"अभी मेरे दो फेसबुक दोस्त
एक-दूसरे पर 'शर्मिंदा' हो रहे थे। लगता है उन्हें यह डेवलपमेंट मालूम नहीं है कि
सभी पार्टियों के नेताओं ने मिलकर सर्वसम्मति से एक साझा प्रस्ताव पारित किया है कि
भारत के तमाम शब्दकोशों से 'शर्म' शब्द को डिलीट कर दिया जाए और 'शर्मिंदा लोगों'
को राष्ट्र और लोकतंत्र के लिए घातक करार दे दिया जाए।
'शर्मिंदा लोगों' के लिए सजा के प्रावधान पर चली बहस संविधान-सभा की बहस से कम वृहद
और सारगर्भित कतई नहीं थी। ऐसे लोगों के लिए सजा का प्रस्ताव करते हुए सबसे पहले
'आम पार्टी' ने कहा कि ऐसे सभी लोगों को जेल भेज दिया जाना चाहिए, जबकि 'दाम
पार्टी' ने कहा कि उनपर भारी जुर्माना लगाया जाए। 'वाम पार्टी' ने कहा- नरम सजा से
काम नहीं चलेगा, इसलिए उन्हें 'जंगली क्रांतिकारियों' के हाथों गोलियों से भुनवाकर
एक ही बार में खेला खतम कर दिया जाना चाहिए, ताकि दोबारा कोई 'शर्मिंदा होने की
हिमाकत' न कर सके।
'भगवा पार्टी' की राय देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत थी। उसका कहना था कि तमाम
शर्मिंदा लोग एक प्रकार से लोकतंत्र से बलात्कार के दोषी हैं, इसलिए उन्हें फाँसी
होनी चाहिए। साथ ही कानून में इस बात का प्रावधान होना चाहिए कि ऐसे मुजरिम
राष्ट्रपति के पास दया-याचिका न भेज पाएँ, वरना फैसले में अनावश्यक देरी होगी और
सुप्रीम कोर्ट उनकी फाँसी की सजा को उम्रकैद में बदल देगा।
हालाँकि 'अगवा पार्टी' की राय काफी अलग और प्रैक्टिकल थी। उसने कहा कि ऐसे लोगों को
अगवा करके लंबे समय तक भूखे-प्यासे रखो, टॉर्चर करो और उनकी रिहाई के लिए उनके
परिवार वालों से मोटी रकम वसूलो। हम सबकी पार्टियों में बड़ी संख्या में ऐसे नेता
और कार्यकर्ता हैं, जो इस तरह की सजा देने का लंबा अनुभव रखते हैं। सजा के ऐसे
प्रावधान से उनका भी बिजनेस चमक उठेगा और हमें पार्टी चलाने का ख़र्चा भी आसानी से
आता रहेगा।
'समाजवादी धड़े की पार्टियों' ने कहा कि यह सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम उनके
मुद्दे पर 'समाज में वाद' पैदा कर देंगे। सारे शर्मिंदा लोग ख़ुद ही लड़-कट कर मर
जाएँगे। जबकि 'विवादी धड़े की पार्टियों' ने कहा कि उनकी नज़र में शर्मिंदा लोग
इतने हीन किस्म के मुजरिम हैं कि उन्हें सजा देने के लिए न तो इतना दिमाग लगाने की
ज़रूरत है, न अदालतों वगैरह के ताम-झाम की। उन्हें उनके 'पाप' की सजा 'खाप
पंचायतों' से दिलवाएँगे। किसी के कपड़े उतरवा देंगे, किसी को नंगा घुमा देंगे, किसी
का सिर मुँड़वा देंगे, किसी की मूँछें कलम करवा देंगे। तब तो अपने आप जाती रहेगी
सारी शर्म!
'हाथी पार्टी' ने प्रस्ताव दिया कि क्यों न देश के तमाम 'शर्मिंदा लोगों' को
हाथियों से कुचलवा दिया जाए। मिट्टी की देह ऑन द स्पॉट मिट्टी में मिल जाएगी।
पंचायतें बिठाओ, कोर्ट लगाओ, मुकदमे चलाओ, सजा सुनाओ, जल्लाद बुलाओ... इतना सब
ताम-झाम करने की ज़रूरत क्या है? हालाँकि 'हाथी पार्टी' की राय से 'साथी पार्टी' के
लोग ज़्यादा सहमत नहीं दिखे।
'साथी पार्टी' का कहना था कि हम ऐसे लोगों का साथी बनकर उनकी पीठ में छुरा
घोंपेंगे। आस्तीन में सांप बनकर पलेंगे। सीधे-सीधे फ्रंट पर आकर उनसे दुश्मनी मोल
लेने की क्या ज़रूरत है? क्योंकि जब तक वे अकेले-अकेले रहेंगे, तब तक तो आप उन्हें
सजा दे सकते हैं, लेकिन किसी रोज़ वे अगर इकट्ठा हो गए, तो उल्टे हम सबकी ही चूलें
हिला डालेंगे। इसलिए साथी बनकर पीठ में छुरा घोंपना ही हमारी पार्टी की
शाश्वत-सार्वभौम नीति है और इस मामले में भी हम इसी नीति पर कायम रहना चाहेंगे।
हालाँकि इन सारी पार्टियों के प्रस्तावों को सुनकर 'सबसे पुरानी, लिबरल और
मध्यमार्गी माने जाने वाली पार्टी' के नेताओं ने ज़ोरदार ठहाके लगाए। कहा- अभी
आपलोगों में अनुभव की कमी है, इसलिए ऐसी बातें कर रहे हैं। हम जानते हैं कि लोगों
को कैसे 'पनिश' किया जाता है। हम ऐसा कर देंगे कि घोषित तौर पर उन्हें कोई पनिशमेंट
नहीं देंगे, लेकिन अघोषित तौर पर उन्हें तमाम सरकारी सुविधाओं से वंचित कर देंगे और
पूरे सिस्टम को उन्हें प्रताड़ित करने पर लगा देंगे। न किसी 'जॉब' के लिए उनकी
'इलिजिबलिटी' रहेगी, न किसी सरकारी दफ्तर में उनका कोई काम हो सकेगा। न पुलिस उनकी
बात सुनेगी, न उन्हें न्याय नसीब होगा। चप्पलें घिसवा-घिसवाकर उनकी ज़िंदगी ख़राब
कर देंगे। हम उनके साथ सीधे तौर पर कुछ न करेंगे, लेकिन ऐसा कर देंगे कि
भूख-बीमारी-चिंता-कुपोषण सब एक साथ उन्हें घेर लेंगी। जो जीना चाहेंगे वे इसी हाल
में जिएँगे और जो मरना चाहेंगे, उनके लिए आत्महत्या कर लेने का विकल्प हर वक़्त
खुला रहेगा। देश के किसान पहले से ही बड़ी संख्या में इस विकल्प को आजमा रहे हैं।
धीरे-धीरे दूसरे वर्गों को भी हम इस दायरे में लेने की कोशिश कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, सभी पार्टियाँ इस बात पर तो सहमत दिखीं कि 'शर्म' शब्द को तमाम
डिक्शनरियों से डिलीट करके लोगों के शर्मिंदा होने को लोकतंत्र-विरोधी
राष्ट्र-विरोधी कृत्य घोषित कर दिया जाए, लेकिन सजा के प्रावधान पर मतभेदों को
देखते हुए अंतिम फ़ैसला यह हुआ कि अभी कोई ख़ास सजा निश्चित न की जाए और जब जिसकी
सरकार बनेगी, तब उसकी नीतियों और प्रस्तावों के मुताबिक ही सजा दी जाएगी, लेकिन यह
कतई नहीं हो सकता कि ऐसे लोगों को कोई सजा न दी जाए।
अंत में, ऐसे लोकतंत्र-विरोधी राष्ट्रविरोधी लोगों पर किसी भी किस्म के रहम न करने
के फ़ैसले का सभी दलों ने मेजें थपथपाकर ध्वनिमत से स्वागत किया और बैठक समाप्त हो
गई। चर्चा लंबी चली। सभी नेता इस गरमा-गरम चर्चा में काफी थक गए थे। शाम भी काफी हो
गई थी। इसलिए वहाँ से उठकर वे सभी सीधे अपने-अपने ऐशगाहों में चले गए, जहाँ उनके
सिपहसालारों ने उनके लिए उम्दा किस्म की शराब और शबाब का इंतजाम कर रखा था।
तो भाइयो-बहनो, देख लीजिए, आप अब भी तो 'शर्मिंदा' नहीं हो रहे हैं न! कृपया अपनी
आदतें ठीक कर लीजिए। बाद में मुझे मत कहिएगा कि सब कुछ जानकर भी आपने कोई
महत्वपूर्ण ख़बर दबा दी थी।"
डिस्क्लेमर- इस व्यंग्य रिपोर्ट में वर्णित सभी राजनीतिक दल काल्पनिक हैं, पर अगर
किसी भी राजनीतिक दल को लगे कि कोई कैरेक्टर उनके कैरेक्टर से मिलता-जुलता है, तो
इसकी ज़िम्मेदारी ख़ुद उसी की होगी, मेरी नहीं होगी। |