इस सप्ताह- |
अनुभूति
में-
दिनेश सिंह, हरि अनजान,
विक्रम पुरोहित,
त्रिलोक सिंह ठकुरेला और वीना विज की रचनाएँ। |
|
साहित्य व संस्कृति में-
|
1
प्रसिद्ध लेखकों की चर्चित
कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से
मन्नू भंडारी की कहानी-
स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनों,
न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो
एक बड़ी मामूली-सी नौकरी पेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के
बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते - आते जिन
स्थितियों से मैं गुज़री हूँ, जैसा अहम् अनुभव मैंने पाया...
चाहती हूँ, बिना किसी लाग - लपेट के उसेआपके सामने रखूँ और
आपको बहुत सारे खतरों से आगाह कर दूँ। अब सीधी बात सुनिये। सीधी
और सच्ची !
मेरा अपने बॉस से प्रेम हो गया। वाह! आपके चेहरों पर तो चमक आ
गयी ! आप भी क्या करें? प्रेम कम्बख्त है ही ऐसी चीज़। चाहे
कितनी ही पुरानी और घिसी-पिटी क्यों न हो जाये... एक बार
तो दिल फड़क ही उठता है... चेहरे चमचमाने ही लगते हैं। खैर, तो
यह कोई अनहोनी बात नहीं थी। डॉक्टरों का नर्सों से, प्रोफेसरों
का अपनी छात्राओं से, अफसरों का अपनी स्टेनो - सेक्रेटरी से
प्रेम हो जाने का हमारे यहाँ आम रिवाज है।
पूरी कहानी पढ़ें...
*
मनजीत शर्मा मीरा का व्यंग्य
महँगाई
मार गई
*
डॉ. अनिल कुमार का आलेख-
नवगीत- परिप्रेक्ष्य और प्रासंगिकता
*
अभिलाष अवस्थी की दृष्टि से
सूर्यबाला
का कहानी संग्रह- गौरा गुनवंती
*
पुनर्पाठ में रति सक्सेना का
नगरनामा- सागरी झीलों का शहर
त्रिवेन्द्रम |
अभिव्यक्ति समूह
की निःशुल्क सदस्यता लें। |
|
पिछले
सप्ताह- |
1
मनजीत शर्मा मीरा का व्यंग्य
महँगाई
मार गई
*
डॉ. अनिल कुमार का आलेख-
नवगीत- परिप्रेक्ष्य और प्रासंगिकता
*
अभिलाष अवस्थी की दृष्टि से
सूर्यबाला
का कहानी संग्रह- गौरा गुनवंती
*
पुनर्पाठ में रति सक्सेना का
नगरनामा- सागरी झीलों का शहर
त्रिवेन्द्रम
*
सिद्ध लेखकों की चर्चित कहानियों
के स्तंभ गौरवगाथा में भारत से
मन्नू भंडारी की कहानी-
स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनों, न तो मैं कोई
विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी
मामूली-सी नौकरी पेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस
साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते - आते जिन स्थितियों
से मैं गुज़री हूँ, जैसा अहम् अनुभव मैंने पाया... चाहती हूँ,
बिना किसी लाग - लपेट के उसेआपके सामने रखूँ और आपको बहुत सारे
खतरों से आगाह कर दूँ। अब सीधी बात सुनिये। सीधी और सच्ची !
मेरा अपने बॉस से प्रेम हो गया। वाह! आपके चेहरों पर तो चमक आ
गयी ! आप भी क्या करें? प्रेम कम्बख्त है ही ऐसी चीज़। चाहे
कितनी ही पुरानी और घिसी-पिटी क्यों न हो जाये... एक बार तो
दिल फड़क ही उठता है... चेहरे चमचमाने ही लगते हैं। खैर, तो यह
कोई अनहोनी बात नहीं थी।
पूरी कहानी पढ़ें... |
अभिव्यक्ति
से जुड़ें आकर्षक विजेट के साथ |
|