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११. ३. २१३

इस सप्ताह-

अनुभूति में-
डॉ. त्रिमोहन तरल, कृष्ण सुकुमार, संजय अलंग, डॉ. रमाकांत श्रीवास्तव, और चार आप्रवासी रचनाकारों की रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- होली आ रही है और उसकी तैयारी में शुचि ने भेजे हैं चाट के विविध व्यंजन। इस शृंखला में सबसे पहले प्रस्तुत है- मूँग की दाल के दही बड़े

रूप-पुराना-रंग नया- शौक से खरीदी गई सुंदर चीजें पुरानी हो जाने पर फिर से सहेजें रूप बदलकर- बटनों में सहेजें बुंदे

सुनो कहानी- छोटे बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के साप्ताहिक स्तंभ में इस बार प्रस्तुत है कहानी- उड़ने वाली भेड़

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला- २६ का विषय है रंग। रचनाओं का प्रकाशन प्रारंभ हो गया है। रचनाएँ अभी भी भेजी जा सकती हैं।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है पुराने अंकों से १६ दिसंबर २००२ को प्रकाशित लक्ष्मी रमण की तमिल कहानी का हिन्दी रूपांतर टूटा हुआ स्वर

वर्ग पहेली-१२४
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों में यू.एस.ए. से
अनिल प्रभा कुमार की कहानी- मैं रमा नहीं

अपॉर्टमेंट का नम्बर ठीक था। मुझे घंटी का बटन नहीं दिखाई दिया। धीरे से दरवाज़ा थपथपाया, हालांकि दरवाज़ा सिर्फ़ उढ़का हुआ था, बन्द नहीं।
"कम इन" एक खरखरी सी मर्दानी आवाज़ ने जवाब दिया।
दरवाज़ा खोलते ही - एकदम सामने वह लेटे थे, अस्पताल नुमा बिस्तर पर। पलंग सिरहाने से ऊँचा किया हुआ था। झकाझक सफ़ेद कुर्ता-पाजामा पहने, चेहरे पर दो-तीन दिन पुरानी दाढ़ी और उम्र शायद साठ के आस-पास। नाक पर नलियाँ लगी हुईं। उनके दायीं ओर रैस्पीरेटर था।
उनकी बड़ी -बड़ी आँखें मुझ पर टिक गईं। पल भर में मैं काफ़ी कुछ समझ गई । उनके बारे में बहुत कुछ सुना हुआ था। मैने शिष्टता से हाथ जोड़ दिये। उन्होंने सिर हिलाकर मेरा अभिवादन स्वीकार किया। आँखें फिर भी मुझे घूरती रहीं।
"जी, रमा बहन हैं? मैंने उन्हें रोटी बनाने का ऑर्डर दिया था।"
वे सहज हुए। आँखें बायीं ओर घूमीं। ... आगे-

*

दुर्गेश गुप्त राज की लघुकथा
वस्त्रदान
*

व्यक्तित्व में कुमुद शर्मा का आलेख
हिन्दी के उन्नायक स्वामी दयानंद सरस्वती
*

अशोक उदयवाल से स्वाद और
स्वास्थ्य में पालक के पौष्टिक गुण

*

पुनर्पाठ में दीपिका जोशी के साथ पर्यटन में
रोमांचक जंगलों का सफर और सैर दक्षिण अफ्रीका की

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पिछले सप्ताह- शिवरात्रि के अवसर पर


मुक्ता की पुराण-कथा
पार्वती का स्वर्ण महल
*

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध का निबंध
भगवान भूतनाथ और भारत
*

बुद्धिनाथ मिश्र का यात्रा संस्मरण
चाँदनी रात में मानसरोवर

*

पुनर्पाठ में कुबेरनाथ राय का
ललित निबंध कुब्जासुंदरी

*

समकालीन कहानियों में भारत से
आभा सक्सेना की कहानी- शिवरात्रि का महूरत

ट्रेन में चढ़ने के बाद सुगन्धा ने जैसे ही सामान रखा, कि अचानक ट्रेन में ‘‘बम बम भोले’’ का नाद शुरू हो गया। कंधे पर काँवर लटकाये कई सारे यात्री डिब्बे में चढ़ गए। ट्रेन ने अपनी गति पकड़ ली थी। काँवरिये देहरादून से हरिद्वार के लिये ट्रेन में चढ़े थे। सुगन्धा ने ही स्थिति को समझते हुए दो काँवरिया धारकों को अपनी सीट पर जगह दे दी। बात उसने ही आगे बढ़ायी ‘‘हरिद्वार जा रहे हो क्या भैया ?’’
"हाँ माँजी... कल शिवरात्रि है न? इसी लिये नील कंठ महादेव पर जल चढ़ाना है मन्नत माँगी थी हमने उसी की आस्था में जल चढाने के लिये इसी ट्रेन में चढ़ गए हैं माँ जी आपको भी तकलीफ हो रही है न हमारे कारण?"
‘‘नहीं... ऐसा बिलकुल भी नहीं है आओ, तुम दोनों ठीक से बैठ जाओ।’’ और वह दोनो अपने अपने काँवर ऊपर की लगेज़ शैल्फ पर रख कर सुगन्धा के ही पास सीट पर बैठ गए।... आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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