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लेखकों से
 १. ४. २०१९

इस माह-

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अनुभूति में-
रामनवमी के अवसर पर विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की अनेक भावभीनी रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- होली गई और नवरात्र आ गए। इस अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- शुभ पर्व के लिये फलाहारी व्यंजन

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- ४- चीनी से आँखमिचौली और भोजन का रखें ध्यान।

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव-

अभिरुचि में- विभिन्न देशों के व्यक्तिगत डाक-टिकटों की जानकारी से सम्बंधित पूर्णिमा वर्मन का आलेख- डाकटिकटों पर चंपा का फूल

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अप्रैल) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- जय चक्रवर्ती की कलम से ओमप्रकाश सिंह के नवगीत संकलन- नयी सदी के गीत खंड-४ का परिचय।

वर्ग पहेली- ३१२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में-  रामनवमी के अवसर पर

समकालीन कहानियों में भारत से रेणु सहाय
की कहानी- देर है अंधेर नहीं

“सौ गुनाहगार भले ही छूट जाएँ पर एक बेकसूर को सजा न हो।”
"दशरथ पासवान हाज़िर हो।"
सौगंध की प्रक्रिया के बाद-
"आपका नाम"?
"दसरथ पासवान।
उम्र- ३२ बरस।"
"आप काम क्या करते हैं?"
"हुजुर पी. डब्लू. डी. के इंजिनियर साहब के दफ्तर में चपरासी का।"
"इनको पहचानते हैं?" सामने वाले कटघरे में खड़े शख्स को दिखला कर।
"हाँ हुजुर, इनको तो दफ्तर में सब जानता है। इ तो शुक्ला जी हैं, ठेकेदार साहब। इनका फाइल हम ही तो साहब के पास पहुँचाते हैं।"
"उस फाइल में क्या रहता था आप जानते थे?"
"नहीं हुजूर, हम कैसे जानेंगे।"
"बदले में क्या तुम्हें कुछ पैसा देते थे?"
"पईसा उईसा तो..."
"सही सही बोलो, झूठ बोलोगे तो तुम्हें कड़ी सजा होगी। कड़क कर सरकारी वकील ने कहा।"
"हाँ हुजूर २०- २५ रुपिया चाय पानी के लिए दे देते थे।" आगे...
*

मुक्ता पाठक की लोककथा-
जब राम और शिव में युद्ध हुआ
*

श्रीराम परिहार की कलम से
रामकथा की सांस्कृतिक यात्रा
*

डा. राधेश्याम द्विवेदी का आलेख
श्रीराम वन-गमन मार्ग के प्रमुख स्थान
*

शशि पुरवार की श्रद्धाजलि
गीत के वटवृक्ष- मधुकर गौड़

पिछले अंक-में--- होली के अवसर पर

मधु जैन की
लघुकथा- लो आ गया वसंत
*

नर्मदा प्रसाद उपाध्याय का
ललित निबंध- रंग के रूपायन
*

पर्व परिचय में जानें
रंगभरी एकादशी के विषय में
*

पुनर्पाठ में ऋषभदेव शर्मा का आलेख
रंग गई पग पग धन्य धरा

*

समकालीन कहानियों में भारत से चंडीदत्त शुक्ल की कहानी- तुम चुप रहो गुलमुहर

एकांत का धूसर रंग हो, चाहे मिलन की चटख रंगोली। खुशी मन में ही पैदा होती है, वहीं खत्म भी हो जाती है। हर दिन को होली बनाने की चाहत में फाल्गुनी ने वर्जित फल चख तो लिया, लेकिन वह भूल गई थी कि हम अकेले भी अपने अंदर होते हैं और पूर्ण भी खुद से ही। कोई तनहाई दूसरों के सहारे खत्म नहीं होती...आसमान के गाल लाल थे। ऐन टमाटर की माफ़िक। होली का हफ्ता शुरू हो चुका था, सो धरती से अंबर तक, हर तरफ रंगों की बारात सजी थी, लेकिन हैरत की बात – सर्दी अब भी हवा की नसों में तैरती हुई। ठंड ने बादलों को थप्पड़ मार-मारकर पूरे आसमान को सुर्ख कर दिया था। सारी रात जागने के बाद चाँद कराह रहा था। दर्द के मारे उसके पैरों की नसें नीली पड़ गई थीं। उसकी विनती पर ही सरपट भागते, सूरज के रथ के आगे जुते घोड़े यकायक ठहर गए। उनके पैरों की नाल यों झनकी कि फाल्गुनी की आँखों से पलकों ने कुट्टी कर दी। उसने `आह' कह अंगड़ाई ली और करवट बदली। निगाहें लाल थीं। कम सोने और ज्यादा जागने की वजह से। रात का लंबा वक्फा आँख की राह आगे...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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