और
प्रकृति–प्रेम नज़र आता है, वही 'हिडिम्ब' में भी समाया
है। पहाड़ियों में बसनेवाले नड़ परिवार को सामने रख कर
उनके जीवन का ऐसा कथाचित्र लेखक ने खींचा है कि पाठक
उत्सुकतावश जुड़ा रहना चाहता है। तकलीफ भरा वर्तमान और दुख
भरा भविष्य ही इस नड़ परिवार की पहचान है। अपने आप में
हंसते खेलते शावणू, उसकी पत्नी सुरमा देही, बेटी सुमा और
पाठशाला जानेवले छोटू का परिवार हमेशा किसी न किसी खौफ़ से
घिरा हुआ है।
उपन्यास
में ऐसे ऐसे मोड़ हैं जो हम पढ़ते समय सोच नहीं सकते। छोटू
का गायब हो जाना और बाद में उसकी मृत्यु का पता चलना, बेटे
के गम में दिमागी संतुलन खो बैठी सुरमा देही का एक दिन नदी
में डूब कर अन्त हो जाना पाठक को हिलाकर रख देते है। जवान
होती सुमा की चिन्ता शावणू को पल पल सता रही है। काम के
सिलसिले में ऑस्ट्रेलियन 'एरी' का आगमन उस पहाड़ी पर होता
है। सुमा मां के प्यार और याद में पागल, नदी को ही अपनी
मां समझकर उसकी गोद में समाना चाहती है, एरी उसे बचा लेता
है। बातों बातों शावणू और सुमा की तकलीफ से वकिफ होता है,
शायद सहानुभूति में सुमा से प्यार कर बैठता है और शावणू के
सामने प्रस्ताव रखता है ३ साल के कॉन्ट्रेक्ट वाली शादी
का। वह जब तक वहां है, सुमा को अपनी पत्नी बना कर रखेगा,
बाद में सुमा अपने पिता के घर लौट आएगी। सुमा पर लगी आसपास
के लोगों, मंत्री और पटवारी की बुरी नज़र से सुमा को बचाने
के लिए उसे यह रास्ता पसंद आता है। सुमा शावणू का घर उदास
कर एरी के साथ चली जाती है। पहले अपने पिता से मिलने रोज़
आनेवाली सुमा, एरी के प्यार में खोती चली जाती है, धीरे
धीरे उसकी आवाजाही बंद हो जाती है। एक खत द्वारा पता चलता
है कि एरी के ३ साल खत्म होने से पहले ही पहाड़ी में सुरंग
बनाने का काम खत्म हो जाने पर वह सुमा को लेकर आस्ट्रेलिया
चला जाता है और वहीं उससे शादी कर लेता है।
जिन्दगी
में अकेले पड़ा शावणू ने, पहले कभी अपनी (अपने पिता
की)जमीन बेचने के लिए मना किया था लेकिन उसका मित्र शोभा
उसे समझाता है कि बुढ़ापे के दिन आराम से काटने है तो इस
ज़मीन का लालच छोड़ देना ही सही होगा। शावणू पहले नाराज़
होता है पर शोभा की बातों पर गौर करना चाहता है, शांति की
ज़िंदगी जीना चाहता है इसलिए इस ज़मीन से मोह तोड़ देने पर
राज़ी हो जाता है और अंततः ज़मीन को, अस्पताल के लिए दान
कर देता है। यह उसकी नेकनीयती और बुलंद चरित्र का यह एक
अन्य पहलू है, जहां जीवन के प्रति वीतराग की अवस्था को
महसूस किया जा सकता है।सालों से इस जमीन की चाहत रखने वाले
मंत्री और पटवारी खुशी से झूम उठते हैं। इस ज़मीन पर
पांचसितारा हॉटल खोलने का उनका सपना जो पूरा होने जा रहा
है। ज़मीन के कागज़ात मन्त्री को सौंपते समय शावणू उस
खद्दरधारी में एक राक्षस . . .हिडिम्ब . . .और साथ ही एक
असहाय इन्सान को देखता है।
जंगलों और
पहाड़ियों का डायनामाइट से उड़ना और उजड़ जाने के ग़म में
शावणू पहले ही उदास था। शावणू द्वारा दान की गयी ज़मीन पर
अस्पताल बनाने की घोषणा कर नेता जनता की वाह वा कमा लेते
हैं। पर उसी रात वर्षा अपना प्रकोप दिखाती है, बादल फट
जाते हैं, कयामत आ जाती है और नदी के किनारे बसे गांव,
उद्योगपतियों, राजनेताओं के बड़े बड़े आलीशान बंगले और
होटल नदी में बह जाते है। यहां तक कि मन्त्री का भी कुछ
नहीं बचता जो उसने स्वप्न में संजो कर रखा था।
कथानक बेहद
स्पष्ट होने के बावजूद यांत्रिकता और सपाटबयानी से इसलिए
मुक्त हैं कि हरनोट ने लोककथाओं, अवांतर कथाओं, लोकगीतों,
धार्मिक उत्सवों तथा घटनाओं के बीच एक सघन, सुघड़ पाठ
प्रस्तुत किया है और एक सामान्य–सी कथावस्तु को हरनोट ने
बेहद जीवंत और विश्वसनीय रचना में बदल दिया है। हिमाचली
अंचल पर लिखा गया यह एक ऐसा श्रेष्ठ उपन्यास है जिसमें एक
दलित की वेदना, संघर्ष और द्वंद्व को स्वाभाविक तौर से
व्यक्त किया गया है।
— दीपिका जोशी
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