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 २६. १. २००९

इस सप्ताह-
गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत से
कमलेश बख्शी की कहानी सूबेदार बग्गा सिंह

अपनी व्हील चेअर पर आहिस्ता-आहिस्ता हाथ चलाता वह आर्मी अस्पताल के वार्ड, कमरों में ज़ख्मी-बीमार जवानों के पलंग के साथ-साथ हालचाल पूछता आगे बढ़ता रहता। यह उसका अस्पताल में प्रवेश के बाद पहला काम होता। कोई पत्र न लिख सकने की स्थिति में होता तो कह देता "चाचा, मैं ठीक हूँ, लिख देना"। चाचा गोद में रखी डायरी उठाता, पेन उठाता पता लिख लेता। वह यहाँ व्हील चेयर वाला चाचा ही जाना जाता है उसका कोई नाम, रैंक, गाँव, कोई रिश्तेदार है, कोई नहीं जानता। जब से कारगिल में घुसपैठियों से फौज की मुठभेड़ हो रही है वह बहुत चिंतित हो गया। उसके कानों से छोटा-सा ट्रांजिस्टर लगा ही रहता। टी.वी. पर भी देखता रहता, बर्फ़ीले शिखर, खाइयाँ, बन्दूकें उठाए वीर जवान देख उसकी आँखों में वैसे ही दृश्य तैर जाते कानों में धमाके समा जाते। उन शिखरों खाइयों से उसका भी गहरा नाता है। वहाँ दुश्मन घुस आए। उसकी बाहें इस उम्र में भी झनझना उठती हैं, उसकी आधी जाँघों में भी हरकत हो जाती है।

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हरिशंकर परसाईं का व्यंग्य
ठिठुरता हुआ गणतंत्र

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अनंत सिंह सुना रहे हैं
चटगाँव विद्रोह की रोमांचक कहानी

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ऋषभदेव शर्मा का दृष्टिकोण
मुफ़्त की आज़ादी

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साहित्य समाचार में
दिल्ली पटना कानपुर कोलकाता और फ़ैजाबाद से नए साहित्य समाचार
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पिछले सप्ताह

राजेन्द्र त्यागी का व्यंग्य
भ्रष्टाचार में शिष्टाचार का समावेश ही कर्म-कौशल है!

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प्रेरक प्रसंग
सुखी व्यक्ति की खोज

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स्वाद और स्वास्थ्य में अर्बुदा ओहरी बता रही हैं
फ्रेंचबीन से फटाफट स्वास्थ्य

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मेहरून्निसा परवेज़ का संस्मरण
चिट्ठी में बंद यादें

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समकालीन कहानियों में
भारत से जसविंदर शर्मा की कहानी समर्पण

अम्मा से वह मेरी अंतिम मुलाक़ात थी। उसे अंतिम मुलाक़ात कहना सही नहीं होगा क्यों कि मेरे गाँव पहुँचने से पहले ही अम्मा जा चुकी थी- मृत्युलोक से दूर, हर दुख-तकलीफ़ से परे। पिछली बार जब मैं उसे मिलने आया था तो वह बोली थी, ''बेटे, बहुत हो चुकी उम्र! पोते-पड़पोते देख लिए। अब ईश्वर का बुलावा आ जाए तो अच्छा है! बिस्तर पर न गिरूँ मैं! मोह-ममता नहीं छूटती, बस! तुझ में ध्यान रहता है। तेरा बड़ा भाई मनोहर तो यहीं गाँव में ही रहता है। उसके बच्चे तो ब्याहे गए। तेरे अभी कुँवारे हैं। उनका घर बस जाता तो सुख की साँस लेकर मरती मैं।''
मैं उसे समझाता, ''अम्मा, हमारी चिंता मत किया कर। हम लोग मज़े में हैं। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा दी है। सब मज़े कर रहे हैं। खाते-कमाते हैं। वहाँ के संस्कार कुछ और ही हैं, अम्मा। मनोहर के बच्चों जैसे नहीं कि जो बापू ने बोल दिया वह पत्थर की लकीर नई सदी के इस मोड़ पर मुझे भी यह बात सालती है, मगर क्या करूँ? समय के साथ चलना पड़ता है।

अनुभूति में- दिवाकर वर्मा, गौतम सचदेव, रचना श्रीवास्तव, श्रीकृष्ण सरल और रामनिवास मानव की रचनाएँ

 

कलम गही नहिं हाथ- मुश्किल से दिल्ली जितना देश, जो गर्मी में ५५डिग्री से ठंडा होना नहीं चाहता सर्दियों में बेहद लुभावना हो उठता है।.. आगे पढ़े

 
रसोई सुझाव- फूलगोभी की सब्जी में एक छोटा चम्मच दूध या सिरका डालें तो फूलगोभी का सफ़ेद रंग पीला नहीं पड़ेगा।
 

नौ साल पहले- १५ दिसंबर २००० के अंक से सुप्रसिद्ध कथा लेखिका गौरा पंत शिवानी की कहानी लाल हवेली

 

इस सप्ताह विकिपीडिया पर
विशेष लेख- भारत रत्न

 

क्या आप जानते हैं? कि भारत रत्न की स्थापना २ जनवरी १९५ को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गई थी।

 
शुक्रवार चौपाल- पिछले कुछ दिनों से मौसम का मिज़ाज ठीक नहीं रहा है। शुक्रवार को भी हवा तेज़ और ठंडी थी ऊपर से समंदर का किनारा आगे पढ़ें...
 
सप्ताह का विचार- देश का उद्धार विलासियों द्वारा नहीं हो सकता। उसके लिए सच्चा त्यागी होना आवश्यक है। -प्रेमचंद


हास परिहास

 

1
सप्ताह का कार्टून
कीर्तीश की कूची से

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